खाद्यान घोटाले में FCI, RICE MILL और मार्केटिंग विभाग का खेल

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फर्रुखाबाद: गरीबो और जरूरतमंदो को सस्ती दरो पर बटने/बिकने वाला खाद्यान जिले के राशन माफिया, फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया और जिले के मार्केटिंग विभाग के अफसरों की मिलीभगत से कालाबाजारी बड़े ही करीने से होता है| इस खेल में मार्केटिंग विभाग द्वारा किराए पर लिए गए गोदाम के स्वामियों की पहचान से ही घोटाले की बू आती है| कमालगंज के एक एक्टिविस्ट (सुरक्षा द्रष्टि से पहचान नहीं खोली जा रही है) ने हलफनामा देकर जिले के पांच गोदामों में हो रहे राशन की कालाबाजारी की शिकायत शासन से की है| इस घोटाले का खेल समझने के लिए पहले सरकार की राशन वितरण प्रणाली को समझना होगा| राशन में गेंहू, चावल, चीनी, तेल दालें आदि होता है जिन पर सरकार करोडो रुपये की सब्सिडी देती है| ये सब्सिडी का धन वो धन है जिसे केंद्र और राज्य सरकारें जनता से विभिन्न टैक्स की मदों में वसूलती है| अब समझिये जो धन इन लूटेरों द्वारा लूटा जा रहा है वो हम सबका है|

राशन की खरीद वितरण प्रणाली

सरकारी राशन की खरीद कर उसे वितरण के लिए प्रदेश के मार्केटिंग विभाग को दिया जाता है| खरीद करने और भण्डारण करने की जिम्मेदारी फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया और स्टेट वेयर हाउस की होती है| जहाँ से जिलों में जरुरत के हिसाब से डिमांड के सापेक्ष ये राशन जिलों में मार्केटिंग विभाग (प्रदेश खाद्य आपूर्ति एवं विपणन विभाग) मंगाता है और अपने गोदामों में रखता है| इन्ही गोदामों से ये राशन सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान (जिन्हें सामान्य भाषा में कोटेदार की दुकान कहते है), मिड डे मील आदि के लिए वितरित किया जाता है| मार्केटिंग विभाग के गोदाम में राशन सीधे नहीं खरीदा जाता है| खरीद फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया आदि एजेंसियां करती है और इन्हें पूर्ती करती हैं| इस पूरे प्रकरण में तीन प्रकार के बाहय खर्चे होते है| पहला खर्चा राशन की कीमत का जो किसानो, धान मिल और चीनी तेल कम्पनियों आदि को भुगतान किया जाता है| दूसरा इस राशन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का तहत तीसरा इनके भण्डारण का| राशन माफिया यानि “गरीबो के राशन चोरो” की नजर इन तीनो खर्चो पर होती है और इसमें भागीदारी इस पूरे तंत्र को चलाने वाले नौकरों की भी होती है जो जनता के टैक्स से वेतन पाकर अपने आपको सरकारी नौकर कहते हैं|

घोटाले की पहली कड़ी- खाद्यान ट्रांसपोर्ट घोटाला

ध्यान देने की बात ये है की खरीद का माल पहले फ़ूड कारपोरेशन या प्रदेश भण्डारण निगम की गोदाम में जाना चाहिए वहां से जिलों की मार्केटिंग गोदामों में| मगर पहला घपला यही शुरू होता है ये माल असल में व्यापारी/धान मिल स्वामी अपने कारखाने से सीधे इन मार्केटिंग गोदामों में ले जाता है और कागजो में फ़ूड कारपोरेशन या प्रदेश भण्डारण निगम के गोदामों को भेजने के कागज घोटाले की पहली कड़ी में तैयार करता है| इस कड़ी में ट्रांसपोर्ट का ठेकेदार खाद्यान की ढुलाई का फर्जीवाड़ा करता है और फ़ूड कारपोरेशन के अधिकारी इस फर्जीवाड़े की काली आय में मुह कला करते हैं| खाद्यान घोटाले के इस हिस्से को आप खाद्यान ट्रांसपोर्ट घोटाला भी कह सकते हैं|

