लखनऊ: मंगलवार को छह माह का कार्यकाल पूरा कर रही योगी सरकार ने पूर्व संध्या पर अपना पहला श्वेत पत्र जारी किया। 24 पृष्ठों के दस्तावेज में बिना नाम लिए कालखंड (2003-2017) के जरिये सपा-बसपा की पूर्ववर्ती सरकारों पर मुख्यमंत्री ने जमकर निशाना साधा। इस दस्तावेज में गुजरे 15 वर्षों की हुकूमत के कारनामों का कच्चा चिट्ठा दिया गया है। योगी ने भ्रष्टाचार, जर्जर अर्थव्यवस्था, अपराधियों को प्रश्रय और खराब कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए बर्बादी का सारा ठीकरा उनके ही मत्थे फोड़ा। उनका कहना था कि 15 वर्षों में उत्तर प्रदेश को पिछली सरकारों ने बर्बाद कर दिया।
सोमवार को लोकभवन के सभागार में अपनी कैबिनेट के साथ मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्वेतपत्र जारी करते हुए पूर्ववर्ती सरकारों को घेरने में कसर नहीं छोड़ी। योगी ने कहा, ’15 वर्षों के दौरान सत्ता पर काबिज सरकारों ने भ्रष्टाचार को नहीं विकास रोका, असामाजिक और भ्रष्ट तत्वों को बढ़ावा देकर अराजकता का माहौल बनाया। पिछली सरकारों ने सूबे को किस हाल में छोड़ा था, यह जानना जनता का हक और हमारी जवाबदेही है। श्वेतपत्र लाने का मकसद भी यही है।
योगी ने 19 मार्च को सत्ता संभालने के बाद के अनुभवों को सिलसिलेवार गिनाया। कहा, पूर्ववर्ती सरकारों की उपेक्षा के चलते किसानों की बदहाली, चीनी मिलों द्वारा समय से गन्ना किसानों की उपज का भुगतान न होने और उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग तथा भर्ती करने वाली संस्थाओं में अराजकता का उदाहरण दिखाकर योगी ने कहा कि गुजरे डेढ़ दशक में सपा-बसपा सरकारों ने किसानों और नौजवानों के साथ छल किया। बिजली आपूर्ति में पक्षपात किया गया। उन्होंने सड़कों की बदहाली बुंदेलखंड व पूर्वांचल के साथ उपेक्षा पूर्ण रवैए का भी मुद्दा उठाया। श्वेत पत्र के जरिये योगी ने सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक हर मोर्चे पर पक्षपात पूर्ण और अनैतिक आचरण का आरोप लगाकर सपा-बसपा की सरकारों की अराजकता चिह्नित की।
योगी यह बताने से भी नहीं चूके कि पिछली सरकार में बिना काम पूरा किए लोकार्पण किए गये। उन्होंने मेट्रो रेल, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, गोमती रिवर फ्रंट, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, कैंसर इंस्टीट्यूट और एसजीपीजीआइ के ट्रामा सेंटर के नाम भी गिनाए। सपा सरकार पर स्वच्छ भारत मिशन की अनदेखी का भी आरोप मढ़ा।हमारी सरकार को विरासत में अराजकता, अपराध और भ्रष्टाचार मिले। ध्वस्त कानून-व्यवस्था के कारण निवेशकों और व्यापारियों का उत्तर प्रदेश से मोह भंग हो चुका था।
भू-माफिया की खोली पोल
श्वेत पत्र के जरिये सार्वजनिक और निजी भूमि पर कब्जा करने वाले अपराधियों और भू-माफिया की योगी ने पोल खोली। कहा कि थानों में मुकदमा दर्ज करने तक में भेदभाव होता रहा है। पुलिस के रिक्त पदों पर भर्ती में पक्षपात और भरने के लिए सार्थक प्रयास न करना, मथुरा के जवाहर बाग की घटना की याद दिलाकर यह भी आरोप लगाया कि प्रदेश के कारागार अपराधियों के आरामगाह बन गए थे। योगी ने कहा कि अपराधियों को सरकारी संरक्षण दिया गया।
फिजूलखर्जी में खजाना खर्च
मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा जब सत्ता में आई तो खजाना खाली था। 10 वर्षों में राजकोषीय घाटा बढ़कर ढाई गुना (374775 करोड़ रुपये) हो गया था। वर्ष 2010 में प्रदेश के हर व्यक्ति पर 7,795 रुपये के कर्ज था जो 2017 में बढ़कर 17,097 रुपये हो गया। सकल आय के मानक को तोड़ कर कर्ज तो लिया गया पर पूंजीगत व्यय में भारी कटौती करने से विकास के काम ठप रहे। स्पष्ट है कि विकास के पैसे फिजूूलखर्ची में खर्च किए गए। प्रदेश के समग्र विकास और रोजगार देने में अहम भूमिका निभाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी इस दौरान लगातार घाटे के कारण दम तोड़ते गए। 2011-12 में इस क्षेत्र का घाटा 6489.91 करोड़ था जो 2015-16 में बढ़कर 91401.19 करोड़ तक पहुंच गई। इसी समयावधि में इनका कर्ज बढ़कर 35952.78 से बढ़कर 75950.27 करोड़ हो गया। सर्वाधिक घाटे में दक्षिणांचल, पूर्वांचल, मध्यांचल और पश्चिमांचल के विद्युत वितरण निगम रहे।
