***मुन्नू बाबू व छोटे सिंह लौटे पुराने घरों में
फर्रुखाबाद : चुनाव की आहट शुरू होते ही सूबे में दलबदल भी तेज हो गया है। वर्षों की निष्ठा मिनटों में बदल रही है। जो पार्टी अभी तक बुरी थी वह रातोंरात अच्छी लगने लगी है। जिसमें अच्छाइयां ही अच्छाइयां थी उसमें रातोंरात ढेर सारी बुराइयां पैदा हो गई हैं। कुछ को पुराने घरों की याद सताने लगी है तो कुछ को पुराने घर की दीवारों में ढेर सारी दरारें दिखाई देने लगी हैं। दोस्त, दुश्मन लगने लगे हैं और दुश्मन, दोस्तों से ज्यादा प्यारे। यह हाल न तो एक दल का है और न एक नेता का। कांगेसी कल्चर से सपाई होने के बाद जहां पूर्व सांसद मुन्नू बाबू भाजपा में शामिल हो चुके हैं, वही पूर्व सांसद छोटे सिंह यादव तीन दिन पूर्व ही कांग्रेसी हो गये हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बसपा में जाने वाले पूर्व सांसद आनंद सिंह और उनके पुत्र पूर्व सांसद कीर्तिवर्धन सिंह सपा में लौट आए हैं। सपा से सांसद रह चुके छोटे सिंह यादव, पूर्व आईएएस राय सिंह, कांग्रेस से यात्रा शुरू कर भाजपा व बसपा की राजनीति कर चुके सुरेन्द्रनाथ अवस्थी उर्फ पुत्तू कांग्रेस में लौट आए हैं। सपा के शासन काल में कैबिनेट मंत्री रहे किरनपाल सिंह जिस सीट पर लड़ना चाहते हैं उस पर रालोद का खासा असर है लिहाजा उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल में आस्था जताकर उसका झंडा थाम लिया। भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे महेंद्र यादव ने भी रालोद का झंडा उठा लिया है। सपा से विधायक रहीं गीता सिंह के पति तथा पूर्व डीजीपी यशपाल सिंह पीस पार्टी में शामिल हो चुके हैं। माना जा रहा है कि गीता देरसबेर पीस पार्टी से चुनाव लड़ेंगी। मेरठ से वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव बसपा से जीत चुके शाहिद अखलाक को जब पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला तो उन्हों ने अपनी पार्टी बना कर चुनाव लड़ा। पर, नाकाम रहे। शाहिद अखलाक अब बसपा में लौट आए हैं। बदले में बसपा ने उन्हें मेरठ महापौर पद के लिए तथा उनके भाई राशिद अखलाक का मेरठ शहर से विधायकी का टिकट तय किया है।
जिस पार्टी ने टिकट दिया, चुनाव लड़ाया और विधायक बनने में मदद की, इस बार उसी पार्टी के खिलाफ ताल ठोकने की इच्छा उनके भीतर कुलबुला रही है। इनमें विधायक भी हैं और वे भी जो किसी न किसी तरह विधायक बनना चाहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो पहले विधायक व सांसद रह चुके हैं। विधानसभा में पहुंचने की चाहत ने विधायकों को नए घर के दरवाजे खटखटाने को मजबूर कर दिया है। कुछ के लिए यह मजबूरी सीटों के परिसीमन ने खड़ी की है तो कुछ मौजूदा पार्टी के खिलाफ बने माहौल से पार्टी बदलने को मजबूर हो गए हैं। इसलिए ऐसी नाव की तलाश में हैं जिस पर सवार होकर चुनाव की वैतरणी पार की जाए सके।
दलबदल करने वालों में अभी तक केवल बसपा विधायक फरीद महफूज किदवई की ही सदस्यता समाप्त हुई है। मसौली बाराबंकी से बसपा विधायक फरीद महफूज किदवई ने नौ मई 2011 को हाथी से उतरकर साइकिल की सवारी शुरू की थी। किदवई के अलावा अंबेडकर नगर के जलालपुर क्षेत्र से बसपा विधायक शेर बहादुर सिंह, हरदोई के कृष्ण कुमार सिंह उर्फ सतीश वर्मा, बुलंदशहर के जयभगवान शर्मा उर्फ गुड्डु पंडित भी साइकिल पर सवार हो चुके हैं। इन सबके खिलाफ भी बसपा ने सदस्यता समाप्त करने को याचिका दायर कर रखी है। पर अभी फैसला नहीं हुआ है। सपा विधायक संध्या कठेरिया, सुल्तान बेग, अशोक चंदेल, सुंदर लोधी, सर्वेश कुमार तथा सुल्तान बेग, रालोद विधायक राव वारिस अली व लोकदल के ही विधान परिषद सदस्य हरपाल सिंह सैनी बसपा में चले गए। अतीत में शायद ही कोई ऐसा मौका रहा हो जब हिंदुत्व के सवाल पर भाजपा विधायक यशपाल सिंह चौहान मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी की नीतियों को कोसने में पीछे रहे हों। पर, राजनीति ने ऐसी करवट ली कि वह उसी सपा की गोदी में बैठ गए। उनके साथ भाजपा विधायक डा. राजेन्द्र सिंह भी सपा में शामिल हो गए। मैनपुरी से विधायक चुने गए अशोक चौहान भी पार्टी के विश्वसनीय चेहरे माने जाते थे। पर, इस वर्ष की शुरूआत में ऐसा कुछ हुआ कि उन्होंने भाजपा को कोसते हुए बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। पीलीभीत के एक विधायक के पिता भी जनसंघ से विधायक रह चुके हैं। खुद भी भाजपा से ही विधान सभा का मुंह देखा। पर, पता नहीं क्या हुआ कि बेटे को अपना घर गड़बड़ लगने लगा है। पिछले दिनों विधायक बेटा दिल्ली में कांग्रेसी नेता के साथ फोटो खिंचवाकर भविष्य के रास्ते का संकेत दे चुका है। कल्याण सिंह की बहू प्रेमलता सिंह और कल्याण के ही दूसरे समर्थक विधायक सुंदर सिंह भाजपा में होते हुए भी भाजपा के नहीं है। दोनों कल्याण की पार्टी जन क्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) के साथ हैं। रायबरेली से निर्दलीय विधायक अखिलेश सिंह जीते निर्दलीय थे पर, अब पीस पार्टी में शामिल हो चुके हैं।
