अहमदाबाद:दीपेश-अभिषेक हत्याकांड में आसाराम व उनके पुत्र नारायण सांई को क्लीन चिट मिल गई है। विधानसभा में पेश जस्टिस त्रिवेदी आयोग की रिपोर्ट में बच्चों की मौत डूबने से होना बताया है। इसके लिए आसाराम प्रबंधन को जमकर लताड़ा भी है।
जानें, क्या है मामला
आसाराम आश्रम में पढ़ाई कर रहे दीपेश-अभिषेक वाघेला तीन जुलाई, 2008 को आश्रम से लापता हो गए थे। पांच जुलाई को उनके क्षत-विक्षत शव साबरमती नदी के पट में पड़े मिले थे। उनके पिता शांति वाघेला व प्रफुल्ल वाघेला ने आसाराम व नारायण पर आश्रम में तांत्रिक विधि करने का आरोप लगाते हुए बच्चों की हत्या का आरोप लगाया था। सीआइडी क्राइम को इस मामले की जांच सौंपी गई थी। वाघेला बंधुओं ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की, लेकिन गुजरात सरकार ने उनकी मांग ठुकरा दी थी।
बच्चों की मौत के बाद अहमदाबाद के राणिप से लेकर साबरमती आसाराम आश्रम तक जोरदार विरोध-प्रदर्शन हुआ तथा पीड़ित परिवार अनशन पर बैठ गया था। निष्पक्ष जांच का भरोसा देते हुए गुजरात सरकार ने तब उनका अनशन समाप्त कराया था। सरकार ने जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीके त्रिवेदी आयोग का गठन किया। आयोग ने जांच कर वर्ष 2013 में सरकार 179 पेज की रिपोर्ट सौंप दी, जिसे सरकार ने शुक्रवार को विधानसभा में पेश किया। ग्यारह साल बाद आई इस रिपोर्ट में बच्चों की मौत डूबने से होना बताया है तथा बच्चों पर तंत्र विधि तथा आश्रम में तांत्रिक क्रियाओं के कोई सबूत नहीं मिलना बताया है।
आयोग ने साफ बताया कि बच्चों के शरीर से अंग गायब होने के भी सबूत नहीं मिले हैं। बच्चों के पिता प्रफुल्ल व शांति वाघेला का आरोप है कि सीआइडी की जांच ही गलत थी, पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं कराई गई। अभिषेक के शरीर पर गर्म सरिए से दाग देने के निशान थे, छाती के भाग से कई अंग गायब थे। उनका यह भी आरोप है कि आश्रम से बच्चे नदी में कैसे चले गए। बच्चों की मौत डूबने से हुई तो उनकी टीशर्ट खुलकर बाहर कैसे आ गई। वाघेला ने सरकार पर आसाराम व नारायण सांई को बचाने व सांठ-गांठ कर इस मामले को रफा-दफा करने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस ने भाजपा पर साधा निशाना
उधर, कांग्रेस के सचेतक शैलेष परमार ने कहा कि राज्य व देश में कोई चुनाव नहीं होने से राज्य की भाजपा सरकार ने आसाराम व उसके बेटे को बचाने की कोशिश की है। मृतक बच्चों व उसके परिवार को न्याय नहीं मिला है। सरकार ने जांच सही नहीं कराई। इस मामले से जुड़े कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। ग्यारह साल बाद सदन में रिपोर्ट पेश करने से ही सरकार की नीयत पर शक होता है।