चाल दर चाल- पोस्टमार्टम की विडियोग्राफी भी अँधेरे में करा दी?

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जिलाधिकारी के आदेश के बाद भी विडियो ग्राफी के लिए डॉक्टर द्वारा बिना विडियोग्राफी की लिखित परमिशन के पोस्ट मार्टम कैमरा चलाने से मन करने के कारण देरी होती गयी| नतीजा पोस्ट मार्टम के लिए तय मानक अनुसार प्राकृतिक प्रकाश लगभग शुन्य हो चला और विडियोग्राफी भी उसी प्रकाश में होने लगी| आखिर जिलाधिकारी के मौखिक आदेश के कोई मायने नहीं थे क्या? क्या पोस्ट मार्टम शुरू होने के बाद जिलाधिकारी की अनुमति के प्रपत्र नहीं जमा हो सकते थे? ये ऐसे अनसुलझे सवाल है जो डॉ प्रियंका की मौत के बाद हुए पोस्टमार्टम के तरीके पर खड़े हो रहे हैं|

डॉ प्रियंका की मौत को भले ही पैसे और सत्ता की ताकत के बल पर सबूतों को कमजोर बनाकर अस्पताल की लापरवाही से झुट्ला दिया जाए किन्तु ये कटु सत्य है कि मौत लापरवाही के कारण ही हुई है| उत्तर प्रदेश में पिछले कई महीनो से इस प्रकार के पोस्टमार्टम हुए जिनमे दुबारा पोस्टमार्टम होने पर कई डॉक्टर नप चुके हैं| मीडिया के हो हल्ला के बाद ही प्रदेश सरकार ने अपनी खाल बचाने के लिए दुबारा पोस्टमार्टम करना पड़ा| आखिर डॉ प्रियंका पाण्डेय की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए किये गए पोस्टमार्टम की विडियोग्राफी के दौरान कैमरा अँधेरे में क्यूँ चला?

जबकि ऐसे मामलों में स्पष्ट निर्देश हैं कि-

*विडियोग्राफी एक परफेक्ट फोटो ग्राफर से कराया जाए|
*विडियो ग्राफी के समय हर कोण से शव के फोटो बनाये जाए|
*रोशनी की व्यवस्था इतनी होनी चाहिए ताकि शरीर का हर अंग प्राकर्तिक रंगों में दिखाई पड़े|
*कैमरा defocas नहीं होना होना चाहिए|
*शव के क्लोज शोट अधिकतम होने चाहिए|
*किसी विशेष बिंदु को जाँच के लिए शोट ज़ूम आउट व् ज़ूम इन किया जाना चाहिए|