भले ही कोई मौजूदा विधायक भाजपा में शामिल न हुआ हो लेकिन दलबदलुओं को गले लगाने में पार्टी सबसे आगे दिख रही है। भाजपा शायद पहली ऐसी पार्टी होगी जिसने संगठन विस्तार के नाम पर अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय कटियार को बाकायदा दलबदलुओं को पार्टी में शामिल कराने के काम पर लगा रखा है। पिछले एक महीने में शायद ही ऐसा कोई दिन रहा हो जिस दिन किसी की भाजपा में ज्वाइनिंग न हुई हो। यहां तक ब्लाक प्रमुख और क्षेत्र पंचायत सदस्यों को पार्टी में शामिल करके अपनी पीठ थपथपाने की होड़ चल रही है। इनके साथ पार्टी में शामिल होने वाले कथित समर्थकों की संख्या अलग है। इनमें सपा नेता व राज्यसभा सांसद रामनारायण साहू, सपा के पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह तथा पूर्व विधायक नरेन्द्र राठौर, फतेहपुर के हीरालाल निषाद व हरदोई के महेन्द्र सिंह यादव, पूर्व विधायक व विधान परिषद के पूर्व सदस्य आनन्द भूषण बब्बू राजा, सपा नेता व पूर्व विधायक बस्ती के आदित्य विक्रम सिंह, पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक व उन्नाव के सपा नेता नत्थू सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं।
भाजपा में शामिल होने वालों में कई चेहरे ऐसे भी हैं जो पहले भाजपा में ही थे। चुनावी भंवर में जब भाजपा की नैया फंस गई तो कूदकर दूसरी नाव पर सवार हो गए। हवा बदली तो फिर पुराने घर का रास्ता पकड़ा। पार्टी को कोसते हुए भाजपा से बाहर गए मोदी नगर से पूर्व विधायक नरेन्द्र सिंह सिसौदिया, भाजपा से सांसद रह चुके फर्रुखाबाद के चंद्रभूषण सिंह उर्फ मुन्नू बाबू, अफजलगढ़ (बिजनौर) से लगातार तीन बार विधायक रह चुके इंद्रदेव सिंह, भिनगा (बहराइच) से विधायक रह चुके चंद्रमणिकांत सिंह, पूर्व सांसद साक्षी महराज, पद्मसेन चौधरी व बहराइच की चरदा सीट से दो बार चुनाव लड़ी सावित्री सहित कई पूर्व विधायक व पूर्व सांसद शामिल हैं।
कड़े अनुशासन का दावा करने वाली भाजपा बीते पांच सालों में अपने विधायकों के दलबदल पर बेबस नजर आ रही है। मुरादाबाद के राजीव चानना व वाराणसी के अजय राय से लेकर यशपाल चौहान तक सात विधायक पाला बदल गए। भाजपा नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। किसी के खिलाफ भी दलबदल विरोधी कानून के तहत याचिका दायर नहीं की। इनमें केवल चानना और राय ही ऐसे हैं जिन्होंने पार्टी छोड़ने के कुछ दिन बाद विधान सभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। बाकी सब इस समय भी तकनीकी तौर पर भाजपा के ही विधायक हैं।
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दलबदलुओं ने पाया राजनैतिक उरुज, धरी रह गयी निष्ठा
कई दल बदलुअओं ने राजनीति में काफी उरूज हासिल किया। कुछ दलों में वे शीर्ष पदों पर बैठे हैं। समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आने वाली डा. रीता बहुगुणा जोशी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर संभाले हुए हैं। बेनी प्रसाद वर्मा केंद्र सरकार में मंत्री हैं।
हवा का रुख भांपकर राजनीति करने वाले ही दलबदल नहीं करते, कई बड़े नेता भी पाला बदलकर नई पार्टियों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बेनी प्रसाद वर्मा सपा को अलविदा कहकर कांग्रेस में गए सांसद बने और अब केंद्र सरकार में मंत्री हैं। आगरा से सांसद रहे राजबब्बर ने सपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा और फिरोजाबाद से लोकसभा पहुंच गए। बसपा में तो दल बदलने वालों की पूरी फौज है। चौधरी लक्ष्मीनारायण, राकेशधर त्रिपाठी, राजपाल त्यागी, बादशाह सिंह, अवधपाल सिंह यादव, डा यशवंत, ओमवती, लखीरामनागर समेत सहित तमाम नेताओं ने लंबे समय तक दूसरे दलों में रहकर राजनीति की।