सतीश दीक्षित की कलम से-
फर्रुखाबाद जिले में जिस बात को सभी प्रबुद्ध और जागरूक जन जानते हैं| वह बात लखनऊ के भाजपा प्रदेश कार्यालय में बड़ी ही धूमधाम के साथ संपन्न हो गई| बात पूर्व सांसद चन्द्र भूषण सिंह मुन्नूबाबू का तीसरा चौथा या पांचवां दल बदल कथित घर वापसी|
दल बदल को अपने-अपने निहित तात्कालिक लाभों के मद्दे नजर सभी राजनैतिक दल और नेता प्रोत्साहित करने हैं| जो आता है उसके नए घर में प्रशंसा होती है जो जाता है उसकी पुराने घर में लानत मलामत होने लगती है| मतलब यह है कि दल बदल के इस लम्बे चौड़ें हमाम में कमोवेश सभी नेता और राजनैतिक दल दिगंबर भेष धारी हैं|
दल बदल की भयंकरता और लोक तांत्रिक व्यवस्था पर पड़ने वाले उसके दुष्परिणामों से ऊपर तो सब नेता और राजनैतिक दल चिंता जताते हैं| परन्तु उस पर प्रभावी रोकथाम लगाने में दिलचस्पी किसी की नहीं हैं| बातें चाहे कितनी ही नीतियों व सिद्धांतों की हों वास्तविकता यह है कि दल बदल केवल इसलिए होता है कि जो कुछ पुराने घर में रहते नहीं मिल सका वह दल बदल से मिल जाए| आखिरकार सभी दलों को तलाश जिताऊ उम्मीदवारों की ही रहती है| अगर तीन वार सपा से सांसदी चुनाव का टिकट पाने वाले और दो बार जीतने वाले मुन्नू बाबू के बेटे को सपा भोजपुर विधान सभा से जमालुद्दीन सिद्दीकी के स्थान पर पार्टी प्रत्याशी बना देती तब फिर निश्चित ही लखनऊ में हुयी घर वापसी या दल बदल नहीं होता| लेकिन तब शायद घोषित सपा पत्याशी किसी नए घर या ठिकाने की तलाश में निकल पड़ते| यदि जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में सपा विधायक नरेन्द्र सिंह यादव के कथित काले कारनामों को माफ़ करके उन्हें अमृतपुर विधान सभा क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी नहीं घोषित किया जाता तब फिर वह कितने दिन सपा की और सेवा करते इसका जवाब तो वही दे सकते हैं|
अभी तो शुरूआत ही है| प्रत्याशी अभी केवल सपा और बसपा ने ही घोषित किये हैं| उन पर भी विघ्न संतोषियों के अनुसार परिवर्तन की तलवार लटकी है| सभी दलों के प्रत्याशियों की घोषणा होने दीजिये| घमासान का असली नजारा तो उसके बाद ही देखने को मिलेगा|
दल बदल में सब कुछ मीठा ही मीठा नहीं होता है| मुन्नू बाबू ने जिस घर में अपनी पुनर्वापसी की है उसमे उन्ही की ही तरह भाजपा और सपा में सुविधा अनुसार चहल कदमी करने वाले और जब चाहो तो निजी पार्टी बनाने और उसका विलय कर देने वाले साक्षी जी महाराज पहले से ही विराजमान हैं| मुन्नू बाबू ने पिछली वार भाजपा इन्ही साक्षी जी की बजह से छोडी थी| इन्ही साक्षी जी ने भूड नगरिया ( राजेन्द्र नगर ) में सपा विधायक नरेन्द्र सिंह यादव द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुन्नू बाबू को ” सड़े आलू का बोरा ” खिताब से नबाजा था| अब दोनों एक साथ एक ही पार्टी में रहते हुए क्या-क्या गुल खिलायेंगें| लोक सभा चुनाव तक दोनों एक साथ रह पायेंगें यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा| कुछ-कुछ यही स्थिति पिता की खून पसीने से सींची गई पार्टी को छोड़कर हांथी की सवारी करने और बड़े वेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले कि हांथी से उतर कर पुनः अपने घर लौटने वाले मेजर सुनील दत्त द्विवेदी की भी होगी फिर फेर का संग है देखो कब तक चलता है|
