वाशिंगटन:अमेरिका में मंगलवार को होने जा रहे राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा जितना रोचक रहने वाला है इस चुनाव की प्रक्रिया भी उतनी ही रोचक है जो पिछली दो सदियों में कई परिवर्तनों से गुजरने के बाद अपने मूल रूप में अब भी वैसी ही बनी हुई है जैसी साल 1789 में जॉर्ज वॉशिंगटन के निर्वाचन के वक्त थी।
अमेरिकी जनता सीधे तौर पर देश के राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करती है बल्कि उसके जिम्मे एक निर्वाचन मंडल का चुनाव करना होता है। इस साल निर्वाचन मंडल के चुनाव की तारिख 8 नवंबर मुकर्रर की गई है। यह निर्वाचन मंडल आधिकारिक तौर पर देश के सर्वोच्च नेता का चुनाव करेगा। निर्वाचन मंडल में हर राज्य के लिए सीमित संख्या में उम्मीदवार तय किये जाते हैं जिन्हें चुनाव से पहले सार्वजनिक करना होता है कि वे किस दल का समर्थन करेंगे।अमेरिकी जनता सीधे तौर पर देश के राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करती है बल्कि उसके जिम्मे एक निर्वाचन मंडल का चुनाव करना होता है।
निर्वाचित होकर एक खास दल का समर्थन करने की शपथ से पलटने वाले सदस्यों पर कई प्रांतों में मुकदमें का भी प्रावधान है। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में वैसे तो किसी भी दल को अपने अपने उम्मीदवार खड़े करने का अधिकार है और समय-समय पर विभिन्न दल इसमें अपने उम्मीदवार उतारते रहे हैं लेकिन साल 1853 के बाद कभी भी ऐसा नहीं हुआ जब डेमोक्रेटिक अथवा रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के अलावा किसी तीसरे दल का उम्मीदवार इस पद पर काबिज हुआ हो। अमेरिका में जन्मा और 35 साल की आयु वाला और पिछले 14 सालों से देश में रह रहा व्यक्ति ही इस चुनाव में अपनी उम्मीदवारी पेश कर सकता है।
विभिन्न दल अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनने के लिए जिस प्राइमरी चुनाव और काकस का इस्तेमाल करते हैं उसका जिक्र देश के संविधान में नहीं किया गया था बल्कि विभिन्न दलों ने आवश्यकता अनुरूप इस पद्धति को अपना लिया। इसके तहत पार्टी के अंदर ही विभिन्न उम्मीदवारों के बीच ही आपसी मुकाबला होता है और पार्टी समर्थकों को अमुक उम्मीदवार का समर्थन करने वाले प्रतिनिधि के पक्ष में मत देना होता है। सबसे अधिक प्रतिनिधि मत हासिल करने वाले उम्मीदवार को पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी चुन लिया जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में कई बार संवैधानिक संशोधनों के जरिए कई आवश्यक बदलाव किए गए जिसने इस प्रक्रिया का मूल स्वरूप तो बरकरार रखा लेकिन इसे अधिक स्पष्ट और प्रभावी बना दिया। संविधान में साल 1804 में लागू हुए 12वें संशोधन के लागू होने से पहले निर्वाचन मंडल का हर सदस्य राष्ट्रपति पद के दो उम्मीदवारों के पक्ष में मत डाल सकता था लेकिन साल 1800 के चुनाव में असल दिक्कत उस समय खड़ी हो गई जब विपक्षी उम्मीदवार एरन बर्र को निवर्तमान राष्ट्रपति थामस जैफ्रसन के बराबर मत हासिल हुए। इस संशोधन के लागू होने के बाद निर्वाचन मंडल के सदस्यों को एक वोट राष्ट्रपति के लिए और दूसरा वोट उपराष्ट्रपति को चुनने के लिए डालने का प्रावधान किया गया। इससे पहले राष्ट्रपति बनने वाले उम्मीदवार के जोड़ीदार को ही उपराष्ट्रपति बना दिया जाता था।
इसके बाद 1951 में लागू हुआ 22वें संशोधन में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए एक तय अवधि का प्रावधान किया गया। इसके तहत कोई भी व्यक्ति दो कार्याकालों से अधिक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचित नहीं हो सकता। इसके कुछ सालों बाद 1960 में लागू हुए 23वें संशोधन के जरिए वॉशिंगटन के नागरिकों को भी निर्वाचन मंडल के चयन का अधिकार मिल गया। इसके अलावा साल 1967 में लागू हुए 25वें संशोधन में राष्ट्रपति के पद छोड़ने या उनका निधन होने पर उपराष्ट्रपति को देश का नया राष्ट्रपति नामित करने के नियम और शर्तें तैयार की गईं।
अमेरिकी संविधान ने विभिन्न उम्मीदवारों के बीच टाई होने की स्थिति में राष्ट्रपति का फैसला करने के लिए संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स’ द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर अंतिम निर्णय लेने और ऊपरी सदन ‘सीनेट’ द्वारा उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के भाग्य पर फैसला लेने का अधिकार दिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हाल के दशकों में एक और दिलचस्प पहलू देखने में आया है कि निवर्तमान राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना दूसरा कार्यकाल सरलता से जीत जाते हैं।
अमेरिका की क्रांति में हिस्सा ले चुके लोगों को चुने जाते, गृहयुद्ध से चरमराई अर्थव्यवस्था, दोनों विश्वयुद्धों, कोरिया और वियतनाम के युद्धों, सोवियत संघ के विघटन, आतंक के खिलाफ जारी जंग जैसी घटनाओं को देख चुके राष्ट्रपति चुनावों में इस साल भी करोड़ों अमेरिकी लोगों के हिस्सा लेने की संभावना है। इस चुनाव में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के अलावा प्रतिनिधि सभा ‘हाउस ऑफ रीप्रेजेंटिटव्स’ और सीनेट के कुछ सदस्यों का चुनाव किया जाएगा।
अमेरिकी चुनावों का एक और पहलू यह भी है कि संवाद माध्यमों की तमाम उभरती हुई तकनीकों को चुनावी प्रक्रिया ने हाथों हाथ लिया है। अमेरिका में जहां शुरुआती दौर में ग्रामोफोनो के जरिए चुनाव प्रचार किया जाता था वहीं, 1920 का दशक आते-आते इसने तेजी से उभर रही नई तकनीक रेडियो को अपना लिया। इस तरह से टेलीविजन का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया। मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चार साल पूर्व इंटरनेट का इस्तेमाल करके युवाओं को अपने से जोड़ने का अभूतपूर्व प्रयास किया था।