शिक्षा विभाग में साहबो का वार्तालाप- साहब ज्यादा कमाते है या बड़े साहब..

Uncategorized

officeउत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा में ही नहीं अन्य विभागो में कार्यप्रणाली में थोडा बहुत ही अंतर है| जनता की सेवा के लिए नौकरी में आये अफसर कैसे जनता को लूट ले इसका प्लान कैसे बनाते है इसकी बानगी देखिये| दोपहर के व्यस्ततम क्षणो में बेसिक शिक्षा विभाग के दो अफसर आपस में क्या और कैसे बतियाते है इसे पढ़कर आपको एक एहसास होगा| ये एहसास अलग अलग तरीके से होगा| जिनके लिए लिखा गया है वे इतने मोटी खाल के हो चुके है इसे पढ़कर बिलकुल भी विचलित नहीं होंगे मगर जिन्हे पढ़ाने (आम जनता) के लिए लिखा जा रहा है वे अपने मन में इन लोगो की कैसी तस्वीर बनाएंगे ये उन पर निर्भर करेगा| वार्तालाप हूबहू एक तरीके से ट्रांसक्रिप्ट है, कुछ भी अलग से जोड़ने और घटाने की कोशिश भी नहीं की गयी है|
दफ्तर में मेज पर रखे साहब के मोबाइल में उस वक़्त 2 बजकर 35 मिनट हो चले थे| कई विभागीय फरियादी अपनी फरियाद सुना जब सब चले गए तो काफी देर से साहब की तबलमंजनी करने का इन्तजार कर रहे डिप्टी साहब ने अपने मुखार बिंदु से फूलो का हार पहनाते हुए कहा-
[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”11″]
साहब बोले रहे थे कि उन्हें तो वेतन अब सर्व शिक्षा अभियान से मिलता है इस पर
डिप्टी साहब- आप तो बेसिक शिक्षा के राजा हो साहब, जिधर हाथ डाल दो पैसा ही पैसा है| चाहे बेसिक शिक्षा में हाथ डालो या सर्व शिक्षा अभियान में, साक्षरता, कस्तूरबा चारो तरफ वर्षा हो रही है|
बड़े साहब फाइलो पर दस्खत करके निपटे तो छोटे साहब पर हुकुम के गुल्ले की चाल चल दी-
साहब- अरे भाई राजा तो आप है| मैं तो दफ्तर में रहता हूँ, तुम तो स्कूल स्कूल जाते हो, जिस स्कूल में छापा मार दो पैसा ही पैसा बटोर लेते हो|
छोटे साहब ने बड़े साहब को खुश करने के लिए अपना एक और पत्ता आगे सरकाया-
डिप्टी साहब- तो इसका मतलब एडी साहब के पास तो कई जिले हैं और वो अक्सर छापा मारते ही रहते है| उनके पास सबसे ज्यादा पैसा होगा|
साहब ने कुटिल मुस्कान (कुटिल मुस्कान में इसलिए क्योंकि जो साहब कम सकते है वो मौका तो उनसे बड़े साहब के पास है ही नहीं) में मुंडी हिलायी और एक दफतरी को बुलवाया-
इससे पहले की बात आगे बढ़ती कुछ दफतरी काम से एक संविदा बाबू का आगमन बड़े साहब के दफ्तर में हो जाता है और वार्तालाप को यहीं विराम मिल जाता है|

तो ये हाल है जिला स्तर के अधिकारियो का| जनता का काम अच्छा हो, लोग शिक्षित हो जाए, लोगो को इलाज ढंग से मिल जाए इससे कोई सरोकार नहीं| सरोकार तो सरकार से आने वाली योजना के पैसे में अधिक से अधिक धन लूट कर अपनी तिजोरी भर लेने से है| ऐसे अफसर ईमानदार लोगो को पसंद नहीं करते| ऐसे अफसरो के इर्द गिर्द इन्ही के पद चिन्हो पर चलने वाले अफसर और कर्मचारी फेरे लगाते और इंचार्ज बनते मिल जायेंगे| दिल्ली में शुरुआत हुई है, दुआ करो कोई अन्ना और केजरीवाल हर गली मोहल्ले में पैदा हो और ऐसे बड़े और छोटे साहब को कुछ सबक सिखा सके|