डेस्क:चुनाव का समय आते ही नेता लोग पहले से बेहतर की तलाश मे इधर उधर पार्टियों में गोता लगाते दिख रहे है फिर वह चाहे देश की सबसे पुरानी पार्टी हो,देश की सबसे बड़ी पार्टी हो या फिर चुनाव में नई हवा,नई सपा बताने वाली पार्टी हो,पार्टी बहन जी की हो,पार्टी नेताजी की हो,पार्टी भैया की हो पार्टी दीदी की हो लेकिन हर पार्टी में एक बात कॉमन है चुनाव आने पर इनके नेता पहले से बेहतर की तलाश में दल बदल लेते हैं| आज-कल की राजनीति का रंग-रूप बदल चुका है।यह भी पहले जैसी नहीं रही।पुराने जमाने के गुजर चुके नेता अगर गलती से दोबारा जिंदा हो जाएं तो ऐसे हालात देखकर अपना सिर पकड़ लें। आज के समय में राजनीति बदली है और बदले की राजनीति भी शुरू हो गई है।पहले दलबदल हुआ करता था,यहां तक तो गनीमत थी।तब का नेता सुबह एक पार्टी में होता था।दोपहर होते-होते पुरानी पार्टी का मैल अंतरात्मा की आवाज के साबुन से रगड़-रगड़ कर छुड़ाता था। फिर अगली सुबह नई पार्टी ज्वाइन करता था। तब राजनीति की भी अपनी कुछ एक मान-मर्यादाएं हुआ करती थीं। किसी नेता की ऐसी हरकत को गिरी निगाहों से देखा जाता था। उसे दलबदलू कहा जाता था। मगर आज के नेताओं के लिए यह सब आम बात है|दल-बदलुओं का इतिहास भारत ही नहीं पूरी दुनिया में बहुत पुराना है,अपने राजनीतिक और निजी हित के लिए नेताओं ने इस कदर राजनीतिक पार्टियां बदली हैं कि इसके अनूठे रिकॉर्ड बन गए हैं|