जन जन की कहानी- इस शहर के रिश्वतखोरों ने मेरे कफ़न तक से रिश्वत वसूली..

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आज भारत में अन्ना के पीछे विशाल जन समुदाय उमड़ चुका है| अन्ना अब दुनिया में किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा| रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और अन्ना, ये तीन शब्द आज हमारे जीवन के सोते जागते के शब्द है| हर सुबह अन्ना के साथ नींद खुल रही और रात को सपने में भी अन्ना रहने लगे है|  जरा सोचो जेएनआई के साथ- ऐसा क्यूँ?

हम पूरे भारत की बात नहीं करेंगे| दुनिया नहीं सुधार सकते| मगर खुद सुधार सकते है और कम से कम पडोसी को सुधार सकते है| इसके लिए ये जरूरी है कि हम सच को स्वीकारें| मित्रो इसकी शुरुआत हम खुद से करते है| मैं अपनी कहानी लिख रहूँगा कि कब कब मुझे रिश्वत देनी पड़ी और उम्मीद करूंगा कि आप भी लिखे और प्रकाशित मैं करूंगा| हाँ डरने की जरुरत नहीं| जब आप दी हुई रिश्वत नहीं लिख सकते तो हम ये मानने को तैयार नहीं कि आप अन्ना के साथ है| आपका आन्दोलन दिखावा है| हर पाठक अपना दुखड़ा लिखे| यदि नहीं लिख सकता तो ये सबसे बड़ा सच है कि वो अन्ना के साथ नहीं है|

1- पंकज दीक्षित की कहानी-

जीवन की पहली रिश्वत मैंने वर्ष 1992 में दी जब मैंने 20 वर्ष की उम्र में एक फेक्ट्री लगाने के लिए उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम से कर्ज लेने के लिए आवेदन किया| पढ़ाई के बाद मुझे अपने लिए काम तलाशना था| अपने पैरो पर खड़ा होना था| पिता के फ़ौज से रिटायर होने के बाद खड़े किये गए व्यापार में काम करते हुए मेरे अन्दर एक बड़ा काम करने का हौसला था| ये कर्ज मैंने पिताजी के नाम लिया था| लगभग 6 लाख रुपये का कर्ज| जिसे लेने के लिए मुझे कई प्रकार के कागज बनबाने थे| जिस जमीन पर कारखाना लगना था उसकी सरकारी कीमत की मालियत का सरकारी कागज हासिल करना था| स्थायी निवास प्रमाण पत्र हासिल करना था| इन सबके लिए सबसे पहली रिश्वत मुझे पाठक नाम के (बात बीस साल पुरानी है, लिहाजा पूरा नाम याद नहीं आ रहा) लेखपाल को कि उन दिनों घटियाघाट के पास स्थित गाँव अमेठी कोहना का लेखपाल था, को देनी पड़ी| लेखपाल कानूनगो, तहसीलदार सबकी रिश्वत का हिस्सा उस लेखपाल ने लिया और मुझे सारे कागज मिल गए| ये रिश्वत 2000/- की थी जो कि मेरे प्रोजेक्ट कास्ट का हिस्सा नहीं था| ये रिश्वत मुझे 15 दिनों तक किसी भी कागज के आगे न बढ़ने पर देनी पड़ी और रिश्वत देते ही सारे कागज तीसरे दिन मिल गए|

इसके बाद मैंने उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम के इटावा ब्रांच के मेनेजर सहित कई लोगो रिश्वत देनी पड़ी| कुल लोन का 8 प्रतिशत हिस्सा मुझे उन्हें अग्रिम देना पड़ा| ये साड़ी रिश्वत उसी दफ्तर के एक अफसर के के गुप्ता ने वसूल की थी| ये भी मेरे प्रोजेक्ट कास्ट का हिस्सा नहीं था|

उसके बाद मैंने जिला उद्योग केंद्र फर्रुखाबाद में कारखाने के पंजीकरण के लिए रिश्वत दी|

प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड से अन्नापत्ति प्रमाण पत्र लेने के लिए रिश्वत दी|

जिस जमीन पर कारखाना लगना था उसका भू उपयोग परिवर्तन होना था इसके लिए नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय में इंजिनियर, बाबु और नगर मजिस्ट्रेट को घूस देनी पड़ी| ये भी मेरे प्रोजेक्ट कास्ट का हिस्सा नहीं था|

कारखाने का बिक्री कर कार्यालय में पजीकरण कराने के लिए 1000 रुपये की रिश्वत चुकानी पड़ी|

बिक्री कर कार्यालय में रिटर्न दाखिल करने, फार्म सी जारी करवाने से लेकर हर काम की रिश्वत बिक्री कर कार्यालय में बाबू लेता था और साहब तक पहुचती थी| ये भी मेरे प्रोजेक्ट कास्ट का हिस्सा नहीं था| वकील रिश्वत देने के लिए प्रोत्साहित करते रहे और केस सुलझाने के नाम पर रिश्वत लेते थे| उस कारखाने के फ्लाप होने के बाद मिले तजुर्बे में पता लगा कि अफसर और वकील मिलकर अपने व्यापारी ग्राहक को ठगते है| ये आज भी हो रहा है| व्यापार कर (पहले बिक्री कर ) में ये सबसे घिनौनी कहानी है|

