यहाँ रावण के पुतले को नहीं लगाई जाती आग

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शिव नगरी बैजनाथ में चार दशकों से रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। इससे पहले यहां दशहरा उत्सव को धूमधाम के साथ मनाया जाता था, मगर कुछ अनहोनी घटनाओं के होने के बाद दशहरा उत्सव मनाने वालों ने हाथ पीछे कर लिए। उसके बाद से यहां दशहरा उत्सव मनाने का कोई नाम तक नहीं लेता है।

चार दशक पूर्व यहां शिव मंदिर के पार्क में रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के विशाल पुतले बनाए जाते थे और उन्हें विजय दशमी के दिन जला दिया जाता था। उस समय यहां राम लीला का भी आयोजन किया था। बताया जाता है कि करीब पांच दशक पहले यहां दशहरा उत्सव का आयोजन करने के लिए कुछ स्थानीय लोग ने मंदिर कमेटी गठित की तथा यहां पर दशहरा मनाने का निर्णय लिया। यहां पर सर्दकालीननवरात्रमें विजय दशमी के दिन रावण, मेघ नाथ, कुंभकर्णके विशाल पुतलों को जलाने का सिलसिला शुरू हुआ था।

 

इस दौरान यहां पर आतिशबाजी भी होती थी। जिसे देखने के लिए दूर दराज क्षेत्रों से उस समय हजारों की संख्या में लोग आते थे। जिस कारण दशहरे के आयोजन बढता चला गया। मगर कुछ वर्ष बाद यहां पर कुछ लोगों की अचानक हुई मौतों व प्राकृतिक आपदा से फसलों के बर्बाद होने पर लोग यहां शिव मंदिर प्रांगण में रावण के पुतले को जलाने का जबरदस्त विरोध करने लगे। उनका तर्क था कि रावण भगवान का शिव का परम भक्त रहा है और भगवान शिव अपने भक्त के पुतले को अपने सम्मुख जलता नहीं देख सकते हैं। यहां शिव मंदिर के सामने रावण का पुतला जलाने से अनहोनी घटनाएं हो रही हैं।

 

उनके विरोध के आगे मंदिर कमेटी ने इसके आयोजन से अपने हाथ पीछे खींच लिए। उस समय बनी मंदिर कमेटी के सचिव रहे सतीश कुमार सूद ने कहा कि यहां पर दशहरा उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था। कुछ वर्ष तक यहां रावण, मेघनाथ व कुंभकर्णके पुतले जलाए जाते थे। लेकिन उस हुई कुछ अनहोनी घटनाओं को कुछ लोगों ने शिव मंदिर के सामने रावण को जलाने से जोडने से इसे बंद कर दिया गया।