राजेपुर की गोदाम में खाद्यान कम निकलना- खाद्यान ट्रांसपोर्ट घोटाला है

फर्रुखाबाद के राजेपुर ब्लाक में मार्केटिंग गोदाम में लगभग १५०० बोरी कम पाया गया खाद्यान इसी टांसपोर्ट घोटाले की पहली कड़ी है| राजेपुर के गोदाम में अधिकतर चावल एस एस राईस मिल से आपूर्ति होता रहा है| मार्केटिंग विभाग के ही हमारे विश्वस्त सूत्रों के अनुसार एस एस राईस मिल के पास चावल उतना नहीं था जितनी आपूर्ति उसे देनी थी, मगर वो मिल मालिक फ़ूड कारपोरेशन को माल आपूर्ति करने की रसीद प्राप्त कर गया और फिर फ़ूड कारपोरेशन ने उस कागजी फर्जी चावल/गेंहू को कागजो पर फर्रुखाबाद/राजेपुर के मार्केटिंग विभाग को आपूर्ति दिखा दिया| मार्केटिंग विभाग ने भी उस राशन को कागजो पर प्राप्त कर लिया| इससे पहले की महीने के अंत में अभिलेख में आहरण वितरण का खाका बराबर किया जाता, जिलाधिकारी रिगजिन सेम्फेल की निगाहों में मामला फस गया|

दरअसल ये खेल जिले की हर मार्केटिंग गोदाम में होता है| महीने के शुरू में माल आता है और 23 के बाद वितरण होता है| मगर असल में माल आता नहीं है और वितरण होता नहीं है| कोटेदार जितना बतना होता है उतना ही माल ले जाता है और बाकी का कालाबाजारी के लिए माल नहीं इधर उधर करना होता है| कालाबाजारी का हिसाब कागजो पर होता है जिसमे मार्केटिंग विभाग, जिला आपूर्ति विभाग से लेकर राशन माफिया और माल आपूर्तिकर्ता तक अपना मुह काला करते है| ऐसा नहीं कि इस खेल की जानकारी प्रशासनिक अधिकारिओं को नहीं होती मगर मासिक बंधा बधाया महीना लेकर ये साहब लोग भी अपना मुह काला करते हैं| ऐसी ही एक जानकारी जेएनआई ने पिछले माह एक रात एक एसडीएम् साहब को दी थी मगर उन साहब ने ये कहकर कुछ नहीं किया कह दिया कि रात बहुत हो चुकी है सुबह देखेंगे| और जेएनआई की जानकारी उस राईस मील स्वामी तक पंहुचा दी| दरअसल में कालाबाजारी का चावल ट्रेक्टर पर लद कर कोटेदार की दुकान की जगह नगर में एक बसपा नेता की धान मिल पर उतरा था और जे एन आई ने बिलकुल सटीक जानकारी दी थी| फिर रातो रात उस कोटेदार की दुकान पर वापस पूरा चावल पंहुचा कर मामला साफ़ दिखाया गया| ऐसे में कैसे कोई आम जनता इन प्रशासनिक अधिकारिओं पर भरोसा करे और भ्रष्टाचार की जानकारी दे|

खाद्यान घोटाले की दूसरी कड़ी- मार्केटिंग विभाग के गोदाम में कागजी भण्डारण का घोटाला

गरीबो और जरुरतमंदो के सरकारी सस्ते खाद्यान की कालाबाजारी का खेल जितना भौतिक रूप से होता है उससे ज्यादा कागजो पर होता है| ये सारा खेल सरकार की सब्सिडी हडपने के लिए होता है| इस खेल में मंत्री से लेकर संत्री तक अपना अपना हिस्सा अपनी अपनी पॉवर के हिसाब से वसूलते है| फ़ूड कारपोरेशन और स्टेट वेयर हाउस सहित सभी खरीद एजेंसियां किसानो से खाद्यान खरीदते समय से लूटने में लग जाती है| कभी वजन का खेल तो कहीं हर साल अरबो रुपये का नया बारदाना कागजो पर खरीद करती है| हकीकत में जिलें में जितने धान की पैदावार होती है उससे ज्यादा चावल यहाँ खरीदा जाता है| चूँकि गेंहू और चावल की खरीद जिले के बाहर नहीं होती है इसलिए कृषि विभाग और इन खरीद एजेंसियों द्वारा खरीद के मिलान से ये मामला पकड़ में आता है| अब जब खाद्यान का उत्पादन ही नहीं हुआ तो खरीद तो फर्जी होगी ही| हकीकत ये है की यहाँ की धान मिल मालिक जितना धान अपने मिल में खरीद करते हैं उसके अनुपात में निकलने चावल कई गुना ज्यादा होता है| व्यापार कर विभाग में इन मालिको द्वारा धान की दी गयी खरीद के मिलान से ये मामला पकड़ा जा सकता है|

