श्रीराम चरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है, ‘माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथपति आवे सब कोई’ अर्थात माघ के महीने में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति मानाने का विधान है। इस काल में तीर्थराज प्रयाग में संगम स्नान का विशेष महत्व है। इस वर्ष मकर संक्रांति का त्यौहार 11 वर्ष बाद रविवार को पड़ने के कारण इसका महात्म्य और भी बढ़ गया है। रविवार को संक्रांति होने का अभिप्राय यह है कि किसी भी तीर्थ, नदी अथवा सरोवर में स्नान करने पर संगम स्नान का फल प्राप्त होगा।
मकर संक्रांति 14 जनवरी को शाम 4:45 बजे लगेगी और 15 जनवरी को दोपहर दो बजे तक रहेगी। इसलिए मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। आचार्य जनार्दन पांडेय के अनुसार रविवार सूर्य का दिन होता है। मकर राशि के मालिक शनि हैं। एक तरह से यह सूर्य-शनि का सम्मिलन काल है। इस वर्ष यह कालखंड तंत्र, मंत्र एवं योग साधना के साधकों के लिए सिद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया है। रविवार के दिन मकर संक्रांति रवि-पुष्कर योग बन रही है। इस योग में लाल चंदन, लाल पुष्प, किसमिस, चावल, गुड़, हल्दी, तिल, अष्टगंध का मिश्रण करके सूर्य को अर्घ्य देने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। सूर्य कंवचम्, आदित्यहृदय स्तोत्रम् और शनि स्तोत्रम् का पाठ, मां दुर्गा एवं भगवान शिव की आराधना विशेष लाभकारी होगी। पं. रामेश्वर ओझा के अनुसार ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव मकर संक्रांति के काल में चर अचर, जीव-जंतु, पशु-पक्षी-वृक्ष आदि सभी पर पड़ता है। इस काल में नदियों का अथवा संगम का जल भगवान श्रीहरि की कृपा से पवित्र के साथ औषधियुक्त भी हो जाता है। इस काल में दान, व्रत और स्नान का विशिष्ट फल मिलता है। आदर्श सेवा संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य पं. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार रविवार केदिन संक्रांति पड़ने को लेकर विभिन्न पंचागों में अलग-अलग गणना के कारण दो अवधि प्राप्त हो रही है। मुख्य पंचांगों की गणना के मुताबिक यह अवसर 11 वर्ष बाद आ रहा है।