किसी एक दिन सुबह से यह तय कर लें कि आज हम जड़ वस्तुओं से वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा प्राणवान से करते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारे जूते-चप्पल, दरवाजे, हमारी कार का दरवाजा, हमारा पेन, रसोई के सामान इन सबसे आपका व्यवहार ऐसा हो जैसे ये सब जीवित हैं। इनको स्पर्श करते समय महसूस करें कि इनमें भी प्राण हैं। हमारा पूरा व्यवहार इनके साथ बदल दें।
आज तृण से ब्रह्म तक सबको खूब मान दीजिए, स्नेह दीजिए, संवेदना बहा दीजिए। रोज जिन चीजों को हम अवॉइड कर जाते हैं आज उन्हें गौर से देखिए। उनका इस्तेमाल पूरे सलीके से कीजिए। एक दिन उनके नाम कर दीजिए। यदि पेन हाथ में है तो अपने हृदय की संवेदना को उससे जोड़ दीजिए, समझ लीजिए कोई नवजात शिशु हाथ में है। यदि आप रसोई घर में हैं तो प्रत्येक बर्तन में प्राण देखिए। आज किसी बर्तन को पटकना नहीं है।
कुछ जिन्दा तजुर्बा करना है, अपना व्यवहार बदल दीजिए। आज उन्हें ऐसे न पटकें जैसे रोज पटकते हैं। आज सलीका दूसरा होगा। दिनभर जड़ के साथ खूब चेतन व्यवहार करें। ये प्रयोग आपके भीतर प्रत्येक के लिए प्रेम का आरम्भ कराएगा। हो सकता है हमें कुछ अजीब सा लगे लेकिन इसे पागलपन न समझें। पागल तो हम तब हैं जब जड़ के साथ निष्प्राण व्यवहार कर रहे हैं। इनके साथ जरा सा चेतन हुए कि आप होश में आ जाएंगे।
आपका आनन्द बढ़ जाएगा। राम अवतार में सेतु निर्माण के समय वानर जब पत्थर को हाथ में उठाते थे और उसके नीचे राम लिखते थे उसका अर्थ ही यही था कि जड़ वस्तु भी उनके हृदय से जुड़ी हुई है। जिसने जड़ से प्रेम कर लिया वह फिर सारे संसार के प्रति प्रेम में डूब जाता है।