खैर आगे बढ़ते है और बात जिलों में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग और मार्केटिंग विभाग के बीच के खेल से आपको अवगत कराते हैं| इन मार्केटिंग गोदामों में 1 तारीख से 22 तारीख तक माल आता है और हर माह की 23 तारीख से ३० तारीख के बीच कोटेदारो को उठान करना होता है| लगभग हर कोटेदार अपने हिस्से के मिले खाद्यान के कुछ हिस्से को कालाबाजारी कर बाजार में ऊँचे दामो (बाजार मूल्य) पर कालाबाजारी के तहत बेच देता है ये बात ज्यादातर जागरूक जनता जानती है| मगर जनता जो नहीं जानती वो ये है कि कालाबाजारी के लिए ज्यादातर कोटेदारो को खाद्यान को गोदाम से उठान ही नहीं करना पड़ता है, ये केवल सरकारी और बाजार भाव के मूल्य का अंतर राशन माफियाओं से लेते है| इन राशन माफियों में कुछ गोदाम के मालिक है तो कुछ ट्रांसपोर्टर है| एक किस्म के राशन माफिया और है जो केवल बिचौलिए का काम करते है और अपने को गल्ला व्यापारी कहलाते है| कोटेदार जो कालाबाजारी का राशन गोदाम नहीं उठता है वो राशन हकीकत में इन गोदामों में आता ही नहीं है उस माल के केवल कागज फ़ूड कारपोरेशन और स्टेट वेयर हाउस से आते हैं| यानि भौतिक रूप से गड़बड़ी हर माह की 10 तारीख से 25 तारीख के बीच पकड़ी जा सकती है| माह के अंत यानि तीस तारीख आते आते आहरण वितरण के रजिस्टर में लेखा जोखा बराबर हो जाता है| राजेपुर में मार्केटिंग गोदाम में जिलाधिकारी के खुद के प्रयास से पकड़ी गयी गड़बड़ी 10 से 25 तारीख के बीच ही पकड़ी गयी है|

खाद्यान घोटाले की अंतिम एवं तीसरी कड़ी- कोटेदार की दुकान पर वितरण घोटाला

जनता के टैक्स से बटने वाली सब्सिडी वाले खाद्यान की घोटालेबाजी की अंतिम कड़ी कोटेदार की दूकान होती है| एक अनुमान के मुताबिक कोटेदारो की दुकानों पर होने वाला खाद्यान घोटाला कुल खाद्यान घोटाले का केवल 30 फ़ीसदी भाग होता है| 70 फ़ीसदी घोटाला तो खाद्यान की खरीद से भण्डारण और कोटेदारो की दुकान पर राशन पहुचते पहुचते हो चुका होता है| आमतौर पर कोटेदार खाद्यान तौल में कम देता है, जिरह करने पर कहता है कि गोदाम से ही कम मिलता है| आपूर्ति विभाग की मिलीभगत से फर्जी राशन कार्ड रखता है और उसका राशन ब्लेक करता है| कमजोरो और गरीबो को राशन देने में गुंडई दिखता है और गाँव कस्बो के अच्छी माली हालत के राशन कार्ड धारक राशन कोटेदारों की दुकान से लेने जाते नहीं है, उस हिस्से का भी राशन कोटेदार कालाबाजारी की भेट चढ़ाता है| ऐसे चोर किस्म के कोतेद्दर आपको अपने आसपास मिल जायेंगे जो बिना इनकम टैक्स विभाग में कोई रिटर्न भरे आलीशान मकान में रहते है और लाखो की चमचमाती जीप कार से फर्राटा भरते नजर आयेंगे| आमतौर पर एक कोटेदार अधिक से अधिक 200 लोगो को राशन देता है और उसमे भी सरकारी राशन की दूकान पर लगी लाइन ये साबित करने के लिए लगवाता है जैसे रेलवे स्टेशन पर ट्रेन छूटते समय लोग भागते भागते टिकेट लेने के लिए लाइन में लगे है| जरा सोचिये कि बाजार में अच्छे बनिए की दुकान पर कम से कम 100 ग्राहक रोज आता होगा और दूकान पर लाइन नहीं लगानी पड़ती|

