कहते हैं की इतिहास अपने आप को दोहराता है| उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है| व्यवस्था के नाम पर सरकार और उसके अफसर नियम और नियमवली को ताक पर रख अपना चमड़े का सिक्का चला रहे हैं| आम जनता को इतिहास में दर्ज हुमायूँ के जमाने का वक़्त याद आ रहा है| ये इतिहास में दर्ज चमड़े का सिक्का भी जब उत्तर प्रदेश में चला था| गंगा की सहायक नदी “गर्रा” नदी में डूबते समय एक भिस्ती द्वारा हुमायूँ की जान बचाने के इनाम में भिस्ती ने एक दिन का राजा बनाने का इनाम मांग डाला| और उस ने भिस्ती एक दिन के लिए चमड़े का सिक्का चला दिया था| यहाँ इस वाकये का जिक्र इसलिए किया जाना जरूरी है क्यूंकि उत्तर प्रदेश में भी सरकारी अफसरों की बोलती बंद है और सरकार के मंत्री जिन्हें विभाग की एबीसीडी भी नहीं आती अपनी मर्जी से जनता के लिए फैसले करवा रहे हैं| फिर जनता मरे या जिए इनकी बला से| मंत्रियो की माया मंत्री ही जाने आप ताजा मामला देखिये जिसमे माध्यमिक शिक्षा परिषद् के एक और कारनामे के चलते लाखो छात्रों को टेट की परीक्षा से ही वंचित रखा गया|
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा 13 नवंबर को ली गई (UPTET) शिक्षक पात्रता परीक्षा की विज्ञप्ति में अस्पष्टता के कारण हजारों बीएड अभ्यर्थी परीक्षा से बाहर हो गए। अभ्यर्थी यूपी बोर्ड के अधिकारियों से पूछते रहे कि एमए के आधार पर बीएड करने वाले अभ्यर्थी टीईटी क्यों नहीं दे सकते, पर इसका कोई जवाब नहीं मिला, जबकि एनसीटीई ने माना है कि स्नातक या स्नातकोत्तर में 45 प्रतिशत अंक पाने वाले अभ्यर्थी शिक्षक पात्रता परीक्षा दे सकते हैं।
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोट में मनीष कुमार सिंह द्वारा विशेष अपील 2076 , 2011 की है। याची के स्नातक में 43 प्रतिशत अंक हैं और उसने परास्नातक के आधार पर बीएड किया है। यूपीटीईटी की विज्ञप्ति में न्यूनतम योग्यता स्नातक में 45 प्रतिशत होना अनिवार्य था, ऐसे में हजारों ऐसे अभ्यर्थी, जिन्होंने परास्नातक के आधार पर बीएड किया था वे टीईटी की दौड़ से बाहर हो गए। याची के अधिवक्ता ने एनसीटीई से पूछा था कि आखिर वास्तविक स्थिति क्या है। इसके जवाब में एनसीटीई के अधिवक्ता ने कहा कि टीईटी देने के लिए ऐसे अभ्यर्थी पात्र हैं, जिनके स्नातक या स्नात्कोत्तर में 45 प्रतिशत अंक हैं। स्थिति स्पष्ट होने से एमए के आधार पर बीएड करने वाले अभ्यर्थी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अभ्यर्थियों का कहना है कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की छोटी सी गलती के कारण हजारों छात्रों का भविष्य अंधकार में है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि एनसीटीई द्वारा भी यह जानकारी तब दी गई जब यह मामला कोर्ट में गया। अभ्यर्थियों ने एनसीटीई को भी इस संबंध में पत्र लिखकर जानना चाहा था कि उन्हें टीईटी में क्यों नहीं भाग लेने दिया जा रहा है, जिसका कोई जवाब नहीं दिया गया। अभ्यर्थियों का कहना है कि उनके मानसिक व भावनात्मक उत्पीड़न के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?