फूलों पर जब बहार आ जाती है. सरसों सोने की तरह चमकने लगता है. जौ-गेहूं की बालियां खिलने लगतीं हैं. आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता हैं. हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियां चारों तरफ मंडराने लगतीं|
बस समझ लीजिए वसंत पंचमी का आगमन हो गया है. यह एक ओर जहां ऋतुराज के आगमन का दिन है.वहीं यह विद्या की देवी और वीणावादिनी सरस्वती की पूजा का भी दिन है|
यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनाई जाती है. इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं|
प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था.इस ऋतु में मन में उल्लास और मस्ती छा जाती है तथा उमंग भर देने वाले कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलते हैं|
इससे शरद ऋतु की विदाई के साथ ही पेड़ पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है. प्रकृति नख से शिख तक सजी नजर आती है और तितलियां तथा भंवरे फूलों पर मंडराकर मस्ती का गुंजन गान करते दिखाई देते हैं. हर ओर मादकता का आलम रहता है|
आयुर्वेद में वसंत को स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है. हालांकि इस दौरान हवा में उड़ते पराग कणों से एलर्जी खासकर आंखों की एलर्जी से पीडि़त लोगों की समस्या बढ़ भी जाती है|
वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं
भारतीय दर्शन से जुड़े नवग्रह बजरंग अनुंसधान केंद्र के संचालक गोविन्द वत्स का कहना है कि ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था| इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है|
उन्होंने कहा कि इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है|
ज्योतिषाचार्य के.के शर्मा के अनुसार वसंत पंचमी के पीछे एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भागीरथ की तपस्या के चलते गंगा का अवतरण हुआ था जिससे समूची धरती खुशहाल हो गई थी. उन्होंने कहा कि माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पंचमी पर गंगा स्नान का काफी महत्व है|
पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया|
प्राचीन काल में वसंत पंचमी का दिन मदनोत्सव और वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता था|इस दिन स्त्रियां अपने पति की पूजा कामदेव के रूप में करती थीं|
ज्योतिषाचार्य वीके शास्त्री के अनुसार वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था. तभी से यह दिन ‘वसंतोत्सव’ तथा ‘मदनोत्सव’ के रूप में मनाया जाने लगा|
शास्त्री ने कहा कि वसंत पंचमी इस बात का संकेत देती है कि धरती से अब शरद की विदाई हो चुकी है. अब ऐसी ऋतु आ चुकी है जो जीव जंतुओं तथा पेड़ पौधों में नवजीवन का संचार कर देगी|
वसंत में मादकता और कामुकता संबंधी कई तरह के शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं जिसका आयुर्वेद में व्यापक वर्णन है|
महर्षियों-मनीषियों ने कहा है कि वसंत पंचमी को पूरी श्रद्धा से सरस्वती की पूजा करनी चाहिए. बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान कराना और बोलना सिखाना शुभ माना जाता है|
वसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है जो सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने का परिचायक है.इस दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है जो मनुष्य के मन में भरे उल्लास को प्रकट करने का माध्यम है|
वसंत पंचमी पर ही हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है|