अनैतिक बांड पर साइन न करने वाले जागरण के दो पत्रकारों को आफिस न आने के आदेश

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तृप्ति शुक्ल और आशु प्रज्ञ मिश्र आई-नेक्स्ट, बरेली में रिपोर्टर / सब एडिटर के पद पर कार्यरत हैं. इन लोगों ने जागरण समूह की तरफ से हर कर्मी से साइन करवाए जा रहे अनैतिक बांड पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. इस बांड में लिखा गया है कि हम लोगों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप सेलरी नहीं चाहिए क्योंकि हम सब जागरण में काम करके खुश हैं और हमें यहां जो कुछ मिल रहा है वह पर्याप्त है.

ऐसे गुलामी वाले, गैर-कानूनी और अनैतिक बांड पर दैनिक जागरण व आई-नेक्स्ट के ज्यादातर लोगों ने हस्ताक्षर कर दिए, चुपचाप. सबके लिए नौकरी नंबर वन पर रही, नैतिकता… सरोकार… क्रांतिकारिता… सच्चाई… अधिकार… ईमानदारी… जैसी चीजों पर कुछ एक ने सोचा भी लेकिन बहुत देर तक वे इस पाले में खड़े नहीं रह पाए. लेकिन दो युवा पत्रकारों ने सबको राह दिखाया है. बताया है कि धरती वीरों से खाली नहीं होती. तृप्ति और आशु ने न सिर्फ साइन करने से इनकार किया बल्कि प्रबंधन के प्रलोभनों व धमकियों के आगे भी नहीं झुके.

इन दोनों पत्रकारों को अब प्रबंधन ने मौखिक रूप से आदेश दिया है कि ये लोग अगले आदेश तक आई-नेक्स्ट, बरेली के आफिस न आएं. पर दोनों पत्रकारों ने लिखित आदेश देने की बात कहकर आफिस में प्रवेश कर लिया है और अपना काम कर रहे हैं. इन दोनों ने एक संयुक्त पत्र भड़ास4मीडिया को भेजा है, जिसे हूबहू प्रकाशित किया जा रहा है. इन दोनों पत्रकारों के फोन नंबर भी यहां प्रकाशित किए जा रहे हैं ताकि जो भी इनकी जिस रूप में मदद करना चाहे, जरूर करे. इन्हें आर्थिक मदद देने से लेकर नौकरी जाने पर नई नौकरी की व्यवस्था करने तक का दायित्व हम सभी का बनता है. आखिर क्यों ऐसा समाज व सिस्टम बनाए रखें जिसमें सच के लिए लड़ने वालों को दर दर की ठोकरें खानी पड़े.

कायदे से तो ईमानदारी और साहस को पुरस्कृत-सम्मानित किया जाना चाहिए. लेकिन जो समय है, उसमें आजकल चोर लोग सम्मान पा रहे हैं और सच बोलने वाला ठोकर. इन दोनों पत्रकारों ने पत्र लिखा है. यह लड़ाई सिर्फ तृप्ति और आशु की नहीं है, आप सब और हम सबकी है. ध्यान रखें, गलत चीजों के खिलाफ लड़ने वालों का अगर हमने तन मन धन से मदद न की तो यह समाज व सिस्टम बेहतर नहीं बन सकेगा, सड़न बढ़ती जाएगी.


तृप्ति शुक्ल व आशु प्रज्ञ मिश्र का पत्र

जागरण प्रबंधन के अखबार को लिखकर छापने वाली ये अंगुलियाँ आज उसकी खिलाफत टाइप करने के लिए मजबूर हैं. सिर्फ इसलिए नहीं की हम कोई क्रांतिकारी हैं या हम भगत सिंह की तरह किसी सरफरोशी की तमन्ना से भर गए हैं. बल्कि सिर्फ इसलिए की नपुंसक बनकर व्यवस्था का गला घोंटने वाले लोग हम पर हुकूमत नहीं करें. यशवंत जी जैसे ही मजीठिया आयोग की चर्चा शुरू हुई थी. हमें कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा की हमारी तनख्वाह बढ़ जाएगी या कोई ऐसा क्रांतिकारी बदलाव आ जायेगा. लेकिन हमने सिर्फ इसलिए पेपर पर साइन करने से इनकार किया था. क्योंकि उस पर साफ़ लिखा था. की अपनी मर्ज़ी से आप साइन कर सकते हैं. हमने वही किया. हमने साइन करने से इनकार कर दिया, फिर तो जैसे आई नेक्स्ट प्रबंधन मैं भूचाल आ गया, हमें सीजीएम अनुग्रह नारायण सिंह के कमरे मैं बुलवाया गया. उन्होंने हमें गार्जियन की हैसियत से समझाने की कोशिश की. हम समझने के लिए तैयार नहीं थे, आज दोपहर हमारे पास कानपूर से पंकज पाण्डेय जी का फोन आया, उन्होंने हमें समझाने की या दूसरे शब्दों मैं कहें धमकाने की कोशिश की, हम नासमझ थे नहीं समझे या यूँ कहें हम गुलामी के लिए तैयार नहीं थे. नतीजा हमारे सामने था, आज शाम ४:३० बजे दोबारा उनका फ़ोन आया है और हमें अगली सूचना तक ऑफिस न आने के लिए कहा गया है.
हम पत्रकार होकर अपने हक की लड़ाई अकेले लड़ने के लिए मजबूर हैं. आज इतना बड़ा पत्रकार समुदाय हमारी मदद के लिए तैयार नहीं है. हम दुनिया भर से अकेले लड़ रहे हैं,  पूरा मीडिया समाज जो सच का पहरुआ होने का दावा करता है उसकी दुम उसकी टांगों के बीच नज़र आ रही है, दूसरी आज़ादी का इन्तजार करने वाले लोग आखिरकार क्यों नहीं समझ पाते हैं की यही सही मौका है,

आपके उत्तर की प्रतीक्षा में

– तृप्ति शुक्ल,
– आशु प्रज्ञ मिश्र

reporter/ sub editor

09807250960
09568011764

साभार: भड़ास4मीडिया