एक अहम फैसले में राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राजेश अवस्थी को पद से बर्खास्त कर दिया है। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनकी नियुक्ति को गैरकानूनी करार देते हुए आयोग के ‘अध्यक्ष’ पद को रिक्त घोषित किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि संबंधित नियम-कानूनों के तहत चुनाव का परिणाम घोषित होने के बाद खुद या फिर चुनाव आयोग की अनुमति लेकर नए सिरे से चयन किया जा सकता है।
मंगलवार को न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह व न्यायमूर्ति एस सी चौरसिया की खंडपीठ ने यह फैसला नंदलाल जायसवाल की रिट मंजूर कर सुनाया। याची का कहना था कि राजेश अवस्थी कानूनी प्रावधानों के तहत अध्यक्ष पद पर चयन व नियुक्ति के लिए अर्ह नहीं थे, क्योंकि जेपी पावर वेंचर लिमिटेड में उनकी रुचि शामिल थी, जिसके वह उपाध्यक्ष थे। 21 अक्टूबर, 2008 को अध्यक्ष का पद खाली हुआ। 22 दिसंबर, 2008 को राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय चयन समिति बनाई। इसमें हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में प्रदेश के मुख्य सचिव व केंद्रीय विद्युत आयोग के चेयरमैन सदस्य थे। चयन प्रक्रिया में राजेश अवस्थी समेत 30 लोग शामिल हुए। 26 दिसंबर, 2008 को चयन समिति की बैठक हुई तथा राजेश अवस्थी व अनिल अस्थाना का चयन हुआ। इन दोनों के नाम नियुक्ति के लिए समिति ने शासन को भेज दिए। लेकिन यह भी ताकीद की कि अगर अवस्थी को नियुक्त किया जाए तो पहले विद्युत अधिनियम की धारा 85 (5) के प्रावधानों को सुनिश्चित कर लिया जाए। याची की ओर से कहा गया कि जेपी पावर वेंचर को ऊंची दर दिए जाने से सरकार को 25 साल में 30,000 करोड़ का नुकसान होगा। यह भी तर्क दिया गया कि विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष के रूप में राजेश अवस्थी, जेपी पावर वेंचर्स के संबंध में निर्णय लेंगे और अनुचित ‘फेवर’ करेंगे।