फर्रुखाबाद: बसंत के आगमन के साथ ही नई चेतना और जोश का संचार हो उठा। बसंत पंचमी की सुबह रोजमर्रा से अलग थी, जिसमें ऊर्जा और सकारात्मकता समाई हुई थी। आसमान में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगें, छतों पर तेज आवाज में बजता डीजे और पतंग काटने के साथ ही ‘आईबो-वो काटा की गूंज लोगों का ध्यान खींच रही थी। वसंत पंचमी पर पतंगबाजी का जुनून लोगों के सिर चढ़कर बोला। नीला आसमान सुबह होने के साथ ही रंग-बिरंगी पतंगों से सतरंगी हो गया। भांत-भांत की पतंगों ने हवा के साथ अठखेलियां की। नन्हें पतंगबाज से लेकर बुजुर्गों तक ने पतंगबाजी पर हाथ अजमाए। मौसम पतंगबाजी के अनुकूल था और हवा की गति भी पतंग उड़ाने के लिए लिहाज से मुफीद थी। ऐसे में लोगों ने दिल खोलकर पतंगें उड़ाई। पतंग काट देने पर आई बो वो काटा कहते हुए खूब चिल्लाए तो पतंग कट जाने पर तुरंत दूसरी पतंग की ओर हाथ बढ़ा दिया। डीजे की धुन पर नाचते हुए मनाया पतंग उत्सव|
बसंत यूं ही ऋतुओं का राजा नहीं माना जाता। बसंत में जहां पेड़-पौधों की पुरानी पत्तियां झड़कर नई पत्तियां आती हैं तो वहीं सृष्टि में सकारात्मक परिवर्तन का संदेश देती है। गुरुवार को भगवान भास्कर की रश्मियां जैसे-जैसे धरा का आलिंगन करने लगीं वैसे ही आलस्य दूर होता गया। चहुंओर नई ऊर्जा के संचार के साथ बसंतोत्सव शुरू हुआ।शहर में प्रत्येक मोहल्ले या गली के अंदर छतों पर डीजे रखवाए थे। वसंत पंचमी पर होने से पतंगबाजी का मजा दोगुना हो गया। लोगों ने अपनी-अपनी छतों पर ही पूरा दिन बिताया। पतंगबाजी को खास बनाने के लिए डीजे लगवाए गए। युवा जमकर डीजे पर नाचे।
नवाबों के जमाने से जुड़ा पतंगबाजी का अतीत
फर्रुखाबाद में पतंगबाजी का दौर नवाबों के जमाने से जुड़ा है। नवाबों की पतंगबाजी के किस्से आज भी शहर में बुजुर्ग बताते हैं। वक्त के साथ ही शहर की पतंगबाजी मशहूर होती गयी।पतंगबाजों की फरमाइश पूरी करने के लिए पतंगों से बाजार कई दिन पहले ही सज गए थे। शहर में पतंग व डोरों की दुकानों पर लाखों रुपये का माल आ चुका है। इस बार भी बाजार में देसी डोर की बजाए चाइनीज डोर का बोलबाल रहा। प्रतिबंध के बावजूद यही डोर बिकी। देसी डोर के तहत आने वाले पंजाब के मांझे के गोले कहीं दिखाई नहीं दिए। इसके साथ ही देसी डोर के पुराने ब्रांड को कोई हाथ भी लगाने को तैयार नहीं था। चाइनीज डोर की वजह से पुराने पतंगबाजों ने पतंग उड़ाने से तौबा भी कर ली है।
जोश से लबरेज हुए बुजुर्ग
बच्चे और युवा ही नहीं उम्रदराज लोग भी बचपन की यादों में गोते लगाते दिखे। सड़क, पार्क और छतों पर एक बार जो पतंग की डोर थामी तो दिन ढलता गया और जोश बढ़ता चला गया। अपनी पतंग को दूर आसमान में ले जाने की ललक लोगों के दिलों में हिलौरें मारने लगीं।
लड़कियों ने खूब आजमाए हाथ
हर क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति का अहसास करा रही आधी आबादी पतंगबाजी में भी हाथ आजमाने उतरीं। शास्त्रीनगर, सदर, जागृति विहार, लालकुर्ती, रजबन समेत शहर के अधिकांश इलाकों में युवतियों ने जमकर पतंगबाजी की। छतों पर पीले कपड़ों में सजी युवतियों ने खूब पतंग उड़ाई और पेंच लड़ाते हुए पतंगें भी काटीं।
पतंगबाजों के हुए मुकाबले
वसंत पंचमी का खुमार रविवार को सिर चढ़ बोला। पूरा दिन आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भरा रहा, जबकि हर दिशा से आई बो काटा की आवाजें गूंजती रहीं। हर पतंग कटने पर लोग खुशी में नाचते देखे गए। दूसरी तरफ शहर के तमाम धार्मिक स्थलों में भी बसंत पंचमी को लेकर जहां धार्मिक आयोजन हुए, वहीं अनेकों जगह प्रसाद आदि भी वितरित किए गए।
जमकर लड़ाए पेच, आड़ा और ढील ने भरा रोमांच
गुरुवार को बसंत पंचमी के अवसर पर सुबह से लोग छतों पर चढ़ गए। अधिकांश लोगों ने पीली पतंग उड़ाकर बसंतोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद शुरू हुआ आनंद और उत्साह का उत्सव बीतते वक्त के साथ उफान पर आता चला गया। लोग परिवार संग छतों पर चढ़े रहे और खूब पतंगबाजी की। पतंग को दूर आसमान में ले जाने की ख्वाहिश लोगों के दिलों में ही रह गईं। इतनी ज्यादा पतंगें उड़ रही थीं कि घर की छत से निकलते ही पेच लड़ जाते। छतों पर ढील दे ढील और तेजी से आड़ा मार जैसे शब्द गूंजते रहे। लोगों ने जमकर पतंग उड़ाई, सुबह से पतंगबाजी का हुल्लड़ चलता रहा।
पतंग और मांझे के वसूले मनमाने दाम
बसंत को लेकर शहर में अनेकों जगह रंग-बिरंगी पतंगों की दुकानें सजी लोगों को आकर्षित कर रही थी, जबकि पतंग के हर स्टाल पर खरीदारों की भारी भीड़ लगी रही। बच्चों में ही नहीं बल्कि बड़े और बूढ़े पतंग तथा डोर की खरीदारी करते देखे गए। गली-मोहल्लों में विक्रेताओं ने मनमाने दाम वसूले।