आज ना करें चन्द्रदर्शन, बनेंगे मिथ्या कलंक के भागी, फिर ढेला फेंककर सुननी होगी गाली

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डेस्क: वैसे तो चंदा मामा का दर्शन कर हर कोई खुश होता है। चाहे वह बड़े हों या बच्चे। जब भी हम रात को खुले आसमान के नीचे आते हैं बरबस ही चांद देखने का मन कर देता है, लेकिन साल में एक ऐसा भी दिन आता है जब कोई चंद्रमा का दर्शन करना नहीं चाहता।
वह है तिथि है भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, जो इस वर्ष 22 अगस्त यानी शनिवार को पड़ रही है। इस दिन गणेश जी का मध्याह्न में जन्म हुआ था। लगभग दो दशक बाद इस बार मध्याह्न व्यापिनी यानी दोपहर में भी इस व्रत का मुहूर्त आया है। शरण में आने वाले वाले भक्तों के सारे विघ्न भगवान श्रीगणेश हर लेते हैं। अगर किसी को जीवन में विद्या, बुद्धि, विवेक, यश-कीर्ति, धन वैभव आदि की भरपूर कामना हो तो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन श्रीगणेश जी की इस पूजा को जरूर करें इस पूजा का फल मिलकर ही रहता है। वैसे रात को चंद्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है। यदि कदाचिद् कोई देख ले तो उन्हें दूसरों पर ढेला फेंककर किसी से गाली सुननी चाहिए। हालांकि इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि पत्थर किसी को लगे नहीं। ऐसा करने से उस दोष की शांति हो जाती है। ऐसा पुराणों में लिखा है और आज भी यह प्रथा चली आ रही है। इस दिन चंद्र दर्शन के कारण खुद भगवान श्रीकृष्ण भी कलंक के भागी हो गए थे।
यह है कथा, ढेला फेंककर सुनते हैं गाली
गणेश जी इसी तिथि को स्वेच्छावश कहीं जा रहे थे, दैवयोग से उनका पैर कीचड़ में कहीं फिसल गया। इस घटना पर चंद्र देव हंस पड़े गणेश जी ने लीलार्थ क्रुद्ध होकर चंद्रमा को शाप दे दिया कि जो आज के दिन तुम्हारा दर्शन करेगा उसे मिथ्या कलंक लगेगा। अत: इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। काशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि यदि किसी कारण से चंद्र दर्शन हो भी जो जाएं तो ईंटा, पत्थर, ढेला फेंककर किसी से गाली सुननी चाहिए। ऐसा करने से उस दोष की शांति हो जाती है, ऐसा पुराणों में लिखा है, Óतद्दि इष्टकाप्रक्षेपादिना कस्माच्चिद् गालीग्रहणादि कुर्यात् तेन तद्दोष शान्तिरित्युक्तं पुराणान्तरे, इति (वंशीधरी)। इसमें कहा गया है कि ध्यान रहे, ढेला इस प्रकार फेंके जिससे किसी को चोट न लगे, अन्यथा दोष की दूनी वृद्धि हो जाती है।
इस कथा के श्रवण से भी मिटता है कलंक
प्रो. द्विवेदी बताते हैं कि कलंक निवारण के लिए दूसरी विधि स्यमन्तक मणि की कथा श्रवण किया जा सकता है। कथा इस प्रकार है- श्रीकृष्ण की द्वारा पुरी में सत्राजित ने सूर्य की उपासना से सूर्य समान प्रकाशवाली और प्रतिदिन आठ भार सुवर्ण देने वाली स्यमन्तक मणि प्राप्त की थी। एक बार उसे संदेह हुआ कि शायद श्रीकृष्ण इसे छीन लेंगे। यह सोचकर उसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को पहना दी। दैवयोग से वन में शिकार के लिए गए हुए प्रसेन को सिंह खा गया और सिंह  से वह मणि जाम्बवान छीन ले गए। इससे श्रीकृष्ण पर यह कलंक लग गया कि मणि के लोभ से उन्होंने प्रसेन को मार डाला। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण जाम्बवान की गुहा में गए और 21 दिन तक घोर युद्ध करके उनकी पुत्री जाम्बवती को तथा स्यमन्तक मणि को ले आए। यह देख कर सत्राजित ने वह मणि उन्हीं को अर्पण कर दी। कलंक दूर हो गया।
इस मंत्र से भी मिटेगा कलंक
कलंक निवारण के लिए तीसरी विधि भी है। इसमें निम्न मंत्र सिंह प्रसेनमवधीतसिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारकुमारोदीस्तवह्येष स्यमन्तक:।। का 11 पाठ करें। गणेश जी की शरण में जाने वाले भक्तों के सारे विघ्न हर लेते हैं, उनकी कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं। अगर किसी को जीवन में विद्या, बुद्धि, विवेक, यश-कीर्ति, धन वैभव आदि की भरपूर कामना हो तो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन श्रीगणेश जी की इस पूजा को जरूर करें इस पूजा का फल मिलकर ही रहता है।
इस विधि से करें पूजन
व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करके मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायकपूजनमहं करिष्ये से संकल्प करके स्वस्तिक मंडल पर प्रत्यक्ष अथवा सुवर्णादि निर्मित मूर्ति स्थापन करके पुष्पार्पणपर्यन्त पूजन करे। भगवान गणेश की पूजा में 21 दूर्वा दल का प्रयोग किया जाता है। उनके दस नामों गणाधिप, उमापुत्र, अघनाशक, विनायक, ईशपुत्र, सर्वसिद्धिप्रद, एकदन्त, इभवक्त्र, मूषकवाहन, कुमारगुरु से दो-दो दूर्वा दल चढ़ाया जाता है और अंतिम दूर्वा को वरदगणेश को अर्पित किया जाता है। इसके बाद धूप, दीपादि से शेष उपचार सम्पन्न करे। अंत में घृतपाचित 21 मोदक अर्पण करके विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक। कार्यं में सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि।। से प्रार्थना करे और मोदकादि वितरण करके एक बार भोजन करे।