पढ़े: पितृपक्ष आगमन, कब , कैसे और क्यों करें

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डेस्क: हिंदू धर्म में कई तरह के परंपराओं और रीति रिवाजों का अनुसरण किया जाता है। वैदिक परंपरा में अनुष्ठान, पूजा पद्धति, धार्मिक क्रिया कलाप और व्रत-त्योहार जैसे कई आयोजन किए जाते हैं। सनातन धर्म में किसी जातक के जन्म से पहले यानी गर्भधारण और मृत्यु के बाद भी कई तरह के संस्कार और कर्म कांड किए जाते हैं। इन्हीं में से श्राद्ध कर्म और पितृपक्ष एक प्रमुख तिथि और संस्कार है। पितृपक्ष हर वर्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की अमावस्या की तिथि तक माना जाता है। इसमें 15 या 16 दिन पितरों को समर्पित होता है। वैसे तो हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। लेकिन पितृपक्ष में पितरों का तर्पण करना बहुत ही अच्छा और शुभफलदायक होता है। मान्यता है पितृ पक्ष में पितर देव स्वर्गलोक से धरती पर अपने-अपने परिजनों से मिलने के लिए आते हैं।
पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा और तर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रस्नन होते हैं। पितरों को भी देवतुल्य माना गया है। इसलिए किसी जातक की मृत्यु के बाद भी उनको उतना ही सम्मान मिलता है जितना भगवान को। पितरों के लिए समर्पित श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। परमपिता ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार तर्पण नहीं किया जाता है। उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है।
पितृपक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। क्योंकि यह पक्ष उन्ही पितर देवता को समर्पित होता है। जो भी अपने पितरों का तर्पण नहीं करता है उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर जातकों के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसी कारण से पितरों का तर्पण करना जरूरी होता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।
कब से आरंभ है पितृ पक्ष
हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष रहता है। ऐसे में इस बार श्राद्ध पक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा 2 सितंबर से हो रहा है। वहीं 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या रहेगी। इसी दिन पितृ पक्ष का अंतिम दिन होगा।
किस तिथि को किसका श्राद्ध
पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष के 15 दिनों में श्राद्धकर्म, पिण्डदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है। इन 15 दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।
श्राद्ध से जुड़ी हर वो बात जिसे आपको जानना चाहिए
– जिन लोगों के सगे सबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि में ही उनका श्राद्ध करना चाहिए।
–  जिस महिला की मृत्यु पति के रहते ही हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।
– ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी किन्तु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही करने का विधान है।
– आत्महत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
– पिता के लिये अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है।
– अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित होता है।