तरक्की पर तमाचा: कोटेदार और भूंख से हारी जिन्दगी

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सीतापुर: 21वीं सदी के हिंदुस्तान में आज भी भूख से लोग मर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक को कहना पड़ रहा है कि इस भूख का करो इंतजाम लेकिन सरकार सो रही है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर के बबुर्दीपुर गांव में इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। बूढ़ी रामगुनी अनाज के इंताजर में दुनिया छोड़ गई। पति बरसों पहले गुजर चुके थे। तो बेटा किसी मामले में कई सालों से जेल में है। गरीबी से तंग रामगुनी इलाके के लोगों से मांग मांग कर अपना पेट पाल रही थी लेकिन भुखमरी बढ़ती गयी।

गांव के एक शख्स मनोहर ने बताया कि रामगुनी बहुत गरीब थी इसके पास लाल कार्ड था। उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया था। इसको कोटेदार कई दिनों से परेशान कर रहा था और इसकी मौत भूख से हो गई।

और तो और इस महिला की मौत के बाद पूरे मामले को दबाने की कोशिश भी शुरू हो गयी। हद तो तब हो गयी जब इस महिला के बीपीएल कार्ड पर भी फर्जी एंट्रियां कर डाली गयीं। कानूनगो बरातीलाल ने बताया कि कोटेदार ने इसको बारह तारीख को खिलाया था आज से चार दिन पहले। ये तो कोटेदार जाने कि टाइम पर खाना मिलता था कि नहीं।

वहीं इलाके के एसडीएम धनंजय शुक्ल का कहना है कि ऐसी कोई बात सामने नहीं आती है महिला की मौत बीमारी के कारण हुई है। प्रत्यक्ष दर्शी जब मृतक महिला के घर पहुंचे तो पाया कि इस टूटे फूटे घर में टूटे फूटे आशियाने में उसकी मौत के निशान बिखरे पड़े थे। घर में कोई बर्तन नजर नहीं आता। कहीं कोई गल्ला भी नहीं दिखता। मिट्टी के फर्श पर दो छोटी सी खाली शीशी और एक खाली कप पड़ा मिला। और घर के कोने में मिट्टी का एक चूल्हा नजर आया जिसमें आग की लौ तक नहीं लगी थी। जिससे पता चल रहा था कि इस चूल्हे पर पिछले कई दिनों से खाना भी नहीं बना था।

एक ग्रामीण सर्वेश ने बताया कि इस महिला कि मौत कोटेदार के दरवाजे पर हुई है। मेरी आंखों के सामने वो मर गई। भूख के कारन इसकी मौत हुई है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले ही भूख से मौत को लेकर नाराजगी जताई है। शायद यही वजह है कि प्रशासनिक अमला दहला हुआ है। सवाल ये उठता है कि रामगुनी की मौत के महज कुछ समय बाद ही अधिकारियों को ये कैसे पता चल गया कि उसकी मौत बीमारी से हुई है तब जबकि लाश का ना तो पोस्टमार्टम हुआ और ना ही मेडिकल मुआयना।