दल बदल की इस भयानक महामारी को रोकने के दो ही तात्कालिक उपाय हैं| पहला राजनैतिक दलों की प्रबल इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है और दूसरा आम मतदाता के प्रबल पुरुषार्थ पर| सामन्यतः दल बदलू का सामान्य गणित यह होता है कि उसकी अपनी बिरादरी का वोट उसके नए ठिकाने के प्रतिवद्ध वोट से मिलकर सफलता का पर्याय बन जाएगा| शरण देने वाले राजनैतिक दल की सोंच भी यही होती है कि आने वाले की विरादरी का वोट पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगा|
अगर सारे राजनैतिक दल लोकतंत्र और देश के हित में एकजुट होकर इस बात पर सहमत हो जाएँ कि दल बदल करने वाले किसी भी व्यक्ति को दल में तीन साल तक एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने पर ही चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाएगा| इस स्थित में दल बदल और विशेष रूप से चुनाव से पूर्व होने वाले दल बदल अपने आप प्रभावी अंकुश लग जाएगा| परन्तु सरकारी प्रयासों और चुनाव आयोग की संस्तुतियों आदि का वास्ता देकर कोई भी राजनैतिक दल इस दिशा में कदम बढ़ाएगा| इसकी उम्मीद जिताऊ उम्मीदवार की खोज में लगे किसी से करना ही बेकार है| सभी दागी अपराधी को टिकट न देने की कसमें खायेंगें सभी दल बदल पर अंकुश लगाने की बता भी करेंगें परन्तु कथित जिताऊ उम्मीदवार की खोज में वह सारे पाप करेंगें जो उन्हें नहीं करने चाहिए|
लोकतंत्र की असली मालिक जनता है| चुनाव को महँगा करने वाले चुनाव में मतदान न करने वाले लोकतंत्र के हितैषी नहीं हैं| दल बदल की इस बीमारी का इलाज भी सामान्य मतदाता के पास ही है| मतदाता किसके पक्ष में मतदान करें यह पूर्णतः उसके अपने हाँथ में है| दल बदलू जातिवादी कुनवा परस्त अवसर वादी दल और प्रत्याशी केवल धन बल बाहुवल के बल पर इससे जीतते हैं क्योंकि आम मतदाता उत्साह और उमंग के साथ मतदान के लिए निकलता ही नहीं है| हमारी मतदान के प्रति इस बेरुखी के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ता है, महंगाई बढ़ती है, विकास का चक्का जाम हो जाता है व बेरोजगारी, अराजकता बढ़ती जाती है| हम ५ साल सरकारों व जनप्रतिनिधियों को कोसते रहते हैं| परन्तु जब उन्हें चुनने और बदलने का अवसर आता है तब हम मतदान करने और मतदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के स्थान पर कोई न कोई बहाना बनाकर घरों में कैद हो जाते हैं|
जिस दिन आम मतदाता कष्ट और परेशानी सहकर भी तीर्थयात्रा की तर्ज पर लोकतंत्र को चुनाव यज्ञ में अपने मतदान की आहुति देने निकल पडेगा| दल बदल करने वाले लोकतंत्र को लूटने और बदनाम करने वाले लोग राजनैतिक दल और प्रत्याशी स्वतः ही चुनाव मैदान से बाहर हो जायेंगें| चुनाव सुधरने का इन्तजार मत करिए| इनके मार्ग में बाधाएं खड़ी करने वालों की लाइन बहुत लम्बी है| इन बाधाओं को हटाने के लिए हमें मतदान केन्द्रों पर निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान की कभी खत्म न होने वाली लाइन में लगाकर अपने लोकतंत्र को सच्चा और अच्छा बनाने के लिए पूरे उत्साह के साथ मतदान करने की आदत डालनी पड़ेगी| विश्वास है कि आप ऐसा ही करेंगें|