कारखाने में बिजली का कनेक्शन लगाने के लिए मुझे 1 पोल का एस्टीमेट जमा करना था| उसके बाबजूद मुझे खम्भा, बिजली का तार और खम्बे से कारखाने के अन्दर तक की 50 मीटर की महगी बिजली पवार केवल खुद खरीदनी पड़ी| इस सब पर लगभग 12 हजार का अतिरिक्त खर्च आया तो मेरे प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं था| ये बात 1993 की बात है मेरी उम्र तब मात्र 22 साल की थी मुझे अफसर याद नहीं|

कारखाने में टेलीफोन लगाने के लिए 1000 रुपये की रिश्वत जूनियर इंजिनियर और लाइन मेन को देनी पड़ी| ये भी मेरे प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं था|

मेरे कारखाना वर्ष 1994 तक लग चुका था| माल बनाने के लिए वर्किंग केपिटल उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम को देनी थी मगर एन वक़्त में वित्तीय निगम के अधिकारिओ ने उक्त रकम को जारी करने के एवज में 15 प्रतिशत कि अग्रिम मांग रख दी| मेरे बजट में सब कुछ ख़तम हो चुका था| मेरी मार्जिन मनी जो कि केवल 2.50 लाख थी उसके मुकाबले मैं 3.50 लाख खर्च कर चुका था और रिश्वत के आकस्मिक खर्चो से सारा बजट बिगड़ चुका था| मेरे पास अग्रिम रिश्वत देने के लिए 30000 रुपये नहीं थे| माँ ने कहा मेरे जेवर बेच दो- मैंने मना कर दिया| क्यूंकि 2 साल में इतना तजुर्बा हो चुका था कि अगर फेल हो गया तो कुछ नहीं बचेगा| अभी तक मैंने खुद के काम और पिताजी के साथ कमाई हुई रकम ही खर्च की थी| मैं कारखाने के लिए वर्किंग केपिटल लेने में फेल हो गया| वित्तीय निगम के अफसरों ने कई बार इटावा का चक्कर लगाने के बाद भी बिना रिश्वत के मेरी बची किस्ते जारी नहीं की| कुल स्वीकृत लोन का केवल ६५ फ़ीसदी मिल पाया और मेरा कारखाना चलने से पहले दम तोड़ गया|

एक पढ़ा लिखा युवक जो कि आईएएस की तैयारी इसलिए छोड़ आया था ताकि इकलौती औलाद होने के कारण अपने माँ बाप के साथ रहकर अपने लिए रोजगार तलाश कर सके और साथ साथ अपने माँ बाप की देखभाल भी कर सके| उस नौजवान को इसी शहर के दो दर्जन लोगो ने तिल तिल निचोड़ कर अपने बच्चो के लिए खिलौने खरीदे, मकान बनाया और शराब और मुर्गा उड़ाया| एक नौजवान जो पूरे देश के कोने कोने में रहकर शिक्षा प्राप्त कर एक दर्जन भाषाओ में खुल कर दखल रखता था सब भूल गया| एक नौजवान जिसने अपनी मेहनत के दम पर एक बड़ा काम करके कई लोगो को रोजगार देने का सपना बुना था, इन रिश्वतखोरो के कारण मुह छुपाने के लिए मजबूर होने लगा था| एक नौजवान जो अपने पैरो पर खड़ा होना चाहता था उसके सारे जोश को रिश्वत और भ्रष्टाचार के काकस ने क़त्ल कर दिया|

अब वो नौजवान टूट चुका था, उम्र चौवीस की हो चली थी, बचे खुचे आत्मबल से नया सपना बुनने में लग गया मगर उस समय तो बड़े ही जालिम कातिल उसके जीवन में आये| उन दोनों ने मरघट में किसी लाश के अंतिम संस्कार ने वसूल किये जाने वाले टैक्स की तरह मुझसे रिश्वत वसूल की| उन दोनों में से एक अब अपने को बड़ा समाजसेवी और सूचना के अधिकार का पालनहार समझता है|

कफ़न से भी पैसे वसूल ले गया इनकम टैक्स इन्स्पेक्टर-
(अ)  मेरे कारखाने के बंद होने के बाद आयकर विभाग का इन्स्पेक्टर आयकर विभाग का एक नोटिस लेकर आया| मैं डर गया| सब कुछ तो ख़त्म हो गया| कारखाने से एक पैसा भी आय नहीं हुई और आयकर विभाग का नोटिस उस समय मेरे लिए बड़ी बात थी| मैं घबरा गया मैंने इस अधिकारी  को इस झंझट से मुक्ति दिलाने के लिए कहा तो उन्होंने मेरे कफ़न से एक हजार रुपये वसूल लिए| मेरे सामने ही नोटिस फाड़ कर फेक दिया| बहुत वर्षो के बाद समझ में आया कि सब फर्जी था| ये अधिकारी आज भी आवास विकास कालोनी में रहता है और आजकल आरटीआई का झंडा उठाये घूम रहे हैं| यही नहीं अखबारों ने भी उसे ऐसा छापा है जैसे कितना हरिश्चंद्र हो|

