लखनऊ: शुद्ध खाद्य पदार्थ लोगों तक पहुंचे, इसके लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) तरह-तरह के सेंसर ईजाद करने में जुटी है। सीएसआइआर की छह से अधिक प्रयोगशालाएं मिशन मोड में काम कर रही हैं। आने वाले पांच वर्षों में उद्योग, एजेंसियां और उपभोक्ता सीएसआइआर के सेंसर का इस्तेमाल करके सुनिश्चित कर सकेंगे कि कौन सा खाद्य पदार्थ सेहत के लिए सुरक्षित या हानिकारक है।
सीएसआइआर के भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) के डॉ.केसी खुल्बे बताते हैं कि सीएसआइआर की ओर से मिशन मोड में फूड एंड कंज्यूमर सेफ्टी सॉल्यूशंस (फोकस) शुरू किया गया है। पांच वर्षीय इस परियोजना में आइआइटीआर ऐसे बायोसेसंर विकसित करेगा, जो पैकेज्ड फूड या फ्रूट जूस के डिब्बे पर लगे होंगे। यदि खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता प्रभावित होगी तो यह सेंसर रंग बदल लेंगे। इसी तरह पिलानी स्थित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियङ्क्षरग इंस्टीट्यूट (सीरी) ऐसा मल्टी सेंसर सिस्टम विकसित कर रहा है, जिससे दूध में मिलावट का पता चल सकेगा।
मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआइ) दूध में खराबी बताने वाला इंडीकेटर तैयार हो रहा है। यही नहीं, सीएफटीआरआइ ऐसी स्मार्ट पैकेजिंग तैयार कर रहा है जो मीट प्रोडक्ट की खराबी बताएगी। खाद्य तेलों व देशी घी में मिलावट का पता लगाने के लिए सीरी के साथ-साथ हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (आइआइसीटी) काम कर रही है। चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआइओ) खाद्य तेलों में मिलावट (पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन की मौजूदगी) है या नहीं, बताने वाली स्ट्रिप विकसित कर रहा है।
क्या कहते हैं अफसर ?
आइआइटीआइ निदेशक प्रो. आलोक धावन ने बताया कि इस मिशन से जुड़ी सभी प्रयोगशालाएं के लिए एक डिजिटल फूड सेफ्टी पोर्टल तैयार किया गया है। इसमें ‘फोकस’ से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध है। आइआइटीआर इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा है। फोकस के तहत नई तकनीक के कुछ सेंसर तैयार हो चुके हैं। दिसंबर तक इनके पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया जाएगा। उम्मीद है कि इन्हें मार्च तक तकनीकी सहयोगियों को सौंप दिया जाएगा।