वट-सावित्री की पूजा कर सुहागिनों ने की अखंड सौभाग्‍य की कामना

FARRUKHABAD NEWS धार्मिक सामाजिक

फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो)ट या बरगद के वृक्ष की पूजन करने का पर्व वट सावित्री व्रत। ऐसी मान्यता है की यह पूजन अखंड सुहाग व परिवार की खुशियों के लिए महिलाएं रखती हैं। व्रत का पौराणिक कथाओं के अनुसार महत्व है लेकिन कहीं न कहीं यह व्रत बरगद जैसे अनमोल और उपयोगी वृक्ष को सहेजने का संदेश भी देता है। यह हमारे संस्कार हैं कि यहां वृक्षों का पूजन करना अर्थात उन्हें संरक्षित करने की परंपराएं वर्षों से निभाई जा रही हैं। अच्छी बात यह है कि घरपरिवार की बड़ीबुजुर्ग महिलाओं से लेकर नई-नवेली दुल्हनों तक इस परंपरा का निर्वहन उतने ही उत्साह और रीतिरिवाज के साथ किया जा रहा है।
शहर में वट सावित्री व्रत के पूजन पर बरगद की मौली बांधते हुए परिक्रमा करने का नजारा हर गली-मोहल्ले से लेकर कॉलोनियों में भी आम है। ऐसे ही पूजन करने वाली कुछ युवा महिलाओं ने बातचीत करने पर पता चला कि उन्हें अपनी सास से मिली इस विरासत को संभालने में बड़ी खुशी है और वे चाहती हैं कि आगे भी वे बरगद को संरक्षित करने की इस परंपरा का निर्वहन करती रहें। कोरोना के बाद बरगद की महत्ता पता चलने से लोगों में बरगद के वृक्ष को सहेजने के प्रति ज्यादा रुचि आई है। वट सावित्री व्रत का पूजन करने वाली नेकपुर मिवासी निवासी निधि मिश्रा ने बताया कि जेएनआई  द्वारा बहुत ही सही समय पर ‘साँसों के सारथी’ अभियान चलाया जा रहा है। वर्तमान में इसकी बहुत आवश्यकता है। निधि ने बताया कि उन्हें वट सावित्री व्रत करने की परंपरा अपनी सास से विरासत में मिला है जिसे वे निरंतर निभा रही हैं।
महिलाओं नें किया संकल्प
वट सावित्री की पूजा है, ऐसे में एक पुरानी मान्यता चली आ रही है कि वट वृक्ष की पूजा होती है। इस बार परिस्थितियों ने हमें जो सिखाया है उसमें बरगद या वट वृक्ष की केवल पूजा ही नहीं बल्कि उसे लगाना, उसका संवर्धन भी करना मानव धर्म बन गया है। शहर की महिलाएं अपने इस धर्म को बखूबी समझ रही हैं। तभी तो इस बार इस पूजा में भी बदलाव नहीं बल्कि क्रांति देखने को मिल रही है। महिलाएं अब प्रण ले रही हैं कि वे अन्य महिलाओं से प्रेरणा लेकर इस व्रत के साथ-साथ प्रकृति की अराधना भी सच्चे मायनों में करेंगी।
आचार्य सर्वेश कुमार शुक्ला नें बताया कि यह व्रत महिलाओं को सावित्री के समान दृढ प्रतिज्ञ, पतिव्रता और सास ससुर की सेवा करने का संदेश देता है। सावित्री के पति सत्यवान मृत्यु शैय्या पर थे और उन्हें लेकर सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे प्रार्थना की थी। अंतत: उनकी तपस्या से प्रसन्न यमराज ने उनके पति को प्राणदान दिया था। आशय यह कि यह पर्व समर्पण, सरोकार, सेवा भाव और पर्यावरण को बचाने का संदेश देता है।