(बी) इसी कड़ी में एक और भी मोटे पेट के रिश्वतखोर का जिक्र लाजिमी है- ये जनाब डीएम (राजस्व) कार्यालय में बाबू थे| मेरा कारखाना बंद हो चुका था| हम उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम का कर्ज नहीं चुका सके| कारखाने की आरसी कट गयी| भला तो इतना था कि कर्ज की रकम करखाने की जमीन की कीमत से ज्यादा नहीं थी वर्ना घर भी नहीं बचता| ये आरसी उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम से फर्रुखाबाद के एडीएम कार्यालय में आई थी किन्तु अभी तक तहसील में वसूली के लिए नहीं भेजी गयी थी| सिंह साहब उस आरसी की जानकारी मेरे पिताजी को देते है| मैं उस दिन व्यापार के काम से कानपूर गया था| पिताजी घबरा गए और इस ‘आजाद’ किस्म के रिश्वतखोर बाबू  ने बेटे के कफ़न की वसूली उसके बाप से कर ली| 10000/- की रकम पिताजी ने जाने कहाँ से इंतजाम करके दी उसे मैं आज तक पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका| एक इमानदार फौजी ने ये रकम या तो अपनी पेशन से चुकाई होगी या फिर खानदानी खेत खलिआन से आने वाले पैसे से| ये रकम इस बात के लिए वसूली गयी कि कुछ दिन आरसी तहसील नहीं भेजी जाएगी और इस बीच हम न्यायालय से आर सी रुकवाने का इंतजाम कर लें| मैं लौट कर आया तो पिताजी का सामना नहीं कर सका| जवानी के जोश में एक बड़ा उद्योगपति बनने का सपना ले चला था| फेल हो गया| सब पिताजी के नाम था| जमीन, कर्ज सब कुछ| अपराध बोध से ग्रस्त हो गया| माँ बाप को कुछ न दे सका, सिवाय इसके कि अब सरकारी पचड़े में फसने की उनकी बारी शुरू हो गयी थी| किसी को तरस नहीं आ रहा था| ये बताने के बाद भी कि हम फेल हो गए बिना रिश्वत के ही हमारी मदद कर दो मगर ये राक्षस तो जैसे हमारे मुर्दे होने का ही इन्तजार कर रहे थे|

खैर अदालत से हमें कोई मदद नहीं मिली| गुहार लगायी कि हमें वर्किंग केपिटल नहीं मिली मगर हमारी नहीं सुनी गयी| 8,000 की फीस और कागज में खर्चे के बाद इलाहाबाद से वकील ने फोन पर बताया कि जज साहब को पचीस हजार देने पड़ेंगे रहत मिल जाएगी| मगर हमारे पास नहीं थे| 8 हजार भी बेकार चले गए|

फिर 1997 में कारखाना नीलाम हो गया| 8 लाख की कीमत वाला कारखाना डीएम आफिस के उसी रिश्वतखोर कठेरिया बाबू के एक परिचित के नाम 3.5 लाख में बिक गया| उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम ने कारखाने को कालातीत धन में डाल अपनी जमा धनराशी वसूल कर ली और मैंने कारखाने के रास्ते पर जाना बंद कर दिया| 15 साल पहले बुना सपना अभी भी खड़ा है| मगर मैंने उधर से गुजरने के बाद भी नहीं देखा| लोगो ने बताया| हाँ कर्ज से मुक्ति मिल गयी थी|

इसके बाद भी मैंने समय समय पर कई बार पुलिस को रिश्वत दी| ये छोटे मोटे मामले थे कोई अपराधिक नहीं थे| कहीं वाहन चालान जैसे मामले रहे होंगे| दो साल पहले एक जिलाधिकारी को 18 हजार की रिश्वत शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के माध्यम से पहुचाई (जैसा कि उस अधिकारी ने रिश्वत लेते समय मुझे बताया) | एक एलआईयू के सिपाही जिसे उसकी मांग के 500/- रुपये के मुकाबले केवल 200/- (रिश्वत देने का विडियो घर पर ही बना लिया था मगर डिब्बे में बंद कर डाल दिया) ही चुकाए इसलिए मेरी पत्नी के नाम एक पत्रिका के टाइटल के लिए लगे प्रार्थना पत्र में एंटी रिपोर्ट लगा दी गयी| बाकी की कहानी भी लिखूंगा… डर से सच नहीं छुपाऊँगा…

मैं जेएनआई के सुधी पाठको से भी यही उम्मीद करता हूँ कि वे अपनी कहानी लिखे और घूस खोरो का पर्दा फास करें| ताकि जो घूसखोर इस शहर में रहते है शर्मिंदा हो…. डरे नहीं जितना डरेंगे उतना ये डरायेंगे|…..