नई दिल्ली:कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इसके टीके और इलाज खोजने पर तेजी से काम चल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, कोविड-19 के लिए संभावित 124 वैक्सीन हैं। जिनमें से 10 क्लिनिकल ट्रायल के स्तर पर हैं। जबकि भारत में 6 महीने में शुरू होने की उम्मीद है।
चीन जैसे देशों में कुछ सरकारी परियोजनाएं हैं, जबकि अधिकांश निजी फार्मा कंपनियां वैक्सीन की खोज में जुटी हैं। हालांकि इससे सवाल उठता है कि आखिर क्यों इतनी कंपनियां इस कोशिश में जुटी हैं और क्यों हर कोई टीके को खोज लेना चाहता है। इसका कारण है पैसा। जो कंपनी टीका खोजेगी, उसका मालामाल होना तय है।
वैक्सीन खोजो पैसा बनाओ: किसी भी टीके या दवा को इजाद करने के बाद सिर्फ इसकी बिक्री से ही पैसा नहीं बनाया जाता है, बल्कि पेटेंट अधिकारों से भी खूब मुनाफा कमाया जाता है। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सालाना 1.5 अरब डोज का उत्पादन करती है। हालांकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) ने सार्वजनिक रूप से वैक्सीन का पेटेंट नहीं कराने का समर्थन किया है। गिलिड साइंस, जिसकी दवा रेमडेसिविसर को कोविड-19 के खिलाफ इलाज के लिए अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा इस्तेमाल करने की स्वीकृति मिली है, एंटीवायरल दवा सोफोसुबुविर का भी स्वामित्व रखती है जो कि हेपेटाइटिस सी के इलाज में काम में आती है|
इस तरह बढ़ता है मूल्यांकन : कोई भी कंपनी जो कोविड-19 के लिए चिकित्सा समाधान पेश करती है, वह जबरदस्त मूल्य प्राप्त करती है। जैसा कि पिछले हफ्ते ही मॉडर्ना के मामले में देखा गया है। इस अमेरिकी कंपनी ने, जिसने आज तक एक भी उत्पाद नहीं बेचा है उसकी बाजार पूंजी में 30 अरब डॉलर और शेयरों में 30 फीसद का जबरदस्त उछाल देखा गया। एक दिन पहले ही कंपनी को कोविड-19 वैक्सीन निर्माण के पहले चरण के सफल होने की सूचना मिली थी। कंपनी 10 साल पहले लांच की गई थी। अब 76 डॉलर प्रति शेयर की कीमत पर 1.34 अरब डॉलर की और बढोतरी कर रही है। जब उसके सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध शेयर 60 डॉलर की रेंज से कम में कारोबार कर रहे हैं।
ज्यादा कीमत, मोटा मुनाफा : गिलिड साइंस की इस दवा को पहले तीन साल के लिए दिसंबर 2013 में एफडीए की अनुमति मिली थी। कंपनी ने इससे 44 अरब डॉलर की कमाई की। इसकी प्रत्येक खुराक की कीमत जानकर आप दंग रह जाएंगे। यह कीमत 1000 डॉलर थी। वहीं मेर्क का उदाहरण लें जो एक अरब डॉलर की कमाई सिर्फ अपने एचपीवी टीके गार्डसिल से करती है। जिसे 2006 में लांच किया गया। कोविड-19 टीके की सिर्फ एक खुराक की कीमत सिर्फ 30 डॉलर मानें तो एक कंपनी साल भर में 10 अरब डॉलर की कमाई कर सकती है। यदि वैश्विक जनसंख्या के एक तिहाई का टीकाकरण किया जाता है।
दुनिया में कायम होगा दबदबा : यह कहने की जरूरत नहीं है कि जो भी देश या कंपनी कोविड-19 के इलाज या वैक्सीन को विकसित करने में सक्षम होगा, उसका वैश्विक स्तर पर दबदबा कायम होगा। एसआइआइ के सीईओ अदार पूनावाला के मुताबिक, कंपनी द्वारा उत्पादित किसी भी वैक्सीन की शुरुआती खुराक भारत में उसकी पूरी आबादी को कवर करने के लिए उपलब्ध कराई जाएगी। स्थानीय सरकारें भी दूसरे देशों के साथ वैक्सीन को साझा करने से पहले अपने नागरिकों के टीकाकरण का खयाल रखेंगी। टीकों के लिए किये जा रहे अधिकांश शोध करदाताओं के पैसे से वित्त पोषित हैं। वहीं कुछ मामलों में दूसरे लोग इसे नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। जिन्होंने हालिया कुछ मामलों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया है।