फर्रुखाबाद: “5000 रुपये विभागीय खर्चा और 5000 रुपये प्रधान का खर्चा निकाल कर 78000 की रसोईघर निर्माण के पैसे में 10000 रुपये आपको बच जायेंगे” एक सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी स्कूल के प्रधानाचार्य को स्कूल में रसोईघर बनाने के लिए रिश्वत का अर्थशास्त्र समझा रहे थे| ये साहब रिश्वत पाठ में ये भी समझा रहे है कि वो तो नहीं चाहते कि इस काम में रिश्वत नहीं ली जाए मगर बेसिक शिक्षा अधिकारी नहीं मान रहे| चाय की चुस्की के साथ दो गालियाँ अपने साहब को देकर अपने को हरिश्चंद्र साबित करने का प्रयास भी कर रहा था| हालाँकि ये जनाब रिश्वतखोरी में जेल की हवा भी खा चुके है|
आठ महीने से रिश्वत का अर्थशास्त्र ठीक न बैठ पाने के कारण जिला मुख्यालय के खाते में लगभग ४ करोड़ पड़ा रहा| वित्तीय वर्ष का अंत आया तो लखनऊ के अधिकारिओ को केंद्र सरकार से मिले पैसे का उपभोग देने की सुध आई जिलों में चिट्ठियां दौड़ने लगी| फरबरी माह में 3 दिन में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने पैसा ग्राम शिक्षा समितिओं में भेज 48 दिन में बनने वाली रसोई 3 दिन में कागजो पर बना कर उपभोग दिखा दिया| अब चूँकि मजबूरी के कारण रसोईघर निर्माण का पैसा बिना अग्रिम घूस पाए भेजना पड़ा है लिहाजा घूसखोरी के लिए प्रख्यात जिले का एक सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी शिक्षा गुणवत्ता और वार्षिक परीक्षा की तैयारी करने के बजाय 4 करोड़ के पीछे भागे भागे घूम रहा है| निर्माण सम्बन्धित पैसा आहरण करने वालो को रिश्वत का अर्थशास्त्र समझा रहा है|
विभागीय खर्चा, मिठाई, खर्चा, संलग्नक, वजन और सुविधा शुल्क जैसे शब्द उत्तर प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में घूस के प्रयायवाची शब्द हैं जिन्हें घूसखोर बाबु और अफसर घूस की लेन देन की भाषा के रूप में इस्तेमाल करते है| मुर्गा, पार्टी, आइटम और ग्राहक जैसे शब्द घूस देने वालों के लिए इस्तेमाल किये जाते है| ये हाल अमूमन एक जिले का नहीं लगभग पूरे प्रदेश का है| जनता के विकास के लिए आया पैसा रिश्वतखोरी में इसी तरह बटता है ये जमीनी हकीकत है जिसका हिस्सा नेता मंत्रियो के खजाने तक पहुचता है फिर भले ही चाहे घटिया स्कूल बना कर बच्चो की जान से ही सौदा क्यूँ न करना पड़े|