लखनऊ. अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राज्य का विभाजन एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। संभावना है कि 21 नवंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में मायावती सरकार राज्य को विभाजित करने का प्रस्ताव पेश करें। मुख्यमंत्री ने 2007 में बहुमत से सरकार बनाने के बाद से राज्य को विभाजित करने की मांग का समर्थन कर रही हैं। इस बारे में उन्होंने दो बार केन्द्र सरकार को पत्र भी लिखा है।
गौरतलब है कि उप्र के बुंदेलखंड, पूर्वाचल, मध्यांचल और पश्चिमी उप्र को हरित प्रदेश के नाम से अलग राज्य बनाने का समर्थन किया है। बसपा का साफ कहना है कि छोटे प्रदेशों का विकास तेज होता है। मौजूदा समय में उप्र में बुंदेलखंड और हरित प्रदेश की मांग करने वाले समूहों में राजनीतिक दल भी शामिल हैं।
कांग्रेस व भाजपा भी छोटे राज्यों का समर्थन करते हैं। जबकि प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल सपा इसका घोर विरोध करती है। बुंदेलखंड में 21 विधानसभा क्षेत्र हैं। इस इलाके को अलग राज्य बनाने के लिए बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा सक्रिय है। अलग पूर्वांचल बनाने की मांग को लेकर कुछ दिन पहले लोकमंच के नेता अमर सिंह ने पद यात्रा की थी। चौधरी अजीत सिंह अरसे से प्रदेश के विभाजन की मांग करते रहे हैं।
मायावती को साधना पड़ेगा बहुमत का नाजुक संतुलन :
2007 में 16 साल बाद बहुमत से चुनी गई मायावती सरकार को पांच साल में पहली बार 21 नवंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान बहुमत के नाजुक संतुलन का ध्यान रखना होगा। सत्र के दौरान लेखा अनुदान पास कराया जाना है। जिसके लिए बहुमत बेहद जरूरी है। बसपा ने उम्मीदवारों की घोषणा में दल के लगभग 45 विधायकों का पत्ता काट दिया है। 403 विधानसभा सदस्यों वाले सदन में छह सीटें खाली हैं। इसलिए 397 सदस्यों की विधानसभा में बसपा के विधायकों की संख्या 221 है।
जबकि सपा के 88, भाजपा के 48, कांग्रेस के 20 और रालोद के 10 विधायक और 9 निर्दलीय विधायक हैं। उप्र विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव आरपी पांडेय ने कहा कि लेखानुदान के पारित न होने की स्थिति में सरकार गिर जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार के सामने दो स्थितियों में मुश्किल होगी। पहली विधायक सदन में आए ही नहीं, दूसरी सरकार के खिलाफ मतदान कर दें। उन्होंने कहा कि यदि मान लिया जाए कि बसपा के जिन विधायकों का टिकट कटा है वे सदन में नहीं आएंगे तो सरकार मुश्किल में फंस सकती है। लेखानुदान पारित कराते समय सरकार के कम से कम 199 सदस्यों का सदन में मौजूद रहना जरूरी होगा।