फर्रुखाबाद: पंचायती राज में सत्ता ग्राम पंचायत को सौपने का मतलब गांव के निवासियों द्वारा अपनी पंचायत की सत्ता सम्भालना था| मगर अगर प्रधान पढ़ा लिखा नहीं है या फिर खूब शराबी है तो फिर पंचायत की सत्ता सरकारी मशीनरी ही चलाती है| ग्राम पंचायत अध्यक्ष यानी कि प्रधान को एक सरकारी वेतन वाला सचिव मिलता है जो ग्राम समिति में बहुमत से पारित कामो को अंजाम तक पहुँचाता है| कहने को तो वो एक सेवक होता है मगर यूपी में हालात बहुत इतर है| यहाँ ग्राम पंचायत की पूरी सत्ता ही ग्राम सचिव चलाता है, कुछ दबंग प्रधानो को छोड़कर| ग्राम सचिव की नौकरी के लिए रिश्वत के रेट लेखपाल से ज्यादा हो चले है| यूपी में बिटिया की शादी के लिए तलाशे जाने वाले दूल्हे में राज्य सरकार के बाबू से ज्यादा वरीयता ग्राम सचिव को मिलती है और उसके दहेज़ के रेट भी दो चार लाख ज्यादा लगते है| इसकी बड़ी वजह है विस्तार से समझिए-
यूपी में कई सालो से सरकारी नौकरियों की भर्तियां नहीं हुई है लिहाजा हर विभाग में सरकारी कर्मचारी की भारी कमी है| मगर इन सबके बाबजूद सरकार का काम काज बखूबी चल रहा है| उदहारण के लिए जनपद फर्रुखाबाद में अब तक 515 ग्राम पंचायते थी| इसके लिए प्रति ग्राम पंचायत 515 ग्राम सचिवो की जरुरत थी| मगर ये काम 70-80 सचिवो से चलता रहा और हर साल दो चार उनमे से भी कम हो जाते है| रिटायर जो हो जाते है| कमोवेश यही स्थिति पूरे यूपी की है| कुल जरुरत में से केवल 15 प्रतिशत ही ग्राम सचिव है| ऐसे में एक एक ग्राम सचिव को 5 से 10 ग्राम पंचायतो का सचिव बनाया जाता है| ग्राम पंचायत के कुल बजट खर्च में बटने वाला कमीशन भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है| प्रधान से ज्यादा सचिव मालामाल हो रहा है| इन ग्राम सचिवो को कई बार ऐसे प्रधान मिलते है जिन्हे ग्राम पंचायत के कामकाज के बारे कोई ज्ञान नहीं होता या फिर कई शराबी प्रधान पल्ले पड़ जाते है| इन गाँवो में ग्राम सचिव ही सब कुछ हो जाता है| पेंशनों के पात्र तलाशने हो, इंदिरा आवासो का आवंटन हो, पट्टे करने हो, नाली खडन्जा बनाना हो इन सबका फैसला फिर सचिव ही करते है| ऐसे में जनता भी प्रधान को किनारे कर सीधे ग्राम सचिवो को पकड़ती है और अपना काम कराती है| ये कुछ बानगी भर है|
ऐसे ही एक फर्रुखाबाद जनपद के राजेपुर ब्लाक के नगला केवल ग्राम पंचायत के प्रधान गंगाराम का भी किस्सा है| वर्ष 2010 में ग्राम पंचायत का आरक्षण पिछड़ा वर्ग के लिए हो गया तो वे चुनाव लड़ बैठे| गंगाराम का कहना है कि वे केवल दस्खत करने भर को पढ़े है| बाकी उन्हें कुछ मालूम नहीं| वर्तमान में हो रहे चुनावो से तौबा कर चुके गंगाराम का कहना है कि उन्हें पंचायत के खातों के बारे में कुछ नहीं मालूम| उनके ग्राम सचिव मनीष यादव ने खूब मनमानी की| अपने सजातीय मजरे में नाली सड़के बनबाई और अन्य 4 मजरे ग्राम पंचायत के विकास के लिए तरसते रहे| बकौल गंगाराम इस बार सीट सामान्य हो गयी है मगर अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे| गंगाराम का कहना है कि वे किस मुह से चुनाव में वोट मांगे| पेंशन से लेकर आवास आवंटन तक ग्राम सचिव मनीष यादव ने अपने मन से दिए| मनरेगा में एक भी जॉब कार्ड नहीं बनाया| जिस का राशन कार्ड खो गया उसे कोटेदार राशन नहीं देता| गाँव की हालात ख़राब है| स्कूल की बॉउंड्री वाल नहीं है| स्कूल की किचन में भैंस बधती है| किचन का काम कक्षा कक्ष में होता है और बच्चे बरामदे में मिड डे मील खा लेते है| पढ़ाई तो जैसे होती है साहब आप जानते ही हो| सामाजिक न्याय दिलाने के लिए आरक्षण में गंगाराम को प्रधान बनने का मौका तो मिला मगर न गंगाराम का कोई अर्थ सुधार हुआ और न ही ग्राम पंचायत का विकास| विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे आरक्षण का भी क्या फायदा|
ग्राम प्रधान के आरोपों पर जब ग्राम सचिव मनीष यादव से फोन पर बात की गयी तो उनका जबाब था कि आप लोग गंगाराम के पीछे ही क्यों पड़ जाते हो उन्हें तो वक्श दो| अब ग्राम सचिव के इस जबाब का मतलब क्या है ये जनता खुद लगाये| फिलहाल चुनाव एक बार फिर से है| फैसला गांव की जनता को करना है कि कैसा प्रधान चुनना है| उसे जो ग्राम सचिव के हिसाब से चले या फिर उसे जो ग्राम पंचायत समिति के हिसाब से चले|