लखनऊ:विख्यात संघ विचारक तथा भारतीय जनसंघ पार्टी के संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज 102वीं जयंती है। देशभर में उनकी जयंती काफी धूमधाम से मनाई जा रही है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने उनके नाम पर अनेक योजनाएं चालू की हैं। इसके बाद भी उनकी मौत के पचास वर्ष बाद भी उसका कारण अभी भी रहस्य बना है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज 102वीं जयंती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय संघ विचारक और भारतीय जनसंघ पार्टी के सह-संस्थापक के साथ जनता पार्टी के अग्रदूत हैं। उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को हुआ था और वह दिसंबर के 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी थी।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय के पिता पेशे से एक ज्योतिषी थे। जब वह सिर्फ तीन वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया था। उसके कुछ वर्ष बाद ही जब उनकी उम्र आठ वर्ष थी तब पिता का साया भी सिर से उठ गया। ‘एकात्म मानववाद’ का संदेश देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगला चंद्रबन में हुआ था। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। माता रामप्यारी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव 11 फरवरी 1968 को मुगल सराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन) के पास मिला था। दीन दयाल उपाध्याय की मौत हुई थी या फिर हत्या ये अब तक राज बना हुआ है। यूपी सरकार ने हाल ही में इसकी जांच करवाने का फैसला भी किया है। 11 फरवरी, 1968 को सुबह तकरीबन 3.30 बजे के प्लेटफॉर्म से करीब 150 गज पहले रेलवे लाइन के दक्षिणी ओर के बिजली के खंभे से लगभग तीन फीट की दूरी पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय शव मिला था। लोहे और कंकड़ों के ढेर पर दीनदयाल उपाध्याय पीठ के बल सीधे पड़े हुए थे और कमर से मुंह तक का भाग दुशाले से ढका हुआ था। उनकी जेब से प्रथम श्रेणी का टिकट नं 04348 रिजर्वेशन रसीद नं 47506 और 26 रुपये बरामद हुए। उनके दाएं हाथ में एक घड़ी बंधी हुई थी, जिस पर ‘नानाजी देशमुख’ लिखा था। उस दौरान उनके हाथ में एक पांच रुपया का नोट भी था।
लखनऊ से चलकर बारांबकी, फैजाबाद, अकबरपुर शाहगंड होते हुए ट्रेन आधी रात जौनपुर पहुंची। जौनपुर के महाराज दीनदयाल के दोस्त थे, तो उन्होंने अपने सेवक कन्हैया के हाथों एक पत्र दीनदयाल उपाध्याय को भिजवाया और रात को 12 बजे उन्हें यह पत्र मिला। उसके बाद रात 2.15 बजे गाड़ी मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची और पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस पटना नहीं जाती थी, इसलिए बोगी काटकर दिल्ली-हावड़ा ट्रेन से जोड़ दी गई। इसमें करीब आधे घंटे का वक्त लगा और दो बजकर 50 मिनट पर ट्रेन फिर से पटना के लिए चल पड़ी और उसके बाद 3 बजे उनका शव ट्रेन की पटरियों पर मिला। वहीं दूसरी ओर ट्रेन 6 बजे ट्रेन पटना स्टेशन पर पहुंची, जहां बिहार जनसंघ के नेता उनका इंतजार कर रहे थे। इस बीच जब सुबह करीब 9.30 बजे दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस मुकामा रेलवे स्टेशन पहुंची। यहां गाड़ी की प्रथम श्रेणी बोगी में चढ़े यात्री ने सीट के नीचे एक लावारिस सूटकेस देखा। उसने इसे उठाकर रेलवे कर्मचारियों के सुपुर्द कर दिया। बाद में पता चला कि यह सूटकेस पंडित जी का था। उन्होंने लखनऊ वाली बोगी भी देखी, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय नहीं मिले और साढ़े 9 बजे गाड़ी मुकामा स्टेशन पर पहुंची। वहीं किसी की नजर बी कंपार्टमेंट में सीट के नीटे रखे हुए सूटकेस पर पड़ी। उसने रेलवे अधिकारियों को यह सूट जमा करवाया और यह सूटकेस पं दीनदयाल का था।
बताया जाता है कि बिहार प्रदेश के जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री अश्विनी कुमार के आग्रह पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय पटना में बिहार प्रदेश भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए जा रहे थे। उन्होंने पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में प्रथम श्रेणी की टिकट करवा ली और गाड़ी का समय शाम 7 बजे था और पंडित जी सही वक्त पर स्टेशन पर पहुंच गए। दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ में अपनी मुंहबोली बहन लता खन्ना के घर ठहरे हुए थे। उस दौरान उनके पास एक सूटकेस, बिस्तर, टिफिन और किताबों का थैला था। उन्होंने बिना आस्तीन वाली बनियान, उसके ऊपर तीन स्वेटर पहन रखे थे। इन सबसे ऊपर उन्होंने कुर्ता और जैकेट पहन रखा था।