सरकार हो या विपक्ष दोनों कतरा रहे हैं जनलोकपाल से

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फर्रुखाबाद: जनलोकपाल के समर्थन में अन्ना हजारे के साथ चाहे जितना भी जनसैलाब उमड़ता जा रहा हो, लेकिन कानून बनाने का संप्रभु अधिकार के सवाल पर संसद समझौते के लिए तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री और पूरी सरकार ने तो अन्ना के अनशन को ही असंवैधानिक करार दे दिया, लेकिन अन्ना के आंदोलन का समर्थन कर रहे विपक्ष ने भी जनलोकपाल के सविल सोसाइटी के मासौदे से कन्नी काटता नजर आर रहा है। विपक्ष ने बिल का मसविदा तैयार करने के लिए सिविल सोसाइटी के साथ पांच मंत्रियों की संयुक्त कमेटी के गठन का हवाला देते हुए सरकार को ही संसद की गरिमा गिराने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। और यह विपक्ष का दबाव ही था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अन्ना हजारे के खिलाफ सख्त रवैया अख्तियार करने की घोषणा कर दी। लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगहों पर प्रधानमंत्री ने कहा, सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के नागरिकों के अधिकार के हक में है, लेकिन कानून बनाने के संसद के विशेषाधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, अन्ना हजारे अपना कानून संसद पर नहीं थोप सकते। उन्हें संसद के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपना वह काम करने देना चाहिए, जिसके लिए उन्हें चुना गया है। प्रधानमंत्री ने पुलिस के  कदम का भी बचाव किया और कहा कि शांति कायम रखने के लिए हजारे तथा उनके कुछ समर्थकों को गिरफ्तार करने जैसा दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन अवश्यंभावी कदम उठाना पड़ा। प्रधानमंत्री के बयान पर चर्चा के दौरान लोकसभा और राज्यसभा में क्रमश: विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री के बयान की धज्जियां उड़ाईं, लेकिन लोकपाल के कुछ प्रावधानों के साथ असहमति भी जरूर जताई। सुषमा ने तो साफ कहा, सरकार का लोकपाल विधेयक कमजोर है, लेकिन जनलोकपाल के भी कुछ प्रावधानों के पक्ष में हम नहीं हैं। लोकसभा में चर्चा के दौरान कपिल सिब्बल ने अन्ना के अनशन को असंवैधानिक बताया दिया।