सीएमओ दफ्तर की शह पर झोला छाप खेल रहे हैं मौत का खेल

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फर्रुखाबाद: जनपद में झोला झाप डॉक्टर न केवल धड़ल्ले से क्लिनिक चला रहे हैं बल्कि नर्सिंग होम तक खोले बैठे हैं| स्वस्थ्य विभाग के अफसरों और बाबू को खुश करके मौत का यह खेल खुलेआम चल रहा है| नये झोला छापों से महीना बांधने या कभी कभार वसूली की दरे बढ़ाने के लिये कभी कभार छापेमारी का नाटक भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी करते रहेते हैं| एक आध एफआईआर भी होती है, परंतु महीने दो महीने बाद यह दुकाने फिर चालू हो जाती है। अधिकांश झोला छाप डाक्टर विभागीय कर्मचारियों द्वारा मासिक वसूली की बात खुले आम स्वीकारते हैं। शहर से लेकर दूरस्थ ग्रामों तक झोला छापों का यह मकड़जाल उनके मासिक वसूली के दावों का जीता जीता प्रमाण है।

जेऍनआई ने अभियान चलाकर झोलाछाप डाक्टरों का जनपद स्तर पर सर्वे कराया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये है। दूरस्थ ग्रामों में जहां झोलाछाप डाक्टर साइकिल या मोटर साइकिलों पर छोटी बक्सियां रखकर गांव गांव फेरी लगाते हैं वही कुछ ने अपने क्लिनिक खोल रखे हैं। वही नगर क्षेत्र व उसके आस पास तो एसे भी यह जानलेवा डाक्टर हैं जिनको स्वास्थ्य विभाग की मनमानी के चलते अब झोलाछाप कहने में भी शर्म आती हे। इन्होंने तो बाकायदा आलीशान नर्सिगहोम खोल रखे हैं।

ऐसे ही कई झोलाछाप डाक्टरों ने जेएनआई के रिपार्टरों के सामने स्वास्थ्य विभाग से लेकर पुलिस थाने तक चलने वाले पूरे खेल का खुलासा कर दिया। डाक्टर की कमाई के आधार पर एक हजार से बीस हजार तक का रेट तय है। जिसकी जैसी कमाई उससे वैसी वसूली। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी के पास बाकयदा झोलाछाप डाक्टरों की पंजिका है। इस पर प्रतिमाह वसूली की रकम का इंद्राज कोड के माध्यम से किया जाता हैं|बाबू  हर माह पैसा ले जाता है जिसमे ऊपर के अफसरों का भी हिस्सा होता है

नगर की सीमा से सटे ग्राम पपियापुर में एसा ही एक दो मंजिला नर्सिंग होम संचालित है। इस नर्सिंग होम के डॉक्टर अजय गुप्ता हर मर्ज की दबा करते हैं| ह्रदय रोग के तो विशेषज्ञ बताते हैं| उन्होंने बताया कि उन्होंने बीएएमएस रांची से किया है| डिग्री दिखाने को कहा तो बताया कि वे डिग्री घर पर रखते हैं| स्थानीय ग्रामीणों ने बतया कि केवल कुछ दिनों एक बड़े डॉक्टर के पास कम्पाउडर की तरह काम करने के बाद ही उन्होंने यह नर्सिंग होम शुरू कर दिया है।

राजेपुर के गांधी में एक डाक्टर रजू अग्निहोत्री किसी दूसरे डाक्टर का बोर्ड फर्जी बोर्ड लगा कर धड़ल्ले से प्रैक्टिस करते हैं। असली डाक्टर को आज तक तो किसी ने देखा नहीं। किसी अधिकारी के पूंछने पर केवल यह बताते हैं कि वह तो कंपाउंडर है। डाक्टर साहब विजिट पर हैं या घर गये हुए हैं। जमापुर चौराह पर अनिल कुमार व उजरामऊ में मुनेश्वर कुमार का भी झोला छाप धंधा जोरों पर है।

मोहम्म्दाबाद मंडी रोड पर एक डाक्टर विजय श्रीवास्तव बैठत् हैं। तीन चार माह पहले तक उनके क्लिनिक पर फिजीशियन व सर्जन का एक बोर्ड भी लगा था। एक एफआईआर के बाद उन्होंने तीन महीने क्लिनिक बंद रखा। बाद में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से सेटिंग हो जाने के बाद उन्होंने केवल इतना किया कि अपना बोर्ड उतार कर अंदर रख लिया व दुकान दोबारा खोल ली। पुरानी ग्राहकी थी, सो दुकान फिर चल निकली। यहीं पर करथिया में राकेश व राजेंद्र नाम के दो भाई प्रैक्टिस करते हैं। नीब करोरी में कुलदीप दास नाम के एक बंगाली डाक्टर है। उनका दवाखाना भी खूब चलता है। यहीं पर महेश चंद्र व उत्तम कुमार भी झोलाछाप व्यवसाय में हैं।

कंपिल थाने के पास एसा ही एक क्लिनिक धड़ल्ले से संचालित है। दबंगई का यह आलम कि दरोगा भी शर्मा जाये। बिना डिग्री के प्रैक्टिस करने के विषय में बोले कि पैसा देते हैं, जिसमें दम हो वह मेरा जो उखाड़ सके उखाड़ ले। यहीं पर अनिल कुमार व एक बंगाली शफाखाना भी अपनी दुकाने चमका रहे हैं।

यह तो केवल बानगी है। पूरे जनपद में लगभग एक हजार से अधिक झोला छाप बेगुनाहों की जान के साथ खिलवाड़ करने में जुटे हैं। दूसरी ओर झोला छाप डाक्टरों पर कार्रवाई के लिये जिम्मेदार डा. राजवीर बताते हैं कि शिकायत मिलने पर विभाग की टीम छापे मारती है। जांच में गडबड़ी मिलने पर कार्रवाई भी की जाती है।