उच्च न्यायालय ने बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी करते हुए उनके खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने शहरी क्षेत्र के विद्यालयों की खस्ता हालत और वहां के सूची तैयार होने के बावजूद शिक्षकों को प्रोन्नति न दिए जाने को गंभीरता से लिया है। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार का समाज से जुड़ाव गंभीर बात है और मजबूत नौकरशाही में किसी भी बात को घुमा देने का फैशन हो गया है।
अदालत ने सचिव बेसिक शिक्षा को कहा है कि वह बेसिक शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर नगर क्षेत्र के प्राथमिक स्कूलों में स्वीकृत पदों और 13 अक्टूबर 2009 से खाली पड़े पदों का पता लगाएं। इस कार्य के लिए सचिव को दो माह का समय दिया है। आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि कमेटी की रिपोर्ट के बाद पात्र लोगों को सभी परिलाभों के साथ प्रोन्नति दी जाए और भविष्य में खाली होने वाले पदों पर 14 अक्टूबर 2009 की सूची से प्रोन्नति दी जाए।
बेसिक शिक्षा अधिकारी इलाहाबाद द्वारा प्रोन्नति सूची को दो वर्षो तक लटकाए रहने पर उनके खिलाफ विभागीय जांच करने का सचिव को निर्देश दिया है। जांच रिपोर्ट चार माह में देनी होगी। इस दौरान बिना काम किए प्रोन्नति पाने वाले शिक्षकों को किए गए भुगतान की भरपाई दोषी अधिकारियों से करने की सचिव को छूट दी है साथ ही बीएसए पर दस हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। याचिका नसीम अहमद सहित 30 अध्यापकों की ओर से दाखिल की गई थी। इन सभी को हेडमास्टर पद पर प्रोन्नति दी गई थी, मगर बीएसए ने उस पर रोक लगाते हुए नगर शिक्षा अधिकारी से रिपोर्ट मांग ली। इसके खिलाफ याचिका दाखिल की गई।