फर्रुखाबाद: प्रदेश की बसपा सरकार का अचानक हृदय पपिवर्तन हो गया। अपने पूर्व सहयोगी दल भाजपा द्वारा मोअल्लिम उर्दू डिग्रीधारकों के उर्दू शिक्षक के तौर पर नियुक्त पर लगायी गयी रोक के विरुद्ध जब 14 वर्ष की लड़ाई के बाद, विगत वर्ष उच्च न्यायालय ने डिग्री धारकों के पक्ष में फैसला सुना दिया, तो माया सरकार इस फैसेले के विरुद्ध विशेष अपील में चली गयी थी। अब इसे बसपा का मिशन 2011 कहें या सोशल इंजीनयरों की कोई नयी तकनीक मानें, प्रदेश सरकार ने अपनी अपील वापस ले ली है। चुनावी वर्ष में सरकार की इस पहल को खासा महत्पूर्ण माना जा रहा है। इससे फिलहाल डिग्री धारकों को उर्दू शिक्षक बनने का रास्ता साफ तो हो गया है, पर इस निर्णय पर मैडम कब पुनर्विचार कर डालेंगी यह कोई नहीं कह सकता।
प्रदेश में उर्दू शिक्षकों के कुल तीन हजार 250 पद रिक्त है। 1994-95 में मुलायम सिंह की सपा सरकार के शासन काल में बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में 14000 उर्दू डिग्री धारकों को बतौर उर्दू शिक्षक नियुक्त किया गया लेकिन बाद में प्रदेश में सत्ता संभालने वाली भाजपा सरकार ने 11 अगस्त 97 को इन्हे अपात्र मानते हुए नयी भर्ती पर रोक लगा दी थी। मोअल्लिम-ए-उर्दू डिग्री धारक लगातार मांग कर रहे थे कि उन्हें बी0 टी0 सी0 की समकक्षता दी जाए और जो अभ्यर्थी 1997 से पहले प्रशिक्षण ले चुके हैं उन्हें बेसिक शिक्षा परिषद के विद्धालयों में उर्दू शिक्षकों के पद पर भर्ती किया जाए परन्तु सरकार इसकी अनुमति नहीं दे रही थी। कुछ दिन पहले उन्होंने लखनऊ में प्रदर्शन कर बी0 टी0 सी0 का दर्जा देने की सरकार से मांग की थी।
फरवरी 2010 में हाईकोर्ट से डिग्री धारकों को मिली जीत के बाद प्रदेश सरकार ने नियुक्ति पर रोक को जारी रखा, और न्यायालय के आदेश के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका डाल दी। उर्दू डिग्री धारक भटकते रहे। बहरहाल मोअल्लिम डिग्री धारकों की मेहनत रंग लायी और प्रदेश सरकार ने अपनी अपील वापस ले ली है। इस फ़ैसले से प्रदेश के क़रीब दस हज़ार से ज़्यादा मोअल्लिम डिग्री धारकों को लाभ होगा। मोअल्लिम डिग्री धारकों के बेसिक शिक्षा स्कूलों में शिक्षक बनने का रास्ता साफ हो गया है। फैसले की टाइमिंग को लेकर अवश्य सवाल उठ रहे हैं।