फर्रुखाबाद: प्राचीन भारत में भी संवाद के आदान-प्रदान की प्रक्रिया गतिमान रही। महर्षि नारद को उनकी भूमिका के लिए आदि पत्रकार माना जाता है। नारद जयंती के उपलक्ष्य में विचार गोष्ठी का आयोजन नगर में किया।
लाल दरवाजा स्थित कलमकार भवन में आयोजित गोष्ठी में नारद जयंती पर पत्रकारिता पर चर्चा हुई| देवर्षि नारद पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।जिसमे कहा गया कि पत्रकारिता समाज और राष्ट्र कल्याण के दृष्टिकोण से बेहद सशक्त माध्यम हो सकती है। पत्रकार अपनी भूमिका को अधिकतम उपयोगी बना सकें, यह प्रयास होना चाहिए। देवर्षि नारद ने पत्रकार के रूप में अपना कर्म लोक मंगल को समर्पित रखा। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस पात्र को टेलीविजन और फिल्मों में नकारात्मक तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। अपनी संस्कृति और जनहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का कार्य इस पेशे से कैसे हो, यह चिंता की जानी चाहिए। उन्होंने पत्रकार हित में अच्छे कार्यों की भी जरूरत जताई।
पिछले वर्षों में पत्रकारिता के क्षेत्र में आए बदलाव की भी चर्चा की। अपने समय में आदि पत्रकार देवर्षि नारद ने मैदानी रिपोर्टिंग की। हर स्तर पर अपना मूल कार्य करते हुए समुदायगत संवाद स्थापित कर समस्याओं को हल करने में भी उनकी भूमिका रही। आज पत्रकारिता में भारत की रैंकिंग किस पायदान पर है, यह कहने की बात नहीं। इसलिए इस क्षेत्र में सक्रिय लोगों को चिंतन अवश्य करना होगा।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में पत्रकारिता और पत्रकार के सामने की चुनौती पर भी उन्होंने विचारोत्तेजक तथ्य रखे। अध्यक्षता सर्वेन्द्र सिंह इंदु अवस्थी ने व संचालन उपकार मणि ने किया| रविन्द्र भदौरिया, विनोद श्रीवास्तव, राजेश हजेला, संजय गर्ग, सुरेन्द्र पाण्डेय, दीपक सिंह, इमरान हुसैन, लक्ष्मीकांत भारद्वाज, मोहनलाल गौड़, ओमप्रकाश शुक्ला, चंद्रप्रकाश दीक्षित, राबिन सिंह, प्रीति तिवारी, नलिन श्रीवास्तव, गीता भारद्वाज, रामबाबू रत्नेश, कृष्णकांत अक्षर, निमिष टंडन आदि दर्जनों पत्रकार, साहित्यकार व कविगण मौजूद रहे।