ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आना, न आना तो मनचाही पोस्टिंग पा जाना!

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पक्की खबर है कि कड़क और हनक रखने वाले अपने जिलाधिकारी जी पुनः लंबी छुट्टी पर चले गए हैं। अपने एक साल से भी कम समय में जब जब जिलाधिकारी जी छुट्टी पर गए। विध्न संतोषियों ने यही खबर उड़ायी और उड़वायी। अब गए अब वापसी नहीं। परन्तु साहब बहादुर इन विध्न संतोषियों की छाती पर पुनः दाल दलने के अंदाज में उसी हनक और ठसक के साथ लौट आए। लोग फिर अपने अपने अंदाज में उल्टी गिनती गिनने लगे।

इस बार छुट्टी पर नहीं स्थायी रूप से जाने की बात है। अपने अपने दरबारों में ही नहीं कंपिल से लेकर खुदागंज और मदनपुर मुहम्मदाबाद से लेकर शमसाबाद, अमृतपुर, राजेपुर, नबावगंज, कमालगंज तक ही नहीं फतेहगढ़ फर्रुखाबाद बढ़पुर के हर गांव गली बाजारों में केवल एक ही चर्चा है। अब गए, अब वापसी नहीं होगी। अभी बड़े दिनों की छुट्टी में तो गए ही थे। उससे पहले भी गए थे। नेती के सबसे बड़े दरबार में तो रामराज्य की वापसी जैसा वातावरण बन गया है। कुछ चमचों ने तो मिष्ठान वितरण तक करवा दिया। लगभग बाईस वर्ष पहिले भी सायकिल सिंहों ने तत्कालीन जिलाधिकारी के स्थानांतरण पर ऐसे ही तेवर दिखाए थे। क्योंकि जिला अधिकारी ने जिले भर में व्याप्त ठेके पर खुली सामूहिक नकल की बीमारी पर नकेल डाल दी थी। सायकिल सिंहों को अपनी बादशाहत पर खतरा नजर आने लगा था। सायकिल सिंहों ने तब भी यही समझा था। स्थानांतरण के खेल में वह जीत गए। परन्तु तबके अविभाजित जिले में स्थानांतरित जिलाधिकारी को पूरे एक सप्ताह जनता के द्वारा जो जीवंत भाव भीनी विदाई मिली। उसकी बाद में अभी तक कोई दूसरी मिसाल नहीं है।

जानकार लोगों का कहना है कि इस बार भी तमाम छोटी बड़ी बातों के साथ ही मामला दो माह बाद होने जा रही परीक्षाओं को लेकर ही है। परीक्षाओं में अगर ठेके पर खुली सामूहिक नकल का खेल बंद हो गया। तब फिर साल भर शिक्षा माफिया और मीडिया का लुकाछिपी का खेल कैसे चल पाएगा। नहीं समझे समझने की कोशिश करो। इसी लिए नेता इस बार विशेष रूप से सावधान है। अपने आप सफाई देने लगते हैं। सोते सोते बुदबुदाने लगते हैं। नहीं नहीं हम ट्रांसफर पोस्टिंग के लफड़े में नहीं पड़ते। जो भी आएगा जाएगा हमारे काम तो करेगा।

परन्तु जब नेती नेता यह देखता है कि उसकी बात का सुनने वाले पर कोई विशेष असर नहीं पड़ रहा। तब वह धीरे से रहस्य बताने के अंदाज में कहता है। अरे नहीं भाई। लोगों का क्या चाहें जो कुछ कहें। सवाल जाने का नहीं है। अच्छी पोस्टिंग का है। क्या रखा है सवा दो तहसीलों वाले इस जिले में। फिर और धीरे बोलता है-

झांसी गले की फांसी दतिया गले का हार,
ललितपुर न छोड़िए जब तक मिले उधार!

छोटे सिंह उर्फ सहकारिता सिंह!

सहकारिता विभाग के एक बहुत बड़े अधिकारी सपा के एक बहुत बड़े सिंह की तगड़ी झाड़ खाने के बाद रुआंसे अंदाज में बताने लगे। हम क्या करें भइया! हमारी समझ में ही नहीं आता। सहकारिता के जिले में हुए चुनावों में सपा के एक बहुत बड़े सूरमा ने हमें पटक पटक कर मारने के अंदाज में बुरी तरह से डांटा। स्वयं तो वह अपने पूरे जोड़ तोड़ के बाद भी सहकारिता चुनाव में कुछ अपने पक्ष में कर नहीं पाए। हम पर खुले आम एक तरफा पक्षपात का आरोप लगाकर कड़ी कार्यवाही करवाने का भय दिखाने लगे। यह तो वही बात हो गई कि घोड़े पर बस नहीं चला और लगे लगाम मरोड़ने। अब बात आपको बुरी लगे तब फिर हम क्या करें। जिले में सहकारिता सिंह का मतलब है छोटे सिंह। जिले में सहकारिता के इस चक्रव्यूह या शंकर जी के धनुष चाहें जितने जतन करो, मंत्री रहो चाहे संत्री रहो तोड़ नहीं पाओगे। ऐसे में हम क्या करेंगे। कमल सिंह हाथी सिंह या हाथ सिंह सहकारिता के इसी मिनी ओलंपिक में इसी लिए हाथ ही नहीं डालते।

