नई दिल्ली:राष्ट्रगान किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति और उसके जीवन दर्शन का प्रतीक होती है। यह देश प्रेम से परिपूर्ण एक ऐसी संगीत रचना होती है, जो उस देश के इतिहास, सभ्यता, संस्कृति और उसकी प्रजा के संघर्ष की व्याख्या करती है। खास बात यह है कि यह एक ऐसी संगीत रचना होती है जो उस देश की सरकार द्वारा स्वीकृत होती है या परंपरागत रूप से प्राप्त होती है। आश्चर्य की बात है कि जब हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तो हमारे पास उस समय तक अपना कोई राष्ट्रगान नहीं था। हालांकि रवींद्रनाथ टैगौर की रचना जन-गण-मन को भारत ने राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया वह 1950 में संविधान लागू होने के बाद राष्ट्र गान के रूप में स्वी कार किया गया।
दरअसल, राष्ट्रगान के हिंदी संस्करण को संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी, 1950 को स्वीकार किया गया। खास बात यह रही कि इसे टैगोर ने ही 1911 में राष्ट्रगान के शब्द और संगीत को लयबद्ध कर लिया था। इसको पहली बार कलकत्ता में 27 दिसंबर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान का संगीत मदनापल्लै में सजाया गया, जो आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में है। राष्ट्रगान का मूलग्रंथ बंगाली में है, जिसे साधु भाषा भी कहा जाता है। इसमें 5 दोहे हैं। इसके अलावा राष्ट्रगान का पूरा संस्करण गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है। नेहरू जी के विशेष अनुरोध पर इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर अंगरेजी संगीतकार हर्बट मुरिल्ल द्वारा भी गाया गया। टैगोर ने बांग्लादेश का राष्ट्रगान (अमार सोनार बांग्ला) भी लिखा है।
राष्ट्रगान किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति और उसके जीवन दर्शन का प्रतीक होती है। यह देश प्रेम से परिपूर्ण एक ऐसी संगीत रचना होती है, जो उस देश के इतिहास, सभ्यता, संस्कृति और उसकी प्रजा के संघर्ष की व्याख्या करती है…आपको बता दें कि राष्ट्रषगान की तरह ही वंदे मातरम् भारत का राष्ट्रीय गीत है, जिसे राष्ट्रगान के बराबर सम्मान प्राप्त है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा की गई थी। उन्होंने 7 नवंबर, 1876 में बंगाल के कांतल पाड़ा नामक गांव में इस गीत की रचना की थी। वंदे मातरम् गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बंगाली भाषा में थे।