फर्रुखाबाद: जुलाई से प्रारम्भ हुए शिक्षा सत्र को लगभग तीन माह बीत चुके हैं| परन्तु किताबों का वितरण पूरा नहीं हो पाया| ऐसे में बिना किताबों के छात्रों ने कैसी परीक्षा दी होगी और क्या लिखा होगा?
कछुए की चाल यही है शिक्षा विभाग का हाल| परिषदीय विद्यालयों में अगर शिक्षक मौजूद तो बच्चे गायब अगर बच्चे मौजूद तो शिक्षकों का अता पता नहीं| लेकिन जब दोनों है तो सिर्फ विद्यालय में अध्यापन कार्य नहीं बल्कि गप्पें व ठहाके लगाकर टाइम पास किया जाता है| बगल में बैठा छात्र क्या कर रहा है उससे शिक्षक को क्या उनका तो बच्चा इस स्कूल में नहीं पढ़ता ? इनका भविष्य अन्धकार मय हो जाये तो शिक्षकों को कोई परवाह नहीं|
जैसा राजा वैसी प्रजा मतलब शिक्षा विभाग में ऊंचे पदों पर आसीन अधिकारी ही सबसे सुस्त है तो शिक्षक क्यों नहीं ? अकेले शिक्षकों को ही दोष नहीं दे सकते|
मालूम हो कि सत्र प्रारम्भ हुए काफी समय हो गया है| बिना किताबों के बच्चों ने तिमाही परीक्षा भी दे दी| लेकिन सोचने का विषय है कि किताबों का सिलसिला आना अब शुरू हुआ है ऐसे में बिना किताबों के ही छात्रों ने परीक्षा कैसे दी होगी और शिक्षकों ने परीक्षा कैसे करा दी| अब किताबें आ ही गयीं है तो मुख्य बात यह है कि ये कब बितरित की जायेंगीं और कब छात्र किताबों से पढ़ पायेंगें| परिषदीय विद्यालयों की व्यवस्था राम भरोसे ही चल रही है| क्या होगा आने वाले भविष्य का ? अध्यन अध्यापन कार्य किसी डग्गामारी से कम नहीं है|