डेस्क:आज विश्व मुस्कान दिवस है। इसकी शुरुआत 1999 से हुई,जिसे अक्टूबर के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है। लेकिन देखा जाए तो हर चेहरे पर मुस्कान लाने का जितना बेहतर जरिया स्माइली बना हुआ है उतना और कुछ नहीं। इस स्माइली की भी अपनी एक रोचक कहानी है।आज जब लोग सोशल मीडिया पर अपने जज्बातों को बयां करते हैं तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्माइली की ही होती है। लेकिन कम ही लोगों को इसकी कहानी के बारे में पता होगा। स्माइली की उत्पत्ति 1963 में हुई। एक अमेरिकी इंश्योरेंस कंपनी ने अपने नाराज कर्मचारियों को मनाने और उनमें जोश भरने के लिए एक विज्ञापन और पब्लिक रिलेशन एजेंसी चलाने वाले हार्वी रास बॉल से संपर्क किया।कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने दूसरी कंपनी के साथ विलय किया है इससे उनके कर्मचारी नाराज हैं। वह चाहते हैं कि उनके कर्मचारियों की नाराजगी दूर हो। इसके लिए हार्वी ने एक नायाब तरीका निकाला।उन्होंने नाराज कर्मचारियों को मनाने के लिए पीले रंग का एक हंसता हुआ चेहरा बनाया जिसे आज स्माइली के नाम से जाना जाता है। ये स्माइली कर्मचारियों को बहुत पसंद आया। यह दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया। हार्वी ने इसे बनाने के लिए 45 डॉलर यानी आज के हिसाब से करीब 3100 रुपये लिए थे।
कंप्यूटर की दुनिया में 1982 में आया स्माइली
19 सितंबर 1982 को अमेरिका के पिट्सबर्ग स्थित कानर्गी मिलॉन यूनिवर्सिटी में प्रो स्कॉट ई फालमैन ने पहली बार इलेक्ट्रॉनिक संदेश के रूप में कुछ चिह्नों का प्रयोग किया था। फालमैन के सुझाए रास्ते पर बाद में कंप्यूटर की दुनिया चल पड़ी और एक के बाद एक सैकड़ों स्माइली आ गए|
सर्वे में टॉप स्माइली
पांच वर्ष पहले एक ऑनलाइन कंपनी ने सर्वे कराया था इसमें 19 से 25 वर्ष की उम्र के 68 फीसद युवा रोजाना स्माइली का प्रयोग करते हैं। 50 से अधिक उम्र के 48 फीसद लोग भी रोज बातचीत में स्माइली का प्रयोग करते हैं।