इस खाद्यान घोटाले के खेल में कौन कौन मुह काला करता है-

सरकारी सस्ते गल्ले की दूकान देश के हर गाँव और वार्ड में है| देश का सबसे बड़ा बजट इन्ही दुकानों पर सस्ता गल्ला आम जनता को पहुचाने के उद्देश्य से सरकार सब्सिडी के रूप में खर्च करती है| ये आम जनता का पैसा है जिसे आपके आसपास रहने वाले लुटेरे ही लूट रहे हैं| सरकारी नौकरशाह, बाबू से लेकर छोटे अफसर, इन पर लगाम लगाने के जिम्मेदार नेता मंत्री और आम जनता के बीच के दलाल और माफिया ये सभी इस कालाबाजारी के धन से अपना मुह काला करते है और समाज में रहीस बनकर समाजसेवी का ढोंग करते है| आपूर्ति विभाग के छोटे बड़े अफसर से लेकर इन पर निगरानी रखने वाले प्रशासनिक अमले के लोग भी बहती भ्रष्टाचार की गंगा में हाथ धोना नहीं भूलते| आमतौर पर ये लोग अक्सर सरकारी/पब्लिक मंचो पर माला पहनते नजर आयेंगे, बड़े बड़े आदर्शो वाले भाषण झाड़ते नजर आयेंगे| इन्ही के फोटो से अखबारों के कलम भरे जाते हैं, और मीडिया के सबसे बड़े विज्ञापनदाता भी यही होते हैं| ये दहेज़ विरोधी अभियान के मंच पर आदर्शो वाली घुट्टी जनता को पिलाते हैं और अपनी बिटिया के दहेज़ के करोडो गरीब जनता के हिस्से का लूट अपनी तिजोरियों में जमा यही चोर करते हैं| इतना ही नहीं गरीब और लाचार जनता के हिस्से के धन को यही चुराते हैं और इसी काले धन से उच्च प्राइवेट शिक्षा संस्थानों में लाखो की केपिटेशन फीस भर अपने बच्चो को घूसखोरी के धन से डिग्रियां दिलाते हैं |

शायद ही किसी युवा होते इस देश के नौजवान ने अपने पापा से ये पुछा हो कि पापा आपने 30 -40 लाख खर्च कर मुझे आस्ट्रेलिया पढ़ने के लिए भेजा था ये पैसा अपने कहाँ से जुटाया था? अगर पैसा सफ़ेद यानि ईमानदारी का न हुआ तो यकीन मानिये वो चोर टाइप इंसान जबाब नहीं दे पायेगा कि किसी गरीब की झोपड़ी जो बाढ़ में बह गयी थी उसके सरकारी मुयाबजे की रकम हड़प कर तेरे लिए ये आशियाँ बनाया है और तुझे पढ़ाया है|

कभी इनके नाम के आगे चोर/घूसखोर राशन माफिया/ शिक्षा माफिया आदि लगाकर सम्बोधित करके देखिये कितना सटीक नाम लगेगा देश की इस भ्रष्ट बिरादरी का| माना की 100 में 90 बेईमान है फिर भी 10 का तो ईमान है|

क्यूँ न घूसखोर और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगो के नामो के आगे इनके काले कर्मो के आधार पर उपयुक्त किये जाने वाले शब्द लगा कर इन्हें पुकारा जाए? जैसे चोर शर्माजी, घूसखोर दीक्षित जी आदि आदि| आप अपनी राय जरूर लिखे हम उसे अलग से प्रकाशित करेंगे|

जारी….