जांच के दौरान एआरटीओ ने किया एसडीएम को पिटवाने का प्रयास?

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फर्रुखाबादः जांच के उपरांत उपजिलाधिकारी सीपी उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंप दी है। रिपोर्ट के अनुसार एआरटीओं कार्यालय में भृष्टाचार और दलाली को बोलबाला है। महत्वपूर्ण अभिलेख और रिकार्ड गायब हैं। नवीनीकरण शुल्का जमा कराने के बाद भी लाइसेंस और पंजीयन को फर्जी बता देना आम बात है। स्वयं विभागीय अधिकारी श्रीराम वर्मा नियम कानून को ताक पर रखकर स्वेच्छाचारिता से कार्य करने के आदी है। स्थिति यह भी बनी कि जांच के दौरान एआरटीओ ने दलालों को उकसाकर शांति भंग कराने का भी प्रयास किया। मजे की बात है कि इतनी सब अनियमितताओं के बावजूद एक भी अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध एफआईआर नहीं की गयी है।

भृष्टाचार और दलाली का अड्डा बना है एआरटीओ

आठ वर्षों के रजिस्टर गायब, अभिलेओं में हेराफेरी

विदित है कि एआरटीओ कार्यालय में भृष्टाचार और दलाली की शिकायतों के आधार पर जिलाधिकारी रिग्जिन सैम्फेल ने उपजिलाधिकारी सीपी उपाध्याय और सहायक लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा साहित्य कटियार को विस्तृत जांच के आदेष दिये थे। यह बात श्री सैम्फैल के एक माह पूर्व दुर्घटनाग्रस्त होने से पूर्व ही है। डीएम ने जांच तीन दिन में करने के निर्देश दिये थे। पहले तो एआरटीओ महोदय ने जांच अधिकारियों को घास ही नहीं डाली। कई बार चक्कर काटने के बाद जैसे तैसे जांच शुरू हुई तो एआरटीओ श्रीराम वर्मा ने जांच के दौरान ही आक्रामक रवैया अख्तियार कर लिया। जो रिकार्ड लिपिकों ने प्रस्तुत किया भी उससे स्पष्ट था कि इसके साथ छेड़छाड़ की गयी है। रजिस्टरों के पेंजों पर नंबर तक नही पड़े थे, और नही इनपर किसी अधिकारी के हस्ताक्षर थें। पुराने रिकार्ड के बारे में अधिकांशतयः यही जवाब मिला कि यह अभिलेख उपलब्ध ही नहीं है। कहां गया के सवाल पर जवाब मिलता कि, पता नहीं मै तो बाद मे आया हूं। जांच के दौरान एकबार तो एआरटीओ और एसडीएम के बीच तनातनी की नौबत आ गयी। जांच के दौरान एआरटीओ ने तो बयान दिये और न ही अपना पक्ष लिखित रूप से प्रस्तुत किया।

आखिर श्री उपाध्याय ने जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रेषित कर दी है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रिपोर्ट में जो कुछ लिखा गया है वह वास्तव में जांच से अधिक एक शिकायत ही है। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 से 1998 के बीच के रिकार्ड ही गायब हैं। इसकी जिम्मेदारी तक लेने को कोई अधिकारी या कर्मचारी राजी नहीं है और न ही इस संबंध में कोई एफआईआर दर्ज करायी गयी है। कार्यालय में शुल्क जमा करने की कोई रसीद उपभोक्ता को नहीं दी जाती है और न ही उसके द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों की प्राप्ति रसीद दी जाती है। जानबूझ कर काम में विलंब किया जाता है और ऐसी स्थिति पैदा की जाती है जिससे दलालों को बढ़ावा मिले और उपभोक्ता को सीधे काम कराने में कठिनाई हो।

जांच रिपोर्ट में एक मजेदार तथ्य यह भी बताया गया है कि लगभग एक सैकड़ा ड्राइविंग लाइसेंस लंबित हैं। पूछने पर एआरटीओ ने बताया कि जिलाधिकारी की ओर से हेल्मेट रसीद दिखाने की अनिवार्यता के चलते लाइसेंस जारी नहीं किये गये। परंतु इसी के साथ लंबित लगभग दो दर्जन चार पहिया वाहनों के लाइसेंस क्यों लंबित हैं इसका जवाब किसी के पास नहीं था।

जानकारी के अनुसार जांच रिपोर्ट का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसमें जांच अधिकारी एसडीएम और सहायक लेखाधिकारी ने संयुक्त हस्ताक्षर से दी गयी रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की है कि जांच के दौरान एआरटीओ ने सार्वजनिक रूप से दलालों को भड़काकर शांतिभंग कराने का भी प्रयास किया गया। शायद इसका यह आषय नहीं है कि जांच में गये एसडीएम को पिटवाने का भी प्रयास किया गया।

रिपोर्ट भेज दिये जाने के बाद भी जांच अधिकारी श्री उपाध्याय और श्री कटियार इस संबंध में कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। काफी कुरेदने के बाद श्री उपाध्याय ने बताया कि रिपोर्ट डीएम कैंप आफिस भेज दी गयी है। जिलाधिकारी के आदेष पर अब अग्रिम कार्रवाई की जायेगी। अभिलेख गायब होने के मामले में संबंधित कर्मचारी और अधिकारी के विरुद्ध एफआईआर की बात भी वह टाल गये।