लखनऊ। उत्तर प्रदेश के चार टुकड़े करने का माया के प्रस्ताव का सबसे अहम हिस्सा है अवध प्रदेश। दूसरे शब्दों में कहें तो आज का असल उत्तर प्रदेश। अगर बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश नाम के राज्य बन जाएं तो सिर्फ अवध प्रदेश ही वो हिस्सा होगा जिसे कल का नया उत्तर प्रदेश कहा जाएगा।
माया सरकार ने जैसे ही बंटवारे का पासा फेंका। लखनऊ समेत 21 जिलों में लाख टके का सवाल हवा में उछल गया, कैसा होगा अवध प्रदेश?
प्रस्तावित प्रदेश की आबादी करीब 3 करोड़ 65 लाख होगी। 21 जिलों वाले राज्य में इस वक्त 14 लोकसभा और 70 विधानसभा सीटें आती हैं। इस इलाके में ब्राह्मण, राजपूत, पिछड़ा और यादव जातियों का बाहुल्य है। प्रस्तावित अवध प्रदेश में जो जिले शामिल हो सकते हैं उनमें-
-लखनऊ
-फैजाबाद
-अंबेडकर नगर
-सुल्तानपुर
-छत्रपति शाहूजी महाराज नगर
-बाराबंकी
-गोंडा
-बलरामपुर
-श्रावस्ती
-कानपुर
-रमाबाई नगर
-फर्रुखाबाद
-कन्नौज
-इटावा
-लखीमपुर
-सीतापुर
-हरदौई
-उन्नाव और
-रायबरेली
प्रमुख हैं
अयोध्या, लखनऊ और दुधवा नेशनल पार्क ट्यूरिज्म आय का अहम स्रोत होगा।
अवध प्रदेश में कानपुर ही बड़ा औद्योगिक शहर बचेगा लेकिन पिछले 10 सालों से बिजली की जबरदस्त किल्लत, गड्ढों से भरी सड़कें और गंगा में फैलते प्रदूषण ने कानपुर के उद्योगों को नोएडा और गाजियाबाद शिफ्ट होने को मजबूर कर दिया है। नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन, ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन के अलावा, सूती मिलों, जूट उद्योग पर अर्से से तालाबंदी और खस्ताहाल लाल इमली ने पूर्व के इस मेंचेस्टर को बदहाल बना डाला है।
छोटे उद्यमी तो चला लेते है लेकिन बड़े अब बाहर जा रहे हैं। 5-6 महीने तो बिजली ठीक मिलती है उसके बाद नहीं। ओवरहेड खर्चे बढ़ जाते हैं।
अवध प्रदेश के सियासी गणित की बात करें तो विधानसभा में बीएसपी के पास यहां 31 सीटें है, समाजवादी पार्टी 22 सीटों पर काबिज है जबकि बीजेपी की झोली में 14 तो कांग्रेस के पास इस इलाके से सिर्फ 3 सीटे हैं। यानि अवध प्रदेश में मुख्य मुकाबला बीएसपी और एसपी के बीच है।
अवध की शाम एक मिसाल बन चुकी है पर सियासी समीकरणों ने हालात उस मोड़ पर ला दिया हैं कि शायद अवध की शाम सिर्फ अवध सूबे की शाम बन कर रह जाए।