भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदाताओं में वोटिंग के प्रति में कम होते रुझान पर जागरूकता फैलाने के मकसद से भारत सरकार ने हर साल 25 जनवरी को ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ मनाने का फैसला किया है। इसकी मंजूरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को दी। भारत के निर्वाचन आयोग की 61वीं वषर्गांठ पर 18 वर्ष के नौजवानों को मतदाता पहचान पत्र प्रदान कर इस दिन को ‘मतदाता दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।
निर्वाचन आयोग ने निर्णय लिया है कि देश भर के सभी 8.5 लाख मतदान केंद्र वाले क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष उन सभी पात्र मतदाताओं की पहचान की जाएगी, जिनकी उम्र एक जनवरी को 18 वर्ष हो चुकी होगी। इस सिलसिले में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज किए जाएंगे और उन्हें निर्वाचन फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) सौंपे जाएंगे। पहचान पत्र बांटने का काम सामाजिक, शैक्षणिक व गैर-राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा मतदान केंद्रों पर किया जाएगा। इस मौके पर मतदाताओं को एक बैज भी दिया जाएगा, जिसमें लोगो के साथ नारा अंकित होगा ‘मतदाता बनने पर गर्व है, मतदान को तैयार हैं।’
गौरतलब है कि चुनाव का कहना है, अव्वल भारत जैसे देश में अनिवार्य मतदान व्यवहारिक नहीं है और दूसरा मतदान के लिए बाध्य करना ही अपने आप में अलोकतांत्रिक है। आयोग के महानिदेशक अक्ष़य राउत कह चुके हैं कि ड्राइंग रूम बहस में भाग लेने वालों को मतदान में हिस्सा लेने के प्रति आकर्षित करने के लिए आयोग कई प्रयास और परीक्षण कर रहा है और इस सिलसिले में ‘पप्पू अभियान’ काफी हद तक सफल रहा। चुनाव आयोग का यह सुझाव है कि जिस मतदाता को कोई उम्मीदवार योग्य नजर नहीं आता, उसके लिए ईवीएम में ‘इनमें से कोई नहीं’ का बटन हो। राउत के मुताबिक अभी भी लोग इस विकल्प का उपयोग कर सकते है और मतदान केंद्रों पर चुनाव से जुड़े कर्मचारी से जरूरी फार्म लेकर उसे भर कर दे सकते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया गोपनीय नहीं है।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप भी अनिवार्य मतदान के पक्ष में हैं लेकिन साथ ही उनका यह भी मानना है कि मतदान नहीं करने वालों के लिए दंड का प्रावधान न हो, बल्कि उन्हें मतदान के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
देश के प्रत्येक नागरिक के लिए मतदान में हिस्सा लेना आदि अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए ताकि मतदान शत प्रतिशत नहीं तो कम से कम 90 फीसदी तक तो पहुंचे। हालांकि कश्यप कहते हैं कि मतदान चुनने के लिए होता है इसलिए ‘किसी के पक्ष में मत नहीं’ डालने का कोई औचित्य नहीं है। यदि आपको कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप अपना उम्मीदवार खड़ा कीजिए या खुद ही चुनाव लडि़ए। बता दें कि आजादी के समय से मतदान के प्रतिशत में उत्तरोत्तर सुधार हुआ है। वर्ष 1951 के पहले आम चुनाव में जहां 40 फीसदी मतदान हुआ वहीं पिछले आम चुनाव में करीब 57 फीसदी मतदान हुआ। सर्वाधिक 63.56 फीसदी मतदान 1984 के आम चुनाव में हुआ था। यह देखा गया है कि 18 वर्ष एवं उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में साल पर साल तक दर्ज नहीं हो पाए। कुछ मामलों में देखा गया कि नाम दर्ज कराने का प्रतिशत कुछ मामलों में तो 20 से 25 फीसदी जितना कम है।