एमपी साहब जबाब दो- वोट मांगते हिंदी में तो आरोपों पर सफाई अंग्रेजी में क्यूँ?

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केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा रविवार को बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में अंग्रेजी में दिए गए भाषण और सवालों के जवाब शायद ही टेलीविजन देख रहे उन तमाम देशवासियों की समझ में आये होंगे जो हर चुनाव में उन्हें हिंदी में वोट मांगते देखते है | जनता से जुड़े सवालों का अंग्रेजी में जवाब देने के पीछे देश के जिम्मेदार और कद्दावर नेता की कौन सी मंशा थी ये उन्हें ही पता होगी| देशवासियों के शिक्षा स्तर से बखूबी परचित केन्द्रीय मंत्री ने अपने बयान में साफ़ शब्दों में कहा कि वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पढ़े हुए है और उनकी अंग्रेजी हो सकता है वहां बैठे लोगों की समझ में ना आई हो|

मंत्री जी अपने चेरिटी ट्रस्ट में विकलांगों को उपकरण बांटे जाने की योजना में सामने आये भ्रष्टाचार के उस मामले पर बोल रहे थे जिसे लेकर पिछले चार दिनों से उनका नाम सुर्ख़ियों में बना हुआ था | उनके इस बयान से देश के हिंदी भाषी और अंग्रेजी ना समझ पाने वाले मतदाताओं में ये सन्देश गया है कि हम आपके पास वोट मांगते समय तो हिंदी बोलेंगे लेकिन जब वोट की ताकत से वो कुर्सी हासिल कर लेंगे तो वे जनता की समझ में ना आने वाली अंग्रेजी में भाषण देने लगेंगे, ताकि उनकी चोरी ना पकड़ी जाये |

बात अगर आंकड़ों की करे तो देश के केवल 60 फीसदी लोग शिक्षित है, जिसमें से लगभग 40 फीसदी लोग अंग्रेजी भाषा को लिख और बोल पाते है| ये सिर्फ आंकडे मात्र ही है अगर हम सलमान खुर्शीद के ही निर्वाचन क्षेत्र फर्रुखाबाद की बात करें तो वहां की 10 फीसदी आवादी बमुश्किल अंग्रेजी समझने और बोलने में सक्षम है| जिसे बात को सलमान ने अपने बयान से भी पुष्ट कर दिया कि ज्यादातर लोगों कि समझ में उनकी बात नहीं आई होगी| इसके बाद भी उनकी कौन सी मज़बूरी थी कि वह और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद डेढ़ घंटे तक चली प्रेस कांफ्रेंस में अंग्रेजी में बात करते रहे|

देश को बदलने की हामी भरने वाले अंग्रेजी भाषी नेताओं की सूची में सलमान खुर्शीद अकेला नाम नहीं है, कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी, देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गाँधी और मौजूदा प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह समेत दर्जनों ऐसे नेता है जो अपने बयान अंग्रेजी में देना पसंद करते है, लेकिन जब चुनावी जनसभाएं करनी होती है तो जनता से वोट मांगने के लिए हिंदी में भाषणबाज़ी करते है| क्या अंग्रेजी बोलने वाले ये नेता आम आदमी को केवल चुनावी जरुरत ही मानते है और जरुरत पूरी होने के बाद अंग्रेजी बोलकर उन्हें सन्देश दे देते है कि तुम वो आदमी हो जिसे उनकी वो भाषा नहीं आती जिसे वो इंग्लैंड से सिखकर आये है |

सवाल उठता है कि राजनेताओं की ये नीति कब तक चल पायेगी, कि वोट तो हिंदी में मांगेगे और कुर्सी पर बैठने के बाद चोरी पकडे जाने पर आम आदमी की समझ में ना आने वाली अंग्रेजी भाषा बोलकर खुद को पाक साफ़ साबित करने की कोशिश करेंगे |