एलर्जी व अस्थमा का गहरा संबंध

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हेल्थ|| फरवरी, मार्च व अक्तूबर, नवंबर में तापमान में होने वाले परिवर्तन से एलर्जी मामलों में वृद्धि होती है|

इस वजह से फरवरी, मार्च और अक्तूबर, नवंबर में बच्चों में अस्थमा की दर में करीब 50 फीसदी वृद्धि हो जाती है. बच्चों में मोटापे के मामले भी बढ़ रहे हैं| अधिक वजन से फेफड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे अस्थमा की आशंका बढ़ जाती है| जाड़े के दिनों में ओपीडी आने वाले करीब 50 फीसदी मरीज एलर्जी की समस्या के होते हैं. एलर्जी और अस्थमा का गहरा संबंध होता है|

ब्रोंकाइटिस एलर्जी, राइनाइटिस और अस्थमा बचपन में होने वाली आम बीमारियां हैं. अस्थमा में फेफड़ों के ऑक्सीजन ले जाने वाले वायुकोष प्रभावित होते हैं और इस संक्र मण की शुरूआत एलर्जी से होती है|

ज्यादातर मामलों में अस्थमा की शुरूआत दो से छह साल की उम्र में होती है| इसका कारण इस उम्र में बच्चों का एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारकों जैसे धूल, गर्द, तंबाकू का धुआं, वायरल संक्र मण से अधिक संपर्क होना है. कई बार अस्थमा बचपन में ठीक हो जाता है लेकिन वयस्क होने पर फिर उभर आता है|

अस्थमा का दौरा कई कारणों से पड़ सकता है. इनमें घर के बाहर किसी वजह से एलर्जी, मौसम में बदलाव, पालतु पशु आदि शामिल हैं। इस दौरान फेफड़ों के वायुकोषों में सूजन आ जाती है और उनमें म्यूकस भर जाता है| वायु कोषों के आसपास की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं तो वायुकोष और संकरे हो जाते हैं. यही स्थिति अस्थमा कहलाती है|

अस्थमा के मरीजों को छाती में कसाव का अहसास होता है, सांस लेने में दिक्कत होती है, उन्हें कफ हो जाता है, वह जल्दी थक जाते हैं और हांफने लगते हैं| यह बीमारी वंशानुगत भी होती है. इसी तरह परिवार में किसी को एलर्जी हो या सांस लेने में कोई तकलीफ हो, रहने के स्थान पर वायु प्रदूषण, धुआं, धूल गर्द अधिक हो तो अस्थमा हो सकता है. घरों की सफाई में प्रयुक्त किए जाने वाले रसायन और पालतू पशु भी अस्थमा का कारण बन सकते हैं|

आद्रता में वृद्धि या ठंडी हवा से भी अस्थमा का दौरा पड़ सकता है. शहरी बच्चों में अस्थमा के मामले अधिक होने का मुख्य कारण वायु प्रदूषण होता है|
अलग-अलग लोगों में अस्थमा के लक्षण अलग अलग होते हैं. समय के हिसाब से कई बार लक्षणों में अंतर भी पाया गया है|

एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारकों का तीव संक्रमण या सांस की नली के ऊपरी हिस्से में तीव संक्रमण होने पर अस्थमा का दौरा पड़ता है. यह दौरा कितना तेज है यह बात मरीज द्वारा अस्थमा को नियंत्रित करने के तरीके पर निर्भर करती है. कई बार अस्थमा का दौरा जानलेवा भी होता है क्योंकि त्वरित राहत के लिए दवाओं के बावजूद इसकी आवृत्ति अधिक हो सकती है|

अस्थमा को मामूली बीमारी समझकर इसकी उपेक्षा करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसे में दवाइयां असर नहीं करतीं. जिन लोगों को तीव अस्थमा होता है उन्हें हमेशा कफ की शिकायत बनी रहती है और एक पूरा वाक्य बोलने में उन्हें बेहद कठिनाई होती है. थोड़ी सी दूरी तक चलने पर ही ऐसे लोग हांफने लगते हैं| ऐसे लोगों के होंठों पर हल्के नीले धब्बे देखे जा सकते हैं. लोगों को छोटी छोटी बातों पर तनाव होता है. अक्सर ये लोग भ्रम के शिकार होते हैं और किसी भी काम में एकाग्र नहीं हो पाते|