पूरे प्रदेश में सहकारिता भले ही सपा कार्यालय बनी हो। परन्तु जिले में सहकारिता सिंह का मतलब है छोटे सिंह। यहां सपा सिंह चाहें गरजें बरसें कोई कला किसी की चलने वाली नहीं। छोटे सिंह चाहें हाथी सिंह बने या हाथ सिंह। वह चाहें लोक सभा विधानसभा का चुनाव जीतें या हारें। परन्तु सहकारिता चुनाव में उनकी कोई सानी नहीं है। सहकारिता में छोटे सिंह बड़े बड़े सिंहों और सपा सिंहों के छक्के छुड़ा देते हैं। सही ही कहा है-

इस सादगी पर कौन न मर जाए ए खुदा,
लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं।

विवेक आनंद हास्य और प्रेम- इन्हें अपनाकर तो देखो!

इस बार स्वामी विवेकानंद वर्ष भर याद किए जायेंगे। अगले वर्ष 11 जनवरी को हास्य दिवस पुनः मनायेंगे। हर पंथ मजहब सम्प्रदाय हमें प्रेम का ही तो उपदेश देते हैं।

प्रेम है जीवन हमारा प्रेम प्राणाधार है,
प्रेम ही सुख शांति का सच्चा सबल आधार है।

परन्तु हम जयन्तियां पुण्य तिथियां संकल्प दिवस के बल मनाते हैं। मनाते नहीं। हमारे आज के सारे कष्टों चाहें वह पारिवारिक सामाजिक, राजनैतिक हों प्रादेशिक हों या राष्ट्रीय कारण यही है कि हम प्रेम और उन्मुक्त हंसी को भूल गए। कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हों। हम हंसना मुस्कराना अवसर के अनुरूप खिलखिलाना और आपस में प्रेमभाव से रहना न छोड़ें। सच मानिए हमारी सच्ची हंसी और प्रेमभाव हमें सहज रूप से सफलता के मार्ग पर ले जाएगा। प्रेम या उसे विवेक और आनंद का रूप मान लीजिए। उसमें निर्मल हंसी का भाव दे दीजिए। हमारे सारे छल कपट द्वेष दंभ, पाखंड आदि को स्वतः भस्मीभूत कर देंगे। बात उपदेश या प्रवचन की नहीं है। बात केवल और केवल स्वयं ही सोचने विचारने और अपनाने की है। हमारा जागृत विवेक हमें शास्वत आनंद के मार्ग पर ले जाएगा। आओ उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक सक्रिय रहो। फिर कहता हूं इन्हें मनाओ नहीं। मन वचन कर्म से अपनाओ। अन्यथा-

दीप इनके जले दीप उनके जले वर्तिका आदि से अंत तक जल गई,
राम तुमने कहा राम हमने कहा राम की जो कथा थी सपन बन गई।

हमने तुमने राम कहा माना नहीं। इनके उनके दीप जले। परन्तु मन के दीप नहीं जले। आइए! विवेकानंद जी स्मृति में मन के दीप जलायें।

सबको अपना गणित याद है!

दुर्भाग्य ही है कि राजनीति की तुलना शैतानियत से होने लगी है। यदि ऐसा न होता तब फिर आधे के लगभग मतदाता मतदान से अरुचि नहीं दिखाता। इससे भी अधिक दुर्भाग्य पूर्ण यह है कि किसी भी पार्टी का बड़े से बड़ा नेता यह अपील करने की हिम्मत नहीं दिखाता। मतदाता किसी को भी मतदान करें। परन्तु मतदान अवश्य करें।

एक बहुत बड़ी पार्टी के बहुत बड़े नेता पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में कह रहे थे। जिसका जो व्यवसाय व्यापार है। वह उसे जीवन भर करता है। परन्तु हम राजनीतिज्ञों को हर चुनाव में अपने काम का नवीनीकरण कराना पड़ता है। हम अपने कार्यकाल में कितना भी अच्छा कार्य क्यों न करें। उनके कहने का मतलब यही था कि असली सफलता केवल और केवल चुनाव जीतने में है। इसके अतिरिक्त किसी में नहीं। वोट बैंक की राजनीति का सही मतलब है। जातिवाद की निकृष्ट राजनीति। इसके आगे चुनाव सुधार दागियों को मैदान में न उतारने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने आदि की सब बातें व्यर्थ बेमतलब और बेकार हैं।

