नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार का लगातार तीसरी बार बिहार का मुख्यमंत्री बनना तय हो गया है। महागठबंधन के चुनाव जीतने के साथ ही बिहार के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावना बढ गई है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव परिणाम लालू-नीतीश के पक्ष में आने के बाद नरेंद्र मोदी के खिलाफ पूरे देश में राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावना काफी अधिक है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन का जो सपना बिहार चुनाव के पहले बिखर गया था, वह चुनाव परिणाम आने के बाद अब फिर से साकार हो जाए।
2016 में पश्चिम बंगाल में और 2017 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों में अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए बीजेपी ने काफी पहले से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में उसे आंशिक सफलता भी मिली थी और उसके बाद हाल में हुए कुछ स्थानीय निकाय के चुनावों में भी बीजेपी को इन क्षेत्रों में सफलता मिली है। विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में वामपंथी ताकतों की ताकत कम होने के बाद बीजेपी को यह उम्मीद है कि वह बड़ी ताकत के रूप में उभरेगी।2016 में पश्चिम बंगाल में और 2017 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों में अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए बीजेपी ने काफी पहले से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
इसी उम्मीद को ध्यान में रखते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जारी मतगणना में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन के आगे निकलने के बाद कहा कि यह असहिष्णुता की हार है। तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने कहा कि नीतीश कुमार जी, लालू जी और आपकी पूरी टीम तथा बिहार के सभी भाइयों और बहनों को बधाई। गौरतलब है कि है कि बिहार में चुनाव से पहले नीतीश कुमार की जीत के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी बिहार की जनता से अपील की थी। तृणमूल नेता डेरेक ओ’ब्रिन का यह बयान कि ‘बीजेपी हारी और भारत बचा’ के भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। साफ है कि भारत को बचाने के लिए बिहार के इस जीत की धमक दोनों पड़ोसी यूपी और बंगाल तक जाएगी।
2011 में पश्चिम बंगाल के 294 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी गठबंधन को 227 और वामपंथी पार्टी को 62 सीटें मिली थी, जबकि एनडीए गठबंधन को मात्र 3 सीटों से संतोष करना पड़ा था हालांकि बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी को 1 सीट जरूर मिली थी। अगर इससे पहले 2006 विधान सभा चुनाव की बात करें तो उसमें जहां यूपीए गठबंधन को 30 सीटें मिली थी, जबकि वामपंथी दल को 233 सीटें।
इस चुनाव में एनडीए गठबंधन को 24 सीटें मिली थी। इन आंकड़ो को देखने के बाद साफ है कि बीजेपी के लिए बंगाल में वापसी की डगर आसान नहीं है। लेकिन यहां महागठबंधन के लिए भी संशय की स्थिति है। नीतीश की जीत की खुशी न सिर्फ ममता बनर्जी अकेली मना रही है, बल्कि वामपंथी नेता भी इससे उत्साहित नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर नीतीश के इस महागठबंधन के नजदीक कौन होगा। राजनीतिक समीकरण के बदलते मिजाज को देखते हुए यह भी असंभव नहीं कि बंगाल में भी कुछ नया देखने के मिले।
बीजेपी के विस्तारवादी रणनीति से न सिर्फ ममता बनर्जी बल्कि यूपी के नेता भी वाकिफ हैं। यही कारण था कि बिहार चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे का भी गठन किया गया। हालांकि ये अलग बात है कि बाद में किसी राजनीतिक बाध्यता के कारण मुलायम सिंह ने तीसरे मोर्चे से हटने का फैसला किया। समय के साथ अपने फैसले बदलने में माहिर मुलायम के लिए यह फैसला भी कब बदल जाए कोई नहीं जानता। इन परिस्थितियों में मायावती की नजरें भी महागठबंधन के तरफ होंगी इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। यूपी के 403 सीटों वाली विधानसभा में समाजवादी पार्टी के पास 224 ,बीएसपी के पास 80 ,और बीजेपी के पास 47 सीटें हैं और यहां भी बीजेपी के लिए राह आसान नहीं हैं।
यह राजनीति का तकाजा ही है कि नीतीश की जीत पर सभी गैर बीजेपी दल खुश हैं लेकिन आगे राजनीतिक समीकरण क्या होंगे, यह कोई नहीं जानता। लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आखिरी वक्त तक नीतीश की जीत के लिए वोट मांगते नजर आए। इसमें कोई दो राय नहीं कि आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को रोकने के लिए देश में नई गोलबंदी भी हो और इस गोलबंदी में समाजवादी पार्टी भी शामिल हो जाए।
नरेंद्र मोदी के विरोधी खेमे में सबसे मुखर रहे अरविन्द केजरीवाल के अलावा उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी इस महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनाव में हार के बाद बीजेपी में विभिन्न नेताओं के भू्मिका की समीक्षा के साथ देशभर में व्यापक संगठनात्मक बदलाव होने की संभावना है। बिहार चुनावों के बाद संगठनात्मक गतिविधियां तेज हो जाएंगी और कामकाज के आधार पर नेताओं के कद और पद तय किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पहले ही साफ कर दिया था कि बिहार के नतीजे जो भी रहें अमित शाह पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे, लेकिन बड़बोले बयानों से पार्टी के लिए मुसीबत बने नेताओं के पर कतरे जाने के संकेत भी हैं। बिहार के बाद अमित शाह सीधे बंगाल में कमान संभालेंगे और पार्टी संगठन के मजबूती की दिशा में काम करेंगे।
सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय संगठन में कई बदलाव होंगे और नई टीम के सामने अगले साल होने वाले असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व केरल विधानसभा चुनावों के साथ दरअसल 2017 में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं और उनसे अगले लोकसभा चुनावों की दिशा व दशा भी तय होगी। गौरतलब है कि वाराणसी से सांसद होने से प्रधानमंत्री की भी कर्म भूमि उत्तर प्रदेश ही है।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि बीजेपी में ऐसे नेता जो मोदी राज में हाशिए पर थे उन्हे भी अब आगे आने मौका मिल सकता है और ऐसे नेता भी अब आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करेंगे। पार्टी के भीतर विद्रोह का बिगुल भले ही खुले तौर पर न बजे लेकिन कहानियां लीक होनी शुरू होंगी।शत्रुघ्न सिन्हा और आरके सिंह जैसे मुखर नेता अब खुलकर सामने आएंगे। जिस तरह आर के सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा के आरोपों को बिहार चुनाव में दरकिनार किया, आगामी विधानसभा में इससे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। जाहिर है बंगाल और यूपी में बीजेपी की राह आसान नहीं है और यह सफर आने वाले समय में बीजेपी की रणनीति पर निर्भर करेगा।