फर्रुखाबाद: हिमालय के शिखर गो मुंख से निकलकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होने वाली गंगा भारत वासियों के लिये धार्मिक एकता, श्रधा, सनातन महत्व,आध्यात्मिक और पतित पावनी के रूप में पूजी जाती है| हरे भरे हिमालय की धरती पर कल-कल बहती धबल वस्त्रो में अठखेलियाँ करती गंगा किसी नव योवना सी प्रतीत होती है| किन्तु यह भी सत्य है की हमारी संस्कर्ति और सभ्यता का विकास भी इसी के तट पर हुआ है| हिन्दू हर-हर गंगे बोलता है तो मुस्लिम भी बजू करके आल्हा वो अकबर कहता है|
गंगा हमारे देश वासियों की जीविका जननी भी है| परन्तु विकास की अंधी दौड़ और चेतना की कमी के कारण आज गंगा खुद को भी दर्पण में देखने से डरती है| जिसकी वर्तमान में स्थित यह है की पिछले दशको से प्रदूषण और भू जल के शोषण ने गंगा को मरणासन्न स्थित में ला दिया है| आज हम सभी का दायित्व है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करना होगा तथा गंगा के किनारे हरित पट्टी का जाल बिछाना होगा| इसके लिए हमे वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाना होगा|
गंगा की पवित्रता और अविरलता को निखारने हेतु उसके स्वरूप में किसी प्रकार का बदलवना ना किया जाये| जिससे गंगा गंगोत्री से उत्तरकाश होते हुये जब गुजरे तो उसे अभयारन्य जैसा संरक्षण और तिरंगे जैसा मान नहीं मिलेगा तबतक गंगा को प्रदूषण से मुक्त होना सपना साबित होगा| आज हम सबका दायित्व है की हम सब गंगा को माँ कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं करनी चाहिए| हमे गंगा को माँ का दर्जा भी देना होगा और उसके आंचल को भी धबल रखना होगा हम गंगा को वैज्ञानिक नजर से देखे तो गंगा अपने में स्वास्थ्य का भंडार छिपाए है| गंगा अपने में कई खनिज पदार्थ समेटे है| गंगा जल में होने वाला सल्फर त्वचा रोगों में लाभदायक होता है| साथ ही अपने उद्गमे स्थल गोमुख से हरिद्वार तक अपने मार्ग में पड़ने वाली जीवन रक्षक जड़ी बुटिंयो के औषधीय तत्वों का समवेश भी गंगा अपने जल में कर लेती है गंगा में देलोविव्रियो वैक्टिरियोबोर्श नामक जीव होता है जो गंगा जल को सदा शुद्ध रखता है|
इसी लिये गंगा को निर्मल बनाने के लिये हमे अपने आप को जागरूक करना पड़ेगा तभी हम कह सकते है| हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है| (संजय तिवारी जिलाध्यक्ष शैक्षिक महासंघ )