नए साल के साथ ही लोक सभा चुनाव की गतिविधियां जोर पकड़ने लगी हैं। बातें कुछ भी हों मकसद लक्ष्य चुनाव जीतने सरकार बनाने तक ही सीमित है। मतदान कम हो न हो। चुनाव सुधार हों न हों। वास्तव में दागी मैदान में न उतारे जायें। इससे किसी को कुछ भी लेना देना नहीं है। सबके गणित साफ हैं। सबको अपने गणित याद हैं। भाजपा मोदी को राजधर्म की सारी नसीहतें भूलकर जिताऊ घोड़ा मानकर चुनाव रण संग्राम के नेतृत्व के लिए तैयार कर रही है। कांग्रेस को राहुलगांधी से अधिक आगे पीछे कुछ दिखता ही नहीं है। गुणगान चाहें जिसका चाहें जितना करो। परन्तु हकीकत यही है कि वर्तमान में महात्मागांधी, राहुलगांधी तथा दीनदयाल उपाध्याय, नितिन गड़करी में चुनावी नायक या प्रत्याशी राहुलगांधी नितिन गड़करी या फिर नरेन्द्र मोदी को ही बनाया जाएगा। लोकतंत्र के अतीत और वर्तमान के अंतर को भविष्य में पाटा जा सकता है। यदि हम सब एक जुट होकर खड़े हो जायें। निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान हर हाल में करने का संकल्प करें।

और अंत में……

अधिवक्ताओं के चुनाव

अधिवक्ता संघ का चुनाव हो चुका है। लंबे समय के बाद काफी जद्दो जहद खींचतान के उपरांत बार एसोसिएशन टैक्स बार एसोसिएशन के चुनाव भी इसी माह सम्पन्न हो जायेंगे। क्या होता रहा। क्यों होता रहा। इस पर चर्चा अब बेमानी है। आप समाज के मार्गदर्शक हैं। कानून के ज्ञाता हैं व्याख्याकार हैं। आपको जिन्हें चुनना है। अपना नेता बनाना है। उन लोगों के बीच आप प्रतिदिन रहते हैं। निष्पक्ष और निर्भीक होकर अपने प्रतिनिधियों को चुनने का साहस दिखाकर औरों के लिए मिसाल कायम करिए। ध्यान रखिए आजादी की लड़ाई के अनेक महानायक आपके ही समाज के थे। नए साल में विश्वास करना चाहिए कि सदर तहसीलवार एसोसिएशन के चुनाव हो जायेंगे।

चलते चलते………..

व्यापारियों के सम्बंध में कहा जाता है कि उन्हें दो पैसे का फायदा होता हो तो, वह मिट्टी को सोना बनाने और बताने के लिए जमीन आसमान एक कर देंगे। अब यही बात राजनीतिज्ञों पर भी लागू होने लगी है। दुनिया के चुनिंदा रईसों में शुमार मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी ने नरेन्द्र मोदी को महात्मागांधी और जाने क्या क्या बना दिया। अब बारी नए महात्मागांधी उर्फ नरेन्द्र मोदी की है। देखना है वह कब अंबानी बंधुओं को जमनालाल बजाज और घनश्यामदास बिड़ला बताते हैं। हे महानुभावों, आपका अपना निर्णय है, परन्तु यह क्यों भूल जाते हो कि पूज्य बापू ने ही कहा था महान लक्ष्य अच्छे और सच्चे साधनों से ही प्राप्त करने चाहिए। विभिन्न घोटालों के उजागर होने पर अंबानी बंधुओं के माध्यम से कथित रूप से यह बात सामने आई थी। रिलायंस वाले भाजपा और कांग्रेस दोनो को अपनी जेब में रखते हैं।

कभी सदी के महानायक के होर्डिंग से यूपी का हर नगर मीडिया पटा पड़ा था। आज यही खेल गुजरात में चल रहा है। बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं। परन्तु हैं तो यह लोग भी हाड़मांस के प्राणी। गरीब किसान मजदूर नौजवानों के बीच से पाई गई अपार लोकप्रियता के बल पर अकूत धन के खातिर यह खेल हो रहे हैं। पैसा पैसा पैसा। यदि सदी के महानायक का भी यही लक्ष्य है। तब फिर हम आप क्या कर सकते हैं। कभी दिल्ली से लेकर यूपी के सम्मेलनों में सर पर पल्ला खींच कर मुलायम सिंह यादव को अपना जेठ (पति का बड़ा भाई) बताने वाली जया बच्चन को अपने पति के सक्रिय सहयोग से नरेन्द्र मोदी के रूप में देवर (पति का छोटा भाई) मिल गया है। अब मुलायम और मोदी में कौन श्रेष्ठ और अनुकरणीय है। यह बात लोकसभा चुनाव से पहले या बाद में तय होगी। क्योंकि दोनो ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदबार हैं। यूपी में अनिल अंबानी का बिजली घर भी लग रहा था। वह सपा से राज्यसभा सदस्य भी बने थे। क्या कहेंगे आप इसे। कहने को बहुत कुछ है। परन्तु जब तक आप निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान करना नहीं सीखेंगे। तब तक होना कुछ नहीं है। महात्मागांधी कहते थे ‘‘हर आंख का आंसू पोंछना होगा तभी जनतंत्र आएगा।’’ आज हम सब असहाय होकर जनतंत्र को धनतंत्र में बदलते देख रहे हैं। यदि हम आप सब अब भी निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान करने वालों की जमात में शामिल नहीं हुए। तब फिर न तो हमें महात्मागांधी कभी माफ करेंगे। नहीं हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट