फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) बाढ़ जब आती है तो वह अपने साथ मुसीबत लेकर आती है| और अपने साथ लोगों की मेहनत से बनाये आशियाने, पैदा की गयी फसल और उसको बेचकर पैसे कमाने का सपना भी वहा ले जाती है| जो आम बात है| लेकिन बाढ से जब किसी के सिर पर सेहरा रखने का सपना ही वह जाये यह तो केबल छोरा गंगा किनारे वाला ही जान सकता है| कटरी के दर्जन भर से जादा गाँव इस तरह की समस्या से जूझ रहें है जहाँ जबानी से तीसरे पन में प्रवेश कर रहे ग्रामीण शादी ना होनें की समस्या से ग्रसित है|
दरअसल गंगा और रामगंगा प्रतिवर्ष बाढ़ लेकर आतीं है और तराई क्षेत्र में बाढ के रूप में मुसीबत छोड़ कर चली जाती है| बाढ़ आने से ग्रामीणों की जमा पूंजी से खर्च शुरू होता और बाढ़ समाप्त होंते-होते उनकी अधिकतर जमा पूंजी भी समाप्त हो चुकी होती है| जिसका खामियाजा यहाँ के नौजवान को भुगतना पड़ रहा है| राजेपुर, अमृतपुर, शमसाबाद और कमालगंज क्षेत्र के गंगा कटरी के कई गाँव है जहाँ सदियों से शादियों का ग्राफ दिनों-दिन घटता जा रहा है| प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ कुंवारों के अरमानो पर पानी फेर रही है| बाढ़ आने के साथ आने वाली मुसीबत को देखते हुए लकड़ी पक्ष के लोग अपनी बेटी की शादी करना भी इन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पसंद नही करते|
जिससे कटरी क्षेत्र के गाँव समैचीपुर चितार, सुतिहार, गंगलई, साधो सराय, हरसिंगपुर सहित दर्जन भर से अधिक |गांवों में दशकों से कुंबारों की संख्या बढ़ रही है| बाढ़ नौजबानो के अरमानों पर पानी फेर रही है|
ग्रामीण धनीराम का कहना है कि वह 50 साल के हो गये| उसकी आज तक शादी ही नही हुई| उसने बताया की बाढ़ के चक्कर में कोई अपनी बेटी देना नही चाहता| ग्रामीण महिला सुशीला नें बताया कि बेटी वाले बाढ़ आने से भय खाते है कि जब बाढ़ आयेगी तो उनकी बेटी क्या करेगी| जब पति बाढ़ में कमाकर ला नही पायेगा तो फिर वह पेट कैसे भरेगा| जिससे उनके ही दो देवरों के लिए रिश्ते नही आ रहे| ग्रामीण सुरेश सिंह नें बताया कि आस-पास के गाँव में लगभग 300 से 400 तक लड़के कुंवारें घूम रहें है| लेकिन विवाह की कोई उम्मींद नजर नही आ रही|