कैदियों की ऐशगाह बन गया है लोहिया अस्पताल

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जुआ, शराब व शबाब के दौर चलना आम

धड़ल्ले से होता है मोबाइल फोन का उपयोग

फर्रुखाबाद: जेल में बंद अपराधियों के लिये सरकारी लोहिया अस्पताल ऐशगाह बन कर रह गया है। यहां पर उनके गुर्गे जुआ, शराब और शबाब की सुविधायें  आसानी से मुहैय्या कराते रहते हैं। बचा-खुचा दाना पानी सुरक्षा कर्मियों को भी मिलता रहता है। इन्हीं एहसानों में दबे सिपाही इन अपराधियों की ओर से दी जाने वाली लालच में फंस जाते हैं, और अपराधी आसानी से फरार हो जाते हैं। यही कारण है कि जेल से लोहिया अस्पताल के लिये रेफर होने के लिये मोटी रकम मांगी जाती है। नतीजे में वास्तविक गंभीर रोगी तो सुरक्षा कर्मियों की कमी के बहाने जेल में तड़पत रहते हैं, परंतु शातिर अपराधी लोहिया में ऐश करते हैं।

लोहिया अस्पताल में कैदी वार्ड अलग बना दिया गया है। यहां पर सुरक्षा की दृष्टि से आम मरीजो को नहीं रखा जाता है। परंतु इसका लाभ बंदी गोपनीयता के लिये उठाते हैं। लोहिया अस्पताल में इस समय प्रशासन अधोषित रूप से यहां पर लगे संविदा सफाई कर्मियों के हाथ में है। यही कर्मचारी वसूली उगाही करते हैं व उसमे से मोटी कमाई ऊपर वालों को भी पहुंचाते है। हद तो यह है कि यही सफाई कर्मी अब तो मरीजों को इंजेक्शन व ड्रिप भी लगाते है। नर्से व वार्ड ब्वाय इत्मिनान से अपने कम्ररों में आराम फरमाते रहते है। कई बार तो कम पढ़े लिखे यह सफाई कर्मी भूल से एक ही मरीज को दो दो बार इंजेक्शन लगा देतो हैं और जाहिर है कि किसी किसी को तो छोड़ भी जाते होंगे।

लोहिया के कैदी वार्ड में रात तो दूर दिन में ही किसी मेहमान खाने का सा माहौल रहता है। मोबाइल फोन रखने पर तो खैर यहां कोई पाबंदी है ही नहीं। जुए व शराब के बीच होटलों से आने वाले लजीज खानों की दावतों का दौर चलता रहता है। गुर्गे आते रहते है व अपनी श्रृद्धा और औकात के अनुसार भेंट चढ़ाते रहते हैं। कभी तो यहीं से यह अपराधी अपने मोबाइल फोन से ही वसूली भी करते हैं।कुछ दिन पूर्व एक प्रधान पति भी यहां अच्छा वक्त गुजार चुके हैं। हत्या के मामले में सजा काट रहे एक शिक्षक भी विगत दो माह से यही पर आराम फरमा रहे हैं। इतना ही नहीं यही से बेसिक शिक्षा विभाग के फर्रुखाबाद नगर क्षेत्र का सरकारी कामकाज भी परोक्ष रूप से यही से संचालित हो रहा है। रात ढले तक तो शबाब का भी दौर शुरू हो जाता है। कुछ अपराधी अपनी पत्नियों को सेवा के लिये बुलाते हैं तो कुछ को उनके गुर्गे बाजारू लड़कियां भी उपलब्ध करादेते है। इसके लिये यदि मौका लगा तो कोई बंद वार्ड इन सफाई कर्मचारियों की मेहरबानी से अच्छी खासी बख्शीश के बदले खोल दिया जाता है या अस्पताल की सुनसान पड़ी रहने वाली ऊपरी मंजिल का उपयोग किया जाता है। सफाई कर्मचारी आम तौर पर जीने पर रखवाली के लिये बैठे रहते हैं।