नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को बीते कई महीनों से समाज और मीडिया में चर्चा के केंद्र में रहे ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर फैसला सुनाएगा। सूत्रों के मुताबिक पांच जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले में फैसला सुनाएगी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सुबह 10:30 बजे तक आ सकता है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में इस साल 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला को सुरक्षित रखा था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामें में केंद्र सरकार ने तीन तलाक के मुद्दे को असंवैधानिक बताते हुए इसे खत्म करने का अनुरोध किया था। वहीं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि वह सभी काजियों को अडवाइजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक के मामले में ना केवल महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर 27 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं। नियम के मुताबिक, जो पीठ सुनवाई करती है वही फैसला देती है। इसीलिए प्रत्येक न्यायाधीश सेवानिवृति से पहले उन सभी मामलों में फैसला दे देता है, जिनकी उसने सुनवाई की होती है। अगर सुनवाई करने वाली पीठ का कोई भी न्यायाधीश फैसला देने से पहले सेवानिवृत हो गया तो उस मामले में दोबारा नए सिरे से सुनवाई होगी और तब फैसला दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की वैधानिकता पर छह दिन सुनवाई चली। कोर्ट ने गत 18 मई को सुनवाई के आखिरी दिन फैसला सुरक्षित रख लिया। शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वयं संज्ञान लिया, बाद में तीन तलाक पीड़ित महिलाओं ने भी याचिकाएं डालीं और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
याचिकाकर्ताओं की दलील
1. तीन तलाक महिलाओं के साथ भेदभाव है।
2. महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है, जबकि पुरुषों को मनमाना हक है।
3. कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है।
4. ये गैर कानूनी और असंवैधानिक है।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमीयत की दलील
1. ये अवांछित है, लेकिन वैध
2. ये पर्सनल ला का हिस्सा है कोर्ट दखल नहीं दे सकता
3. 1400 साल से चल रही प्रथा है ये आस्था का विषय है, संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा
4. पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता
सरकार की दलील
1. ये महिलाओं को संविधान मे मिले बराबरी और गरिमा से जीवनजीने के हक का हनन है
2. ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता
3. पाकिस्तान सहित 22 मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं
4. धार्मिक आजादी का अधिकार बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के आधीन है
5. अगर कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी।