फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) गौर करें तो आज सबसे ज्यादा वृद्ध समाज कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से दुखी है कि जीवन का लंबा अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही बातों को महत्व देता है। ऐसे में उनका एक ठौर वृद्धा आश्रम ही बचता है। जहाँ दिन भर अपनों के साथ बचपन से बुढ़ापे तक के सफर की याद आंखों से आंसू बनकर बाहर गिरने लगती हैं|
दरअसल लोगों को परिवार के साथ देखकर उनके भी दिल में दिल में टीस सी उठती है, काश हमारे अपने भी मेरे साथ-साथ होते और साथ रखते। मगर ऐसा हो नहीं सका। वक्त ने सहारा छीन लिया और वृद्धाआश्रम में रहने आ गये| यहां परिवार सा अपनापन और त्योहारों की खुशी में साथ रहने वाले कई अपने होते हैं, लेकिन दर्द भरे लम्हों की याद आते ही आंखें भर आती हैं। अब जीवन के ऐसे दो राहे पर आ गए कि जमाना मरने नहीं देता और सांसें भी थमती नहीं हैं।
मोहम्मदाबाद के अलाबलपुर के वृद्धा आश्रम में रह रहे प्रतिएक वृद्ध की अपनी ही एक कहानी है अपना दर्द है| जिसकी हकीकत जाननें और सरकारी व्यवस्था को परखने के लिए जिलाधिकारी द्वारा नामित वरिष्ठ नागरिकों की जिला अनुश्रवण समिति के सदस्य डॉ० दीपक द्विवेदी एडवोकेट उनके बीच पंहुचे| उन्होंने वृद्धाआश्रम का निरीक्षण किया| जिसमे जल्द एक्सपायर होनें वाली दवाओं को हटाने के निर्देश दिये| उन्होंने वृद्धजनों से वार्ता कर भोजनालय भी देखा और भोजन की गुणवत्ता को चखकर हकीकत जानी|
वृद्ध सत्यपाल का मुफ्त लड़ा जायेगा केस
मौके पर मिले वृद्धजनों में जनपद हरदोई हरपालपुर के गोरिया निवासी 65 वर्षीय सत्यपाल मिले| जिनके पास अभी भी 30 बीघा खेत है| जिसे उनके 6 कलयुगी बेटों ने कब्जा कर लिया| उनके साथ मारपीट कर उन्हें घर से निकाल दिया| बीते लगभग 6 महीनें से वह वृद्धाआश्रम में हैं| लेकिन कोई भी अपना उनके हाल लेनें नही आया| वह आश्रम के गेट की तरफ टकटकी लगाये निहारते रहते है| लेकिन हर दिन उनकी उम्मीद की झोली खाली जाती है| जिला अनुश्रवण समिति के सदस्य डॉ० दीपक द्विवेदी नें सत्यपाल को न्याय दिलाने की राह पकड़ ली है| उन्होंने कहा कि वह निशुल्क उनके सत्यपाल की तरफ से केस लड़कर उन्हें उनके हिस्से का हक दिलायेंगे| जिसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है|
बसीरन को ना गाँव का पता ना अपनों का
70 वर्षीय बसीरन को कोतवाली फतेहगढ़ क्षेत्र के इटावा-बरेली हाई-वे पर कोई छोड़ गया था| जिसके बाद उन्हें डायल 112 नें बीते 10 नबम्वर 2020 को उन्हें वृद्धाआश्रम छोड़ गये थे| लेकिन अभी तक उन्हें कोई तलाशनें नही आया| उन्हें ना अपना गाँव याद और ना अपनों का नाम| कभी बेबर का जिक्र करती तो कभी पति का नाम दीन मोहम्मद बताती है| वह भी गुमनामी की जिन्दगी जी रहीं है|
वृद्धाआश्रम में आंकड़ो में मिली बाजीगरी
अनुश्रवण समिति के सदस्य नें जानकारी की तो उन्हें कुल 72 वृद्ध बताये गये| जिसमे मौके पर कुल 38 ही मिले| जिसमें आंकड़ों की बाजीगरी का खेल साफ नजर आया| आश्रम अधीक्षक मयंक कुमार सूचना के बाद भी मौके पर नही मिले|
जिला अनुश्रवण समिति के सदस्य डॉ० दीपक द्विवेदी नें बताया कि उन्हें आश्रम का निरीक्षण किया| जो कमियां मिली उनके सुधार के लिए कहा गया है| इसके साथ ही वृद्ध सत्यपाल को उनके हिस्से का सम्मान दिलानें के लिए क़ानूनी लड़ाई निशुल्क लड़ी जायेगी|