हफ्ते में औसतन दो दंगे
सांप्रदायिक मोर्चे पर पिछली सरकार की विफलता भी श्वेत पत्र में उजागर की गई है। कहा गया है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में मथुरा, मुजफ्फरनगर, बरेली समेत सभी प्रमुख जिलों में सांप्रदायिक दंगे हुए। औसतन हर हफ्ते दो दंगे की बात कही गई है।
किसानों की उपेक्षा
योगी के अनुसार किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था। न समय से खाद-बीज मुहैया कराया गया और न न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनके उपज को खरीदा गया। आलू के समर्थन मूल्य की व्यवस्था न होने से अधिक उत्पादन वाले वर्षों में किसानों को भारी घाटा हुआ। बागबानी की फसलों को प्रोत्साहित करने और उपज के संरक्षण की कोई नीति नहीं रही। बकाये के कारण गन्ना किसानों की कमर टूट गई। 2014-15 में 44.64 करोड़ का बकाया 2016-17 में बढ़कर 23000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। कुप्रंबधन के नाते कई चीनी मिलें बंद हो गईं। सहकारी चीनी मिलों की नियुक्तियों में धांधली हुई। चीनी और गन्ना निगम की 11 मिलों को अनुमानित कीमत 173.63 करोड़ रुपये थी, पर इनको मात्र 91.65 करोड़ में ही बेच दिया गया।
योजनाओं में देर से वित्तीय भार
श्वेत पत्र में पिछली सरकारों की अनियमितताएं गिनाते हुए यह बताया गया कि योजनाएं समय से पूरा न करने की वजह से लागत का बोझ बढ़ता गया। न कार्य समय से पूरा हुए और न ही तय बजट में। बाढ़ बचाव की न तो समय से कोई तैयारी हुई और न ही अधूरे कार्यों को पूरा किया गया। भ्रष्टाचार के चलते 50 लाख की संख्या में फर्जी राशन कार्ड जारी किए जाने का भी अनुमान लगाया है।
बिना पैसे और योजना सड़कों को मंजूरी
सरकार को विरासत में कुल 121000 किमी बदहाल सड़कें मिलीं। बिना पैसे और कार्ययोजना के कई सड़कों के निर्माण की मंजूरी दी गई। मात्र एक हजार और एक लाख के टोकन मनी पर दी गई मंजूरी से साफ है कि सरकार की रुचि सड़कों के निर्माण से अधिक कुछ खास ठेकेदारों के हित में थी। इन ठेकेदारों और अभियंताओं में सांठ-गांठ थी। अधिकांश टेंडर इनके पक्ष में ही खुले। इस सबके नाते विरासत में नई सरकार को 230 अधूरी सड़कें मिली।
यश भारती की बंदरबांट
पिछली सरकारों ने पर्यटन और संस्कृति क्षेत्र की भारी उपेक्षा की। साल भर पहले केंद्र सरकार से मंजूर योजनाओं पर काम तक नहीं शुरू कराया। पर्यटन नीति-2016 को लागू तो किया पर क्रियान्वयन के लिए शासनादेश नहीं जारी किया। योग्यता की अनदेखी कर यशभारती बांटने से पुरस्कार की गरिमा तो गिरी ही योग्यता का अपमान भी हुआ।
अल्पसंख्यकों का कल्याण दिखावा
अल्पसंख्यकों का कल्याण पिछली सरकार के लिए सिर्फ दिखावा था। वर्ष 2012-13 से 2016-17 के बजट में प्रावधानित राशि 13904 करोड़ रुपये में से 4830 करोड़ का उपयोग न होना इसका सबूत है।
कुछ खास बिंदु
– स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर अनियमितता।
– गुजरे पांच वर्षों में परिषदीय विद्यालयों में 23.62 लाख छात्र-छात्राओं की संख्या में गिरावट।
– अध्यापकों की तैनाती छात्र संख्या के मानक के अनुरूप नहीं। विभिन्न विद्यालयों में 65 हजार 597 अध्यापक छात्र संख्या के मानक से अधिक तैनात थे, जबकि दूसरी ओर लगभग सात हजार 587 विद्यालय एकल थे।
– 31 मार्च, 2007 को सरकार की ऋणग्रस्तता करीब एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये थी, तो 31 मार्च, 2017 को बढ़कर लगभग तीन लाख 75 हजार करोड़ रुपये हो गई।