नई दिल्ली:यूपी के सीएम अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी से निकालकर फिर वापस लेना और विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने का घटनाक्रम क्या फिक्स है? पार्टी नेताओं को बार-बार निकालना, फिर उनकी वापसी और मुलायम सिंह की हैसियत बनाए रखकर आशीर्वाद लेने के सिलसिले से तो इशारा इस ओर ही हो रहा है। इतने बड़े सियासी दंगल के बावजूद मुलायम सिंह और अखिलेश में तल्खी नहीं है। अखिलेश यादव के चुनावी रणनीतिकार स्टीव जॉर्डिंग के कथित लीक ई-मेल से भी यही जाहिर होता है। पूरे घटनाक्रम से अखिलेश की इमेज निखर गई और इस राज में हुए भ्रष्टाचार और अपराध की घटनाओं पर जैसे पर्दा पड़ गया।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रो. एके वर्मा कहते हैं कि समाजवादी दंगल में जो कुछ दिखाई दे रहा है उससे ज्यादा दिलचस्प वह है जो नहीं दिखाई दे रहा है। जो नहीं दिखाई दे रहा है वह अखिलेश के साथ मुलायम का आशीर्वाद है। कोई भी ऐसी चीज सामने नहीं आ रही है जिसमें लगे कि मुलायम के प्रति कहीं कोई आक्रोश है। पिता-पुत्र एक ही हैं। अखिलेश इस वक्त नेताजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं। नेताजी ने अखिलेश यादव को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है कि अब इस परिवार का कोई भी सदस्य उनके कद तक आसानी से नहीं पहुंचेगा। सिवाय कोर्ट जाने के शिवपाल गुट के पास करने के लिए कुछ बचा नहीं है।
वर्मा कहते हैं कि मुलायम जिन्हें हटाना चाहते थे उन्हें अखिलेश के जरिए किनारे कर रहे हैं। जिस तरह से पूरा ड्रामा हो रहा है उसे देखकर यह लगता है कि पूरे प्रकरण में अंदरखाने अखिलेश को मुलायम सहमति मिली हुई है। अन्यथा अखिलेश इस तरह संगठन के खिलाफ नहीं खड़े हो सकते थे। पिता-पुत्र के रिश्ते में कोई दरार नहीं है। इतनी ‘बगावत’ के बाद भी रामगोपाल यादव विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में कहते हैं कि ‘मुलायम सिंह यादव सपा के सर्वोच्च रहनुमा हैं, शीर्ष नेतृत्व उनसे मार्गदर्शन लेता रहेगा’। इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि बहुत हद तक इस प्रकरण में फिक्सिंग नजर आ रही है। इस पूरे खेल में वह सवाल दब गए हैं जो पांच साल के दौरान अखिलेश यादव से पूछे जाने थे।
जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, अखिलेश यादव का ऑपरेशन क्लीन अभियान बढ़ता जा रहा है। वह जानते हैं कि जब उनकी पार्टी चुनाव में जाएगी तो उनके लिए सबसे अहम उनकी इमेज होगी।
वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि पूरा ड्रामा नाकामियों को छिपाने का है। लेकिन पिता-पुत्र के इस नाटक से जनता गुमराह नहीं होने वाली है। सपा नेता जूही सिंह का कहना है कि जो कुछ भी हो रहा है उसमें कहीं कोई फिक्सिंग जैसी बात नहीं है। क्या इतनी बड़ी-बड़ी बातें पहले से तय हो सकती हैं?