लखनऊ: उत्तर प्रदेश के हाई प्रेशर चुनाव के सातवें चरण की वोटिंग पूरी हो चुकी है. नतीजे 11 मार्च को आएंगे. इस बीच सभी राजनीतिक दलों के हाई-प्रोफाइल चेहरों को बीते 6 महीने से जारी जी तोड़ मेहनत से छुट्टी मिल गई है. इसमें अखिलेश यादव, राहुल गांधी, अमित शाह, शामिल हैं. इनमें से किसी एक या दो नेता के हाथ में उत्तर प्रदेश की कमान जाने वाली है. वहीं बाकी नेताओं को हार के चलते किसी और काम में अपने आप को व्यस्त करने की जरूरत पड़ेगी, खासतौर पर 2019 के आम चुनावों को देखते हुए हारने वाले नेताओं को नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करनी होगी.
अखिलेश यादव
चुनाव हारते ही अखिलेश यादव सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हो जाएंगे. नए मुख्यमंत्री को सत्ता हस्तांतरण करने और मुख्यमंत्री आवास खाली करने के बाद हार के कारणों को समझने के लिए लंबा वक्त मिल जाएगा. प्रदेश में अगला चुनावी बिगुल 2019 में आम चुनावों के लिए बजेगा. तब तक अखिलेश को समाजवादी पार्टी से चुनौती का सामना करना पड़ेगा. मौजूदा समय में पार्टी के राष्ट्रीय ढ़ांचे की कमान उनके हाथ में है लेकिन चुनावों में हार मिलने के बाद उन्हें इस कुर्सी को बचाने की लंबी कवायद करनी होगी. चाचा शिवपाल और पिता मुलायम उनके पर कतरने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. वहीं कांग्रेस के रूप में मिला पार्टनर भी संसद में अस्तित्वहीन होने के कारण किसी तरह की मदद देने में कारगर नहीं रहेगी.
राहुल गांधी
एक दशक से लंबे समय से राजनीति में सक्रिय राहुल गांधी को लगातार उत्तर प्रदेश में मुंह की खानी पड़ रही है. कभी कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा प्रदेश एक-एक कर राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े गए सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नकार चुका है. पार्टी के सूत्रों का भरोसा था कि इस बार उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को अधिक सीटों को जीतने का मौका मिलेगा जिसके बाद उन्हें आसानी से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया जाएगा. लेकिन 11 मार्च को वोटों की गिनती में एक बार फिर मुंह की खाने के बाद राहुल गांधी को कवायद पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत करने की करनी होगी. वहीं बिना किसी बड़ी जीत पर सवार हुए अध्यक्ष बनने की स्थिति में राहुल को 2019 के आम चुनावों के लिए अपनी नई रणनीति खोजनी होगी. पहले बीजेपी, फिर बिहार में जेडीयू के लिए करिश्मा करने वाले प्रशांत किशोर विफल हो जाएंगे और इसका जवाब भी राहुल गांधी को तैयार करना होगा.
अमित शाह
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का ताज पार्टी अध्यक्ष बनाकर अमित शाह के सिर पर रख दिया गया था. इस ताज के लिए 2014 में यदि बीजेपी को 80 सीट मिलना जिम्मेदार है तो 2017 के विधानसभा चुनावों में हार इस ताज पर सवाल खड़ा कर देगी. अमित शाह को जवाब देना होगा कि आखिर क्यों वह 2014 वाला करिश्मा 2017 में नहीं दोहरा पाए? इसके अलावा उन्हें पार्टी को यह भी समझाना होगा कि हार के बावजूद 2019 के आम चुनावों लिए क्यों कमान उनके ही हाथ में